सरफ़राज़ ख़ान
नई दिल्ली. ड्रग्स जैसे कि बीटा ब्लॉकर्स और साइकोसोशियल दखलंदाजी के लिए ली जाने
वाली दवाओं से तनाव के कुछ रूपों में फिजियोलॉजिक रेस्पांस की कमी हो जाती है। जो
मरीज कोरोनरी डिसीज के
शिकार
होते हैं,
उनमें बीटा ब्लॉकर्स का कार्डियोप्रोटेक्टिव असर होता है। हार्ट
अटैक और अचानक हृदय सम्बंधी मौत की वजह डीमिन्यूषन ऑफ केटीकोलामान और हीमोडायनामिक
की वजह से एंडोथीलियल डैमेज हो जाता है और वेंट्रिकुलर फाइब्रिलेषन तेजी से बढ़ जाता
है।
हार्ट
केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया
के अध्यक्ष डॉ.
के के अग्रवाल के मुताबिक़ प्रीमैच्योर हार्ट डिसीज का मतलब औसतन
53-54 साल की उम्र से है। जिन मरीजों को कार्डियोवैस्कुलर का खतरा हो और उनको मनोसामाजिक तनाव हो
तो उनको एक तनाव प्रबंध कार्यक्रम अपनाना चाहिए जिसे कुल मिलाकर बचाव संबंधी रणनीति
माना जा सकता है। सामान्य तरीके से तनाव प्रबंध प्रोग्राम का लक्ष्य व्यक्ति में
माहौल के हिसाब से तनाव को कम करना होता है और इससे तनाव से बेहतर तरीके से लड़ा
जाता है।
- स्ट्रेसर को हटाने या आल्टरनेशन पर
- तनाव की स्थिति में बदलाव
- शारीरिक तनाव में कमी
- कोपिंग रणनीति के विकल्प को अपनाना
तनाव प्रबंध तकनीक में मांसपेशियों को राहत,
शांत माहौल, पैसिव एटीटयूड और गहरी सांस लेने वाली चीजों को अपनाया जाता
है।
शारीरिक बदलाव में ऑक्सीजन ग्रहण करने में कमी,
दिल की धड़कन में कमी और सांस संबंधी दर में कमी व पैसिव एटीटयूड
और मस्कुलर रीलैक्सेशन को अपनाया जाता है। इस तरह के बदलाव करने से नर्वस सिस्टम
एक्टिविटी में कमी आती है।
अन्य मापकों में जैसे कि रीलेक्सेशन की तकनीक और बायोफीडबैक से ब्लड
प्रेशर में 5
से 10 mmHg की कमी हो जाती है। व्यवहार में बदलाव के कार्यक्रम अपनाने से और
धूम्रपान त्यागने से भी इसमें कमी होती है। इसके अलावा दवा लेने से भी
तनाव संबंधी कार्यक्रम में बेहतर परिणाम सामने आते हैं।