फ़िरदौस ख़ान
स्‍कूलों में मिलने वाला दोपहर का भोजन यानी मिड डे मील भी बच्चों को कुपोषण से बचाने में सहायक साबित नहीं हो पा रहा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) की रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में तीन साल से कम उम्र के क़रीब 47 फ़ीसद बच्चे कम वज़न के हैं. इसके कारण उनका शारीरिक विकास रुक गया है. देश की राजधानी दिल्ली में 33.1 फ़ीसद बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 60.3 फ़ीसद, झारखंड में 59.2 फ़ीसद, बिहार में 58 फ़ीसद, छत्तीसगढ़ में 52.2 फ़ीसद, उड़ीसा में 44 फ़ीसद, राजस्थान में भी 44 फ़ीसद, हरियाणा में 41.9 फ़ीसद, महाराष्ट्र में 39.7 फ़ीसद, उत्तराखंड में 38 फ़ीसद, जम्मू-कश्मीर में 29.4 फ़ीसद और पंजाब में 27 फ़ीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

केंद्रीय बजट में वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए 16,380 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह राशि 10,380 करोड़ रुपये थी. इस राशि में छह सौ करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई है. सरकार ने मिड डे मील की डाइट मनी में भी बढ़ोतरी की है यानी प्राइमरी स्तर पर प्रति बच्चे 20 पैसे और अपर प्राइमरी स्तर पर 30 पैसे का इज़ा़फ़ा किया गया है. प्राइमरी स्कूलों में पहले प्रति विद्यार्थी दो रुपये 69 पैसे दिए जाते थे, लेकिन अब इसे बढ़ाकर दो रुपये 89 पैसे कर दिया गया है. इसी तरह अपर प्राइमरी के प्रति विद्यार्थी पहले 4 रुपये 3 पैसे दिए जाते थे, अब इसे बढ़ाकर 4 रुपये 33 पैसे कर दिया गया है. अब तक प्राइमरी स्कूलों के हर बच्चे को मिड डे मील के राशन में प्रतिदिन 145 ग्राम खु़राक दी जाती रही है. मिडिल तक के बच्चों को क़रीब ढाई सौ ग्राम तक खु़राक दी जानी तय है. प्राथमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी मेन्यू के मुताबिक़, सप्ताह के पहले दिन 80 ग्राम चावल, 50 ग्राम गुड़ या चीनी, 15 ग्राम सोयाबीन के हिसाब से 145 ग्राम खु़राक दी जाएगी. दूसरे दिन पुलाव में 85 ग्राम चावल, 64 ग्राम हरी सब्ज़ी, 10 ग्राम मूंगफली, 5 ग्राम तेल के हिसाब से कुल 164 ग्राम राशन दिया जाएगा. तीसरे दिन पौष्टिक खिचड़ी में 80 ग्राम चावल, 30 ग्राम मूंग दाल, 5 ग्राम रिफ़ाइंड, 10 ग्राम तेल के हिसाब से 125 ग्राम खु़राक दी जाती है. चौथे दिन के दलिया में 85 ग्राम दलिया, 10 ग्राम सोयाबीन, 2 ग्राम घी, 50 ग्राम गुड़ या चीनी के हिसाब से कुल 147 ग्राम खु़राक बच्चों को दी जानी निर्धारित है. पांचवें दिन बच्चों को बाकली दी जाती है, जिसमें गेहूं की मात्रा 60 ग्राम, चना 30 ग्राम, घी 2 ग्राम, मूंगफली 10 ग्राम, आलू 50 ग्राम और हरा धनिया 10 ग्राम के हिसाब से कुल 162 ग्राम की खु़राक देना तय है. मिड डे मील के मानदंड के मुताबिक़, प्राइमरी के बच्चों को 12 ग्राम प्रोटीन एवं 450 ग्राम कैलोरी और अपर प्राइमरी के बच्चों को 20 ग्राम प्रोटीन एवं 700 ग्राम कैलोरी युक्त भोजन दिया जाना तय किया गया है. इसके बावजूद बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं दिया जाता.

