शाम काफ़ी हो चुकी है
पर अंधेरा नहीं हुआ है अभी
हमारे शहर में तो इस वक़्त
रात का सा माहौल होता है
छोटे शहरों में शाम जल्दी घिर आती है
बड़े शहरों के बनिस्पत
लोग घरों में जल्दी लौट आते हैं
जैसे पंछी अपने घोंसलों में
पर अंधेरा नहीं हुआ है अभी
हमारे शहर में तो इस वक़्त
रात का सा माहौल होता है
छोटे शहरों में शाम जल्दी घिर आती है
बड़े शहरों के बनिस्पत
लोग घरों में जल्दी लौट आते हैं
जैसे पंछी अपने घोंसलों में
यह क्या है
जो मैं लिख रही हूं
शाम या रात के बारे में
जबकि मैं पढ़ने बैठी थी नाज़िम हिकमत को
कि अचानक याद आये मुझे मेरे पिता
आज वर्षों बाद
कुछ समय उनका साथ मिला
अक्सर हम इतने बड़े हो जाते हैं कि
पिता कहीं दूर छूट जाते हैं
पिता के मेरे साथ होने से ही
वह क्षण महान हो जाता है
याद आता है मुझे मेरा बचपन
मैक्सिम गोर्की के बचपन की तरह
याद आते हैं मेरे पिता
और उनके साथ जीये हुए लम्हें
हालांकि उनका साथ उतना ही मिला
जितना कि सपने में मिल मिलते हैं
कभी कभार ख़ूबसूरत पल
उन्हें ज़्यादातर मैंने
जेल में ही देखा
अन्य क्रान्तिकारियों की तरह
मेरे पिता ने भी मुझसे सलाखों के उस पार से ही किया प्यार
उनसे मिलते हुए
पहले याद आती है जेल
फिर उसके पीछे लोहे की दीवार
उसके पीछे से पिता का मुस्कुराता हुआ चेहरा
वे दिन
जब मैं छोटी थी
उनके पीछे पीछे भागती
लगभग दौड़ती थी
जब मैं थक जाती
थाम लेती थी पिता की उंगलियां
उनके व्यक्तित्व में मैं ढली
उनसे मैंने चलना सीखा
चीते की तरह तेज़ चाल
आज वे मेरे साथ चल रहे हैं
साठ पार कर चुके मेरे मेरे पिता
कई बार मुझसे पीछे छूट जाते हैं
यह क्या
यह वही पिता है मेरा
साहसी और फुर्तीला
सोचते हुए मैं एकदम से रुक जाती हूं
क्या मेरे पिता बूढ़े हो रहे हैं
आख़िर पिता बूढ़े क्यों हो जाते हैं
पिता! तुम्हें बूढ़ा नहीं होना चाहिए
ताकि दुनिया भर की सारी बेटियां
अपने पिता के साथ
दौड़ना सीख सके
दुनिया भर में...
-असीमा भट्ट
*नाज़िम हिकमत : तुर्की के महान क्रांतिकारी और कवि
*मैक्सिम गोर्की : रुस के महान साहित्यकार