अतुल मिश्र
पुरातत्व-शास्त्र वह विज्ञान है, जो पुरानी वस्तुओं का अध्ययन व विश्लेषण करके मानव-संस्कृति के विकास-क्रम को समझने एवं उसकी व्याख्या करने का कार्य करता है। यह विज्ञान प्राचीन काल के अवशेषों और सामग्री के उत्खनन के विश्लेषण के आधार पर अतीत के मानव-समाज का सांस्कृतिक-वैज्ञानिक अध्ययन करता है। इसके लिये पूर्वजों द्वारा छोड़े गये पुराने वास्तुशिल्प, औज़ारों, युक्तियों, जैविक-तथ्यों और भू-रूपों आदि का अध्ययन किया जाता है। संस्कृत के शब्द 'पुरा' उपसर्ग से बना 'पुरातत्व' यूनानी शब्द 'अर्कियोलोजिया' से निर्मित 'आर्कियोलोजी' शब्द का हिन्दी पर्याय है।
आजादी के बाद इतिहास के दृष्टिकोण से पुरातत्व के क्षेत्र में जितना कार्य होना चाहिए था, वह नहीं हो सका और शायद जिसकी वजह अंग्रेजों द्वारा लिखित पक्षपातपूर्ण इतिहास के अनुसरण की गुलाम मानसिकता ही रही। पुरातत्व और इतिहास-लेखन को लेकर कुछ तो शासन का ढुलमुल रवैया भी रहा और कुछ जनचेतना भी संबंधित विभागों द्वारा जाग्रत नहीं की जा सकी। जिन कुछेक पुराविद् और इतिहासकारों ने इस दिशा में भारतीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण और मौलिक कार्य किए भी थे, उन्हें हमेशा के लिए या तो मुख्यधारा से एकदम अलग कर दिया गया, या एकदम नकार दिया गया। ऐसे माहौल से निकलकर अब अनेक पुराविद् अपने मौलिक शोध और अनुसंधान के जरिए प्रामाणिक और तथ्यपरक ज्ञान प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे ही एक प्रख्यात पुराविद् हैं श्री विजय कुमार जी, जो यूपी पुलिस के महानिदेशक (सीबीसीआईडी) होने के बावजूद अपनी प्राचीन धरोहर को 'इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी' के माध्यम से संरक्षित और दुनिया भर में प्रसारित कर रहे हैं। उनका यह कार्य अनेक वर्षों से अपने सेवा-समय से अलग रात-रात भर जागकर चल रहा है। पुरातत्व के प्रति उनका समर्पण जुनून की हद तक है। यही कारण है कि देश भर में घूम कर वे अब तक लाखों ध्वंसावशेषों और पुरावशेषों को छायांकित और विवरणांकित कर अपने जर्नल में प्रकाशित कर चुके हैं। इसी क्रम में वे रुहेलखंड की प्राचीन समृद्ध धरोहर पर भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। रुहेलखंड की अनमोल सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते 'पं. सुरेंद्र मोहन मिश्र संग्रहालय' के कई हज़ार दुर्लभ पुरावशेषों को स्वयं छायांकित कर विवरण सहित उनका प्रकाशन भी वे 'इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी' में कर चुके हैं। इससे इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास को विभिन्न नये आयामों से देखा जा सकेगा।
'इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी' में पुरातत्व और ऐतिहासिक शोधों के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण है। यह शैक्षिक अनुसंधान ऐसे मंच को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को उनके द्वारा संचित डेटा और विचारों को प्रस्तुत करने का आदर्श अवसर प्रदान करता है। यह दुनिया भर में पुरातत्व में अध्ययन और अनुसंधान करने वाले लोगों को एक मंच पर लाने और कठिन अनुभवजन्य डेटा का मिलान और विश्लेषण करके मुख्य मुद्दों को हल करने की दिशा में काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस बारे में एक विस्तृत वार्ता के दौरान विजय कुमार जी ने बताया कि "हम विद्वानों के शोध-पत्रों और अध्ययनों को प्रकाशित करके शिक्षा-जगत को सभी सूक्ष्म विवरणों के साथ नया डेटा उपलब्ध कराना चाहते हैं। विद्वान शिक्षाविद् से लेकर स्व-शिक्षित व्यक्ति तक कोई भी हो सकता है, जो शिक्षण या शोध में कैरियर बना रहा है। भारतीय पुरातत्व से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने और पुरातात्विक तथा ऐतिहासिक शोधों में नई तकनीकों और पद्धतियों को विकसित करने के लिए भी यह मंच सभी विद्वतजनों को खुला है।"
वे आगे बताते हैं कि "पुरातत्व और इतिहास के क्षेत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करके एक ऐसा मंच तैयार करना चाहते हैं, जहां अलग-अलग स्थलों के पुरातात्विक आंकड़ों को व्यापक प्रसार और चर्चा के लिए रखा जा सके।" 'नेशनल ट्रस्ट फॉर प्रमोशन ऑफ नॉलेज' नाम का संगठन, जो पत्रिका (आईजेए) प्रकाशित कर रहा है, लोगों के बीच अत्याधुनिक ज्ञान का प्रसार करने के लिए समर्पित है।इसका उद्देश्य जल-ग्रहण क्षेत्र को बड़ा बनाना है