समीर पुष्
भारत इस समय विश् की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उसका लक्ष् प्रति वर्ष स्थायी रूप से 9-10 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर हासिल करना है। अंत: यह आवश्यक है कि विनिर्माण क्षेत्र लंबे अरसे तक 13 से 14 प्रतिशत की दर से विकास करे। परंतु पिछले दो दशकों से विनिर्माण क्षेत्र का योगदान जीडीपी. में 16 प्रतिशत के आसपास ही बना हुआ है। एशिया के अन् देशों के विनिर्माण क्षेत्र में आए परिवर्तनों को देखते हुए भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति विशेष रूप से चिंता पैदा करने वाली हो जाती है। इस अपेक्षाकृत अल् योगदान से पता चलता है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई गतिशीलता से उत्पन् अवसरों का पूरा-पूरा लाभ उठाने में असमर्थ रहा है।

एक युवा देश होने के नाते हम एक तरह से लाभ की स्थिति में हैं-हमारी 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 15 से 59 वर्ष के कार्यशील आयु-समूह में है। सामाजिक-आर्थिक नजरिये से इसका प्रकट रूप यह बताता है कि हमारी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर हद से ज्यादा निर्भर है, बेरोजगारी, विशेष रूप से शहरी बेरोजगारी का प्रच्छन् कारण भी यही है। विश् में सबसे अधिक युवा जनसंख्या वाले हमारे देश में यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। अत: यह जरूरी है कि हम विनिर्माण क्षेत्र में अधूरे कार्य और अनुत्पादक श्रमबल को काम में लाएं ताकि 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर को हासिल किया जा सके। इसीलिए रोजगार सृजन के लिए भारत विनिर्माण क्षेत्र को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। विनिर्माण क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की सम्पन्नता का जनक होता है और रोजगार के सृजन पर इसका गुणात्मक प्रभाव पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र का विकास हमारे प्राकृतिक और कृषि संसाधनों के मूल् संवर्धन के लिए भी महत्वपूर्ण है। हमारी महत्वपूर्ण नीतिगत आवश्यकताओं को पूरा करने और संपोषणीय विकास की दृष्टि से भी विनिर्माण क्षेत्र का संवर्धन जरूरी है। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने एक राष्ट्रीय विनिर्माण नीति तैयार करने का प्रस्ताव रखा है।

प्रस्तावित राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के उद्देश् और मुख् विशेषतायें 2022 तक जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का अंशदान बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक ले जाना, क्षेत्र में रोजगार के वर्तमान अवसरों को दोगुना करना, घरेलू मूल् संवर्धन को बढ़ाना, क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना और देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय हब (केन्द्र स्थल) बनाना है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, नीति का लक्ष् विश्वस्तरीय औद्योगिक ढांचा, एक अनुकूल व्यापारिक वातावरण, तकनीकी नवाचार हेतु एक पर्यावरण प्रणाली-विशेषकर हरित विनिर्माण के क्षेत्र में, उद्योगों के लिए जरूरी कौशल के उन्नयन हेतु संस्थाओं और उद्यमियों के लिए सुलभ-वित् की व्यवस्था का निर्माण करना है।

नीति के तहत जो उपाय प्रस्तावित हैं, उनमें राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्रों की स्थापना, व्यापार के नियमों को युक्तिसंगत और सरल बनाना, बीमार इकाइयों को बंद करने की व्यवस्था को सुगम बनाना, हरित प्रौद्योगिकी सहित प्रौद्योगिकी विकास हेतु वित्तीय और संस्थागत ढांचा तैयार करना, औद्योगिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के उपाय बढ़ाना और विनिर्माण इकाइयों और संबंधित गतिविधियों में अशंधारिता/पूंजी लगाने के लिए प्रोत्साहन देना शामिल हैं।

राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्रों (एनएमआइजेड) की स्थापना औद्योगिक रणनीति का प्रमुख आधार स्तंभ होगा। उनका विकास क्षेत्रीय आधार पर नवीनतम सुविधाओं से युक् ढांचे के साथ एकसमेकित औद्योगिक टाउनशिप के रूप में किया जाएगा। इनका आकार-कम से कम 2000 हेक्टेयर का होगा, और इनके विकास तथा प्रबंधन के लिए विशेष तंत्रों (स्पेशल परपज वेहिकल्) की स्थापना की जाएगी। प्रत्येक एसपीवी एनएमआईजेड के विकास, उन्नयन परिचालन और प्रबंधन का काम करेगी। एमआईजेड के भीतर और बाहर विनिर्माण उद्योगों का त्वरित विकास, उपयुक् नीतिगत उपायों के जरिए होगा। सरकार ने पहला राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्र राजस्थान में प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) परियोजना के साथ-साथ स्थापित करने का निर्णय लिया है। इससे विनिर्माण क्षेत्र को भारी बढ़ावा मिलेगा। सरकार-का इरादा इस तरह के एम.एम.आईजेड का विकास करना है जो केवल आवश्यक ढांचागत सुविधायें प्रदान करे बल्कि देश में विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान कर सके।

राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (एनएमपी) पर एक चर्चा पत्र औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग की वेबसाइट पर 31 मार्च, 2010 को प्रकाशित किया गया था ताकि सभी संबंधित पक्षों के विचारों से अवगत हुआ जा सके। औद्योगिक संगठनों, तकनीकी विशेषज्ञों और सलाहकारों सहित सभी संबंधित पक्षों से व्यापक चर्चा कर एनएमपी का प्रारूप तैयार कर अंतमर्त्रंलाय परामर्श के लिए वितरित किया गया है। प्रारूप को अद्यतन करते हुए केन्द्रीय वाणिज् और उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा ने कहा कि हम सचिवों की समिति गठित कर सकते हैं। नई नीति में भारत को विश् की कार्यशाला बनाने विशेष कर सौर-ऊर्जा जैसे उभरते हरित उद्योगों की ओर खास ध्यान दिया जाएगा।

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