इस बारे में राज्यों का कहना है कि लगातार महंगाई बढ़ने से बच्चों को केंद्र के मानदंडों के मुताबिक़, पौष्टिक आहार नहीं दिया जा रहा है. राज्यों ने मिड डे मील योजना के लिए महंगाई के अनुपात में अतिरिक्त राशि दिए जाने की मांग की है. मिड डे मील के बारे में अध्यापकों का कहना है कि आटा 16 रुपये, चावल 30 रुपये, अरहर दाल 85 रुपये, मूंग दाल 65 रुपये, मसूर दाल 65 रुपये, सफ़ेद चना 50 रुपये, मूंगफली 80 रुपये, खाद्य तेल 90 रुपये, कच्चा सोयाबीन 60 रुपये, चीनी 35 रुपये, गुड़ 35 रुपये, आलू 10 रुपये, गोभी 40 रुपये, मटर 70 रुपये, गाजर 40 रुपये, पत्ता गोभी 20 रुपये, पालक 20 रुपये, शिमला मिर्च 20 रुपये, पेठा 20 रुपये और लौकी 20 रुपये प्रति किलो है. मिर्च मसाले भी इतने ही महंगे हैं. ऐसे में इतने कम पैसों में बच्चों को पौष्टिक आहार देना नामुमकिन है. स्कूल के मुखिया को बाज़ार से गुड़, चीनी, तेल या घी, हरी सब्ज़ियां और मिर्च मसाले खु़द ही ख़रीदने पड़ते हैं, जबकि गेहूं एवं चावल प्रदेश सरकार द्वारा मुहैया कराए जाते हैं.

अध्यापकों का कहना है कि कई स्कूलों में पर्याप्त बर्तन भी नहीं हैं. कम बजट की वजह से हर रोज़ किराये के बर्तन नहीं लाए जा सकते, इसलिए बच्चों को मिड डे मील के लिए अपने घरों से ही थाली, कटोरी, चम्मच और गिलास लाना पड़ता है. इसके अलावा भोजन खाने के बाद बच्चों को खु़द बर्तन साफ़ करने पड़ते हैं. इस तरह बर्तनों की साफ़-सफ़ाई में छात्रों का घंटे भर का वक़्त बर्बाद हो जाता है, जिससे पढ़ाई पर असर पड़ता है. इतना ही नहीं, समय पर राशन न पहुंचने पर अकसर बच्चों को दोपहर का भोजन भी नहीं मिल पाता. कई बार सड़ा हुआ दूषित अनाज भी सप्लाई किया जाता है, जिससे बच्चों को सही भोजन दिया जाना मुश्किल हो जाता है. कई बार निदेशालय से मिड डे मील की खु़राक का बजट बढ़ाने की मांग की जा चुकी है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. इस मामले में शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे शासन को इस मांग से अवगत करा चुके हैं. यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है, इसलिए वे इसमें कुछ नहीं कर सकते.

ग़ौरतलब है कि मिड डे मील योजना 15 अगस्त, 1995 में शुरू हुई थी. इस योजना का मक़सद बच्चों को कुपोषण से बचाना है. साथ ही इसके ज़रिये दाख़िले बढ़ाने और स्कूलों में ग़ैर हाज़िरी कम करने पर भी ज़ोर देना है. यह दुनिया के सबसे बड़े पोषण कार्यक्रमों में से एक है. देश के क़रीब पचास हज़ार सरकारी स्कूलों और एजूकेशन गारंटी स्कीम केंद्रों के लगभग 12 करोड़ बच्चों को इसका फ़ायदा पहुंच रहा है. मिड डे मील योजना लापरवाही और भ्रष्टाचार की भी शिकार रही है. बच्चों के भोजन में छिपकली, मेंढक एवं कीड़े मिलना, बच्चों को दूषित भोजन दिया जाना, भोजन से बच्चों का बीमार हो जाना और तयशुदा मात्रा से कम भोजन दिए जाने की शिकायतें भी आम रही हैं.

