फ़िरदौस ख़ान
भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर आख़िरकार कांग्रेस ने बड़ी सियासी लड़ाई जीत ही ली. इस मुद्दे पर राहुल गांधी और कांग्रेस के 44 सांसदों ने भाजपा के 282 सांसदों को झुकाकर ही दम लिया. विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश कल ख़त्म हो गया और इसकी जगह पर अब 2013 का संबंधित क़ानून फिर से प्रभावी हो गया है. केंद्र सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून में कई बदलाव करते हुए पिछले साल दिसम्बर में एक अध्यादेश जारी किया था, जिसकी मियाद दो बार बढ़ाई गई थी. सरकार संसद के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लाई थी. इसे लोकसभा में पारित कराया गया था, लेकिन कांग्रेस के सख़्त विरोध के मद्देनज़र इसे राज्यसभा में नहीं ला पाई. बजट सत्र के दूसरे चरण में इस विधेयक को संसद की संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था, जिसे मानसून सत्र की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट देनी थी. लेकिन समिति तयशुदा वक़्त पर अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई. उसने इसके लिए शीतकालीन सत्र की शुरुआत तक का वक़्त ले लिया.
पिछली बार जारी अध्यादेश की अवधि 31 अगस्त को ख़त्म हो गई है. प्रधानमंत्री ने रविवार को मन की बात में भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि इसके विरोध के मद्देनज़र सरकार ने यह फ़ैसला लिया है. उन्होंने कहा कि सरकार 13 अन्य क़ानूनों के तहत अधिग्रहित की जाने वाली ज़मीन का मुआवज़ा भी भूमि अधिग्रहण क़ानून के अनुरूप देगी. अब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग, पुरातत्व अधिनियम और रेलवे अधिनियम जैसे 13 केंद्रीय अधिनियमों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के दायरे में लाने का आदेश जारी किया है. इनमें प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व धरोहर अधिनियम-1958, परमाणु ऊर्जा अधिनियम-1962, दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन अधिनियम-1948, भारतीय ट्रामवे अधिनियम-1886, खदान भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1885, मेटो रेलवे (निर्माण कार्य) अधिनियम-1978, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956, पेट्रोलियम एवं खनिज पाइप लाइन भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1962, विस्थापित पुनर्वास (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम-1948, कोयला धारण क्षेत्र एवं विकास अधिनियम-1957, बिजली अधिनियम-2003 और रेलवे अधिनियम-1989 शामिल हैं. इन अधिनियमों के तहत ज़मीन अधिग्रहण होने पर भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधान लागू होंगे. केंद्र सरकार के अधिकारियों के मुताबिक़ इससे उन लोगों को फ़ायदा होगा, जिनकी ज़मीन इन 13 क़ानूनों के तहत अधिग्रहित की जाएगी. इस आदेश से केंद्रीय क़ानूनों के तहत भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में उचित मुआवज़ा, पुनर्वास और पुन:स्थापन संबंधित प्रावधान लागू होंगे. संप्रग सरकार द्वारा पास किए गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में शर्त थी कि इन 13 केंद्रीय अधिनियमों पर भी एक साल के भीतर इस क़ानून के प्रावधान लागू हो जाएंगे. भाजपा सांसद एसएस अहूलवालिया की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति राजग सरकार द्वारा लाए गए संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक की जांच कर रही थी, इसलिए सरकार के इस ताज़ा आदेश में उन उपधाराओं को नहीं छुआ गया है, जिसे संशोधित कर संप्रग सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक को बदल दिया गया था.
भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का कांग्रेस समेत तक़रीबन सभी विपक्षी दल और सरकार में शामिल कुछ दल भी लगातार विरोध करते रहे हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ने अध्यादेश के ज़रिये यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में जो संशोधन किए हैं, वे पूरी तरह से किसानों के हितों के ख़िलाफ़ हैं. क़ाबिले-ग़ौर है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुवाई में केंद्र सरकार के नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के ख़िलाफ़ एक मुहिम शुरू की थी, जिसके तहत राहुल गांधी ने न सिर्फ़ पद यात्राएं कीं, बल्कि रैलियों को भी संबोधित किया. देशभर में कांग्रेस ने नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के ख़िलाफ़ जमकर प्रदर्शन किए. कांग्रेस की इस मुहिम को किसानों का ज़बरदस्त समर्थन मिला. राहुल गांधी ने कहा था कि संसद में भले ही हमारी तादाद कम है, लेकिन देश के करोड़ों किसानों की ताक़त हमारे साथ है और हम किसानों की एक इंच ज़मीन भी छिनने नहीं देंगे. उन्होंने कहा था कि सरकार के पास ज़मीन है, प्रदेश सरकारों के पास ज़मीन है, सेज़ के पास 40 फ़ीसद ज़मीन ख़ाली पड़ी है, लेकिन सरकार उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किसानों की ज़मीन छीन लेना चाहती है, लेकिन कांग्रेस ऐसा होने नहीं देगी. किसान अकेले नहीं हैं, कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को किसानों की ताक़त दिखाने का फ़ैसला कर लिया है.
बहरहाल, कांग्रेस ख़ुश है कि उसने भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर केंद्र सरकार को अपने क़दम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पटना में आयोजित रैली में कह दिया कि संसद में विपक्ष की लड़ाई रंग लाई है. कांग्रेस ने इसे यूपीए सरकार की नीतियों और किसानों की जीत क़रार दिया है.