समीर पुष्प
आथिक दृष्टि से चमड़ा उद्योग का भारतीय अर्थव्यवस्था में विशिष्ट स्थान है। रोजगार, वृध्दि एवं निर्यात की चमड़ा उद्योग की व्यापक क्षमता इसे भारत में बहुत से लोगों के लिए जीविका का स्रोत बनाती है। यह खासकर समाज के कमजोर तबके को रोजगार मुहैया करवा कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है। 7 अरब  डालर के वार्षिक कारोबार के साथ ही चमड़ा और चमड़ा उत्पादों का निर्यात पिछले दशक में कई गुणा बढ गया है और 2008-09 में 3.59 अरब डालर तक पहुंच गया यानी यह 9.58 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृध्दि कर रहा है। हालांकि भारत दुनिया में जूते और  चमड़े के कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है लेकिन वैश्विक चमड़ा निर्यात व्यापार में उसकी  करीब तीन प्रतिशत की ही हिस्सेदारी है। भारत बहुपरक लाभ की स्थिति में है जिससे इस उद्योग को अपनी क्षमता को साकार करने में आसानी होती है। दुनिया   के 21 प्रतिशत मवेशी और भैंस भारत में हैं और दुनिया की 11 प्रतिशत बकरियां तथा भेड़ भारत में हैं। ऐसे में यह उद्योग  कुशल मानवश्रम, अभिनव प्रौद्योगिकी, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों का अनुपालन और संबंधित उद्योगों के समर्पित सहयोग से अच्छी स्थिति में है।
चमड़ा उद्योग देश में रोजगार के सर्वाधिक अवसर प्रदाता उद्योगों में एक है और इस उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों में 25 लाख लोग कार्यरत हैं। यह उद्योग छह लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है। चमड़ा उत्पाद क्षेत्र में महिलाओं को खूब रोजगार मिलता है। जूते, चमड़े के वस्त्र चमड़ा उत्पाद, चमड़े  के सामान आदि बनाने बनने वाली इकाइयों में करीब 30-40 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं। कुछ जूते निर्यात इकाइयों में तो महिला कर्मचारियों की संख्या 50 फीसदी से भी अधिक है। करीब 9 लाख ग्रामीण शिल्पकार उत्पादन के असंगठित क्षेत्र, खासकर जूते और चमड़े के उत्पाद बनाने में जुटे हैं। करीब 10 लाख लोग कच्ची खाल और चमड़ा निकालने, उसे उत्पाद योग्य बनाने तथा उसकी ढुलाई का कार्य करते हैं।

अतीत के प्रदर्शन और इस उद्योग की क्षमता के मद्देनजर चमड़ा उद्योग ने  निर्यात में 2008-09 के 3.59 अरब डालर से बढक़र 2013-14 के दौरान 7.03 अरब डालर तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। चमड़ा उत्पादों के घरेलू बाजार की भी भविष्य में बहुत तेजी से आगे बढने क़ी संभावना है।       भारत में चमड़ा उद्योग परिवर्तन काल से गुजर रहा है। जहां 1960 के दशक में महज कच्चे चमड़े का निर्यात होता था, वहीं 1990 के दशक में चमड़े से निर्मित उत्पादों का निर्यात होने लगा। सन 1991 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था का  वैश्वीकरण हुआ और आर्थिक एवं व्यापार नीतियां उदार हो गयी तब यह उद्योग वैश्विक व्यापार में ज्यादा हिस्सा पाने के लिए उठ खड़ा हुआ। भारतीय चमड़ा उत्पादों के मुख्य बाजारों में जर्मनी (14.12 फीसदी), इटली (12.82 फीसदी), ब्रिटेन (11.48 फीसदी), अमेरिका (9.98 फीसदी), हांगकांग (6.61 फीसदी), स्पेन (6.09 फीसदी), फ्रांस (6.14 फीसदी), नीदरलैंड (4.13 फीसदी), संयुक्त अरब अमीरात (2.38 फीसदी) और ऑस्ट्रेलिया (1.55 फीसदी) शामिल हैं। इन दस देशों में भारत का 75.30 फीसदी चमड़ा उत्पादों का निर्यात होता है। 2008-09 के दौरान भारत के चमड़ा और चमड़ा उत्पादों के कुल निर्यात में अकेले यूरोपीय संघ को 23595.3 लाख अमेरिकी डालर का निर्यात हुआ जो कुल निर्यात का 65.57 प्रतिशत हिस्सा है।
                        चमड़ा उद्योग के महत्व को ध्यान में रखकर सरकार ने विदेशी व्यापार नीति 2009-14 के अध्याय 1 बी के तहत न्न स्पेशल फोकस पहल न्न को चिह्नित किया था। विदेश व्यापार नीति 2009-14 के तहत कई कदमों की घोषणा की गई उनमें फोकस प्रोडक्ट स्कीम के तहत डयूटी क्रेडिट स्क्रिप 1.25 फीसदी से बढाक़र 2 फीसदी एफओबी कर दिया जाना, स्पेशल फोकस मार्केट स्कीम के तहत डयूटी क्रेडिट स्क्रिप 2.5 फीसदी से बढाक़र 3 फीसदी एफओबी किया जाना तथा चमड़ा और चमड़ा उत्पादों समेत कुछ क्षेत्रों के लिए निर्यात संवर्धन पूंजी जींस (ईपीसीजी) योजना  के तहत शून्य डयूटी स्कीम लागू करना शामिल है। ईपीसीजी के तहत स्पेयर और मोल्ड्स के आयात पर निर्यात भार सामान्य विशिष्ट निर्यात भार का आधा कर दिया गया, चमड़ा क्षेत्र को बिक नहीं पाए आयातित कच्चे खाल एवं चमड़े तथा अर्ध्दनिर्मित चमड़े का पुनर्निर्यात करने उनपर केवल 50 फीसदी निर्यात कर लगेगा।