मिड डे मील के अनाज में हेराफेरी की ख़बरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इस योजना की अनेक ख़ामियां उजागर की गई हैं, जिससे योजना की ज़मीनी हक़ीक़त का पता चलता है. कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मिड डे मील योजना में केंद्र सरकार की ओर से जारी सहायता राशि का इस्तेमाल दूसरी योजनाओं में हो रहा है. इसके अलावा इस राशि को ऑफ़िस ख़र्च के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है. रिपोर्ट बताती है कि केंद्र सरकार या खु़द राज्य सरकार की ओर से जारी फंड को सरकार ने ही इस्तेमाल नहीं किया. वर्ष 2007-08 में केंद्र सरकार ने मिड डे मील के लिए आवंटन राशि बढ़ाकर 7313 करोड़ रुपये कर दी थी, जबकि वर्ष 2002-03 में यह सिर्फ़ 1099 करोड़ रुपये थी. मिड डे मील के लिए कुल बजट आवंटन 19,797 करोड़ रुपये का था, जबकि राज्य सिर्फ़ 18,205 करोड़ रुपये ही ख़र्च कर पाए. इतना ही नहीं, मिड डे मील के तहत स्कूल में बच्चों तक दोपहर का भोजन पहुंचाने में प्रबंधन के स्तर पर भी भारी ख़ामियां दिखीं. कई राज्यों में अनाज पहुंचाने वाली एजेंसी का ख़र्च नहीं दिया गया, जबकि कई राज्यों में यह देखे बिना ही बिल का भुगतान कर दिया गया कि ठेकेदार सही क़िस्म के अनाज की सप्लाई कर रहा है या नहीं. साफ़ निर्देश होने के बावजूद सूखाग्रस्त इलाक़ों में गर्मी की छुट्टियों में मिड डे मील नहीं बांटा गया. साफ़-सफ़ाई और पोषण के स्तर पर निगरानी में भी भारी ख़ामी पाई गई.

दरअसल, कुपोषण के कई कारण होते हैं, जिनमें महिला निरक्षरता से लेकर बाल विवाह, प्रसव के समय जननी की उम्र, पारिवारिक खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य की देखभाल, टीकाकरण, स्वच्छ पेयजल आदि मुख्य रूप से शामिल हैं. हालांकि इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन इसके बावजूद संतोषजनक नतीजे सामने नहीं आए हैं. देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या भी इन सरकारी योजनाओं को धूल चटाने की अहम वजह बनती रही है, क्योंकि जिस तेज़ी से आबादी बढ़ रही है उसके मुक़ाबले में उस रफ़्तार से सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा उदारीकरण के कारण बढ़ी बेरोज़गारी ने भी भुखमरी की समस्या पैदा की है. आज भी भारत में करोड़ों परिवार ऐसे हैं, जिन्हें दो वक़्त की रोटी भी नहीं मिल पाती. ऐसी हालत में वे अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन भला कहां से मुहैया करा पाएंगे. एक कुपोषित शरीर को संपूर्ण और संतुलित भोजन की ज़रूरत होती है. इसलिए सबसे बड़ी चुनौती फ़िलहाल भूखों को भोजन मुहैया कराना है. हमारे संविधान में कहा गया है कि सरकार पोषण स्तर में वृद्धि और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में समझेगी, मगर आज़ादी के छह दशकों बाद भी 46 फ़ीसद बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हों तो ज़ाहिर है कि सरकार अपने प्राथमिक संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में नाकाम साबित हुई है.

आज के बच्चे कल का भविष्य हैं. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि उन्हें भरपेट संतुलित आहार मिले. इसके लिए सरकार को पंचायती स्तर पर प्रयास करने होंगे. हमारे देश में अनाज के भंडार भरे हुए हैं, ऐसी हालत में भी अगर बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं तो इसकी जवाबदेही सरकार और प्रशासन की है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में क़रीब 73 लाख बच्चे मिड डे मील से वंचित हैं. इतना ही नहीं, स्कूलों में 200 दिन के बजाय सिर्फ़ 131 दिन ही बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाता है. राजधानी दिल्ली में हुए एक सम्मेलन में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आला अफ़सरों ने यह बात स्वीकार की कि मिड डे मील के मामले में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी पीछे हैं. इन राज्यों में सिर्फ़ 20 फ़ीसद बच्चों को मिड डे मील मिल पा रहा है.

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