प्र. असलम ख़ान
भू-विज्ञान मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं सागर अनुसंधान केंद्र के तत्वाधान में वर्ष 2001 में बाह्य महाद्वीपीय मिशन शुरू किया। यह मिशन नेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस (एनएचओ), राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान(एनआईओ), राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई), राष्ट्रीय भूगर्भ सर्वेक्षण (जीएसआई), हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) और तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के साथ मिलकर शुरू किया गया। यह सबसे चुनौतीपूर्ण और बहुपरक कार्यों में एक है जिस पर भारत ने कभी कार्य नहीं किया। इसमें इन प्रतिष्ठित भूवैज्ञानिक संगठनों के 40 से अधिक वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं। इसका उद्देश्य देश की महाद्वीपीय सीमा के बाहर अपनी तटीय रेखा से करीब 200 नौटिकल मील दूर के क्षेत्र के बारे में पता लगाना, और उसके बारे में जानना है ।
यह भारत द्वारा अब तक किए गए समुद्री भू-भौतिकी सर्वेक्षणों में एक है जिसके तहत जुलाई 2002 से फरवरी 2004 के दौरान 42 पूर्व निर्धारित सीमा क्षेत्रों में 31000 किलोमीटर लंबे इलाके के भूकंप प्रतिबिम्बन, गुरुत्व तथा मैग्नेटिक डाटा तैयार किए गए और उनके साथ ही गहराई संबंधी सूचनाएं भी शामिल की गईं। इसके अलावा भारत द्वारा पहली बार 100 समुद्री सतह भूकंपमापी यंत्र तैनात किए गए जिनकी सूचना ग्रहण करने की क्षमता 92 फीसदी तक थी। अंतिम परिणाम यह रहा कि हार्डकॉपी प्रिंटआउट से लेकर टेप, सीडी, वीसीडी आदि में सात टीबी डाटा संग्रहित हुआ।
बड़ी मात्रा में संग्रहित आकड़ों और उसकी पेचीदगी को ध्यान में रखकर मंत्रालय ने एनसीएओआर में अत्याधुनिक अभिलेखागार सुविधा विकसित करने की दिशा में कदम उठाया। प्रक्रियागत सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद मैसर्स टीसीएस को इस बहुसंस्थानात्मक प्रयास में सहयोगी बनाया गया है। भू-विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. शैलेश नायक ने 11 दिसंबर, 2009 को डाटासेंटर के पहले चरण का विधिवत शुभारंभ किया।
इस डाटासेंटर से हिंद महासागर की समुद्री भू-भौतिकी एवं गहराई संबंधी जानकारी के वेब आधारित डाटाबेस तैयार करने में मदद मिलती है। इस तंत्र के हिस्से हैं- नेटवर्क भंडारण डाटा अभिलेखागार तथा मेटाडीबी एवं जीआईएसडीबी से युक्त डाटा पुन:प्राप्ति और डाटा प्रस्संकरण।
इस तंत्र की रूपरेखा ऐसी है कि वह प्रोमैक्स, जीयोग्राफिक मॉडलिंग अप्लिकेशन आर 2007 वी 9.5,जीएमएसवाईएस(जियो सॉफ््ट), जेनेरिक मैपिंग टूल्स 4, आर्क जीआईएस 9.2, जीयोकैप और कैरिस लॉट्स जैसे भू-भौतिक सॉपऊटवेयरों में सहयोग करता है।
डाटाबेस की मेटाडाटा प्रविधि डाटा की प्रकृति, उसके संग्रहण-प्रसंस्करण आदि बातों के बारे में विस्तार से बताती है। इससे अब तक किए गए विभिन्न प्रकार के समुद्री सर्वेक्षणों आदि के बारे में जानकारी मिलती है। दुनिया के प्रमुख समुद्री भू-भौतिकी डाटा केंद्रों के साथ संपर्क से इस डाटासेंटर की उपयोगिता बढ जाती है क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर सागरीय क्षेत्रों में एक ही स्थल पर झांकने का अवसर मिलता है। इसका प्रारूप इतना लचीला है कि इसकी वृध्दि आसानी से हो सकती है।
इस डाटासेंटर में तीन प्रकार के समुद्री भू-भौतिकी डाटा हैं-
- गोपनीय प्रकार के डाटा जो भारत के सागरीय सीमा के निर्धारण के लिए इकट्ठा किए गए हैं।
- कॉपीराइट वाले आंकड़े जो दूसरे संस्थानों द्वारा प्रदान किए गए हैं।
- सार्वजनिक डाटा।
तंत्र संरचना को एनसीएओआर द्वारा संग्रहीत समुद्री आंकड़ों के अभिलेखन, भंडारण तथा पुन: प्राप्ति के लिए विशेष रूप से व्यवस्थित किया गया। यह विशेष आर्थिक क्षेत्र मानचित्रण परियोजना के अंग के रूप में किया गया है। साथ ही दक्षिणी सागरीय क्षेत्रों में वैज्ञानिक अभियानों के दौरान इकट्ठे किए गए आंकड़े भी यहां संग्रहीत हैं