सरकार  चमड़ा उद्योग के संपूर्ण विकास के लिए मौजूदा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 2007-2012 के दौरान भारतीय चमड़ा विकास कार्यक्रम (आईएलडीपी) लागू कर रही है। आईएलडीपी के तहत उत्पादन केंद्रों के आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकी के उन्नयन, उत्पादन क्षमता के विस्तार, संस्थानात्मक सुविधाओं की स्थापना, नये मानवश्रम के कौशल विकास, पुराने मानवश्रम के कौशल उन्नयन और ग्रामीण शिल्पकारों के विकास जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।  इसके तहत चर्मशोधन क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान, चमड़ा उद्योग के क्षेत्र में संयुक्त उपक्रम और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के उपुयक्त स्थल के रूप में भारत का विदेशों में प्रचार, चमड़ा पार्क के विकास के माध्यम से अवसंरचना संबंधी कमियों को दूर करना आदि भी शामिल है।

 जहां तक चमड़ा उद्योग के लिए मानवश्रम के विकास की बात है तो मौजूदा इकाइयों में सुविधाओं का उन्नयन बहुत जरूरी हो गया है ताकि अधिक छात्रों को वहां काम पर रखा जा सके और उन्हें नवीनतम प्रौद्योगिकियों का ज्ञान दिया जा सके। मौजूदा विस्तार योजना के मुताबिक ग्यारहवीं योजना के दौरान तमिलनाडु , पश्चिम बंगाल और हरियाणा में एक एक एफडीडीआई खोले जाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा नोएडा में मौजूदा एफडीडीआई परिसर का उन्नयन भी शुरू किया गया है। आईएलडीपी की  मानव संसाधन विकास योजना के तहत कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम में सहयोग किया जा रहा है ताकि मानवश्रम को और रोजगारोउन्मुख बनाया जा सके तथा सफल प्रशिक्षुओं को चमड़ा इकाइयों में नौकरियां मिल सकें। इस योजना के तहत मौजूदा कार्यबल के कौशल को उन्नत करने का प्रस्ताव भी है जिससे उत्पादन के साथ साथ गुणवत्ता में भी सुधार हो।
                        ग्रामीणशहरी शिल्पकारों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए शिल्पकारों को सहयोग नामक योजना लागू की जा रही है। इसके तहत शिल्पकारों को आवश्यक डिजायन एवं उत्पाद विकास की जानकारी मुहैया कराई जाएगी  तथा उनके स्थानीय उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने के लिए सहयोग उपलब्ध कराया जाएगा  ताकि उन्हें अच्छा लाभ मिले। इस योजना का लक्ष्य शिल्पकार समूहों को बढावा देना है ताकि वे ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन सकें और उनमें स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन एवं निर्यात की क्षमता पैदा हो। शिल्पकार समूह (ग्रामीण एवं शहरी दोनों स्तर पर) को इस योजना के माध्यम से बदलते रुख एवं फैशन के अनुसार डिजायन कौशल विकसित करने में मदद की जाती है। भारी मात्रा में कच्चा माल लेने के लिए चक्रीय धनकोष, अनुदान आधारित जीविका सहयोग और बाजार संपर्क और बैंक संपर्क आदि की भी सुविधा उन्हें  प्रदान की जाती है। इससे उन्हें अपने उत्पादों का अच्छा दाम मिलता है। इस योजना के तहत पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों, उद्योग संघों, विभिन्न चमड़ा समूहों में परियोजना शुरू करने को इच्छुक संस्थानों को अनुदान सह सहायता के रूप में वित्तीय सहायता भी सरकार द्वारा दी जाती है।
विभिन्न औद्योगिक विकास कार्यक्रमों एवं निर्यात संवर्धन गतिविधियों के साथ तथा अतीत के प्रदर्शन एवं इस उद्योग की ताकत के मद्देनजर भारतीय चमड़ा उद्योग ने अपना उत्पादन बढाने, 2013-14 तक निर्यात 7.03 अरब अमेरिकी डालर तक ले जाने  और 10 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। आक्रामक निर्यात रणनीति ने समाज के कमजोर तबके के लिए आर्थिक वृध्दि एवं आर्थिक सशक्तिरण के युग का सूत्रपात किया है।


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