वन और पर्यावरण संरक्षण के व्यापक मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए 1972 से दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘लोगों को प्रकृति से जोड़ना’ है. इस दिवस के अवसर पर लोगों को घरों से बाहर निकलकर प्रकृति के संसर्ग में उसकी सुंदरता की सराहना करने तथा जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उसके संरक्षण का आग्रह किया जाता है.
इन वर्षों में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों का प्रकृति से अलगाव बढ़ रहा है.
आधुनिक व्यक्ति के जीवन में व्यस्तता है और उसका दिमाग तो और भी व्यस्त है. ऐसी परिस्थितियों में मन को शांत करने के लिए प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना अति महत्वपूर्ण है. शहरों में उपलब्ध हरित स्थानों विशेष रूप से वृक्षों और पार्कों के जरिये लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने का अवसर मिलता है.
प्रकृति से दोबारा जुड़ने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (एनईएसी) शुरू किया है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, महिला और युवा संगठनों को पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. प्रकृति के संरक्षण और पर्यावरण संबंधित समस्याओं के समाधान से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने में लगभग 12000 संगठन शामिल हैं.
पारम्परिक रूप से तीर्थयात्रा के केंद्र मुख्य रूप से प्राकृतिक परिवेश विशेष रूप से पहाड़ों या नदियों के तटों पर स्थित होते हैं. हिमालय में चार धाम यात्रा इसका उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे हमारी संस्कृति देश भर के लोगों को श्रद्धा से वृक्षों, नदियों और पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने का अवसर प्रदान करती है. ऋषिकेश में गंगा नदी के तट से शुरू होने वाली इस यात्रा का मार्ग यमुना और गंगा नदी के उद्गम स्थल तक का है, जो पवित्र तीर्थस्थल हैं और करोड़ों लोग वहां जाते हैं.
जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ गुफा और चीन के तिब्बती पठार में कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के मार्ग में भी कई असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य के स्थल हैं, जिनका आम आदमी के लिए काफी आध्यात्मिक महत्व है. तीर्थयात्रा के ये मार्ग प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ने के मुख्य तरीके हैं और मानव, प्रकृति तथा आध्यात्मिकता के बीच अंतर संयोजनात्मकता को दर्शाते हैं.
इसी प्रकार नर्मदा परिक्रमा भी एक और परम्परागत तीर्थयात्रा का मार्ग है, जिसमें लोग नर्मदा नदी के तट के साथ-साथ चलते हुए नदी की सुंदरता और प्राकृतिक परिवेश की सराहना करना सीखते हैं.
देश के कुल भगौलिक क्षेत्र के दो प्रतिशत इलाकों में बने मौजूदा 166 राष्ट्रीय उद्यान और 515 वन्यजीव अभ्यारण्यों से भी लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने, वन्य जीवन और देश के हरित स्थलों को आनंद लेने का अवसर मिलता है.
प्राकृतिक संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर हरियाली को बढ़ावा देने तथा सभी प्रकार के अपशिष्ट को कम करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. शहरी क्षेत्रों में सड़क निर्माण और खुले स्थानों पर फर्श तथा सीमेंट लगाने के जुनून के कारण युवा पीढ़ी प्रकृति से दूर हो गई है. सड़कों को चौड़ा करने के लिए पुराने वृक्षों को गिराने और पैदल यात्री तथा साईकिल चालकों से अधिक स्थान वाहनों के लिए रखने से शहरी नागरिकों का प्रकृति से जुड़ाव और कम हुआ है. सभी हितधारकों तथा समुदाय की सक्रिय भागीदारी से शहरी पारिस्थितिकी को कायम रखा जा सकता है.
प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना आधुनिक समय के तनाव को कम करने तथा व्यक्ति और समुदाय में सद्भाव लाने में मददगार होता है. हरियाली से न केवल शोर और ध्वनि प्रदूषण कम होता, बल्कि तापमान कम करने में भी मदद मिलती है, जो जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में सहायक है.
भारत सरकार विश्व पर्यावरण दिवस पर देश भर के 4000 शहरों में विशाल अपशिष्ट प्रबंधन अभियान शुरू कर रही है. इस अभियान के अंतर्गत इन शहरों में कूड़ा एकत्र करने के नीले और हरे रंग के डिब्बे वितरित किए जाएंगे तथा आम लोगों को अपनी जीवन शैली में स्वच्छता की संस्कृति अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा.
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा, “मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम स्वच्छता हासिल करने की दिशा में संस्कृति विकसित करेंगे और उसे जारी रखने के लिए नये कदम उठाएंगे. तभी हम गांधीजी के उस सपने को साकार कर सकेंगे, जो उन्होंने स्वच्छता के लिए देखा था”.
सरकार का उद्देश्य मूल स्थान पर ही सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग करने में लोगों की आदत में बदलाव लाना है ताकि तद्नुसार कूड़े का प्रबंधन किया जा सके. यह शहरों की स्वच्छता का आधार होगा, जिससे शहर अधिक प्रकृति अनुकूल बनेंगे तथा रहने के लिए स्वच्छ बुनियादी स्थिति उपलब्ध होगी. यह स्वच्छ भारत अभियान (एसबीए) का तार्किक अनुकरण है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में कूड़े के ढ़ेर के निपटान की समस्या से निपटने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे भूजल पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा कूड़े के ढ़ेर के आसपास की हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है. यह एक चुनौती भरा कार्य है क्योंकि लोगों की आदत बदलने की आवश्यकता है, ताकि कूड़े को अलग करने का कर्तव्य या धर्म निभाने के लिए प्रत्येक परिवार के ये लोग बदलाव के दूत बनें.
भारतीय संस्कृति में प्रकृति के साथ जुड़ना ज्ञान और शांति प्राप्त करने का आधार है. संत या ऋषि जंगलों या अरण्य संस्कृति से ज्ञान प्राप्त करते हैं. वे प्रकृति के साथ सद्भाव से रहते हैं और अपने प्राकृतिक परिवेश से अधिकतर ज्ञान आत्मसात करते हैं.
प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ने के लिए हमें इन विचारों को अपनी दैनिक गतिविधियों में शामिल करने की आवश्यकता है. आम व्यक्ति के लिए ये जानना आवश्यक है कि जो सांस वह लेता है, पानी पीता है, भोजन खाता है, वे सभी प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति के उत्पाद हैं और प्रकृति से जुड़ाव मानव जाति के जीवित रहने का आधार है.
(लेखक कर्नाटक में स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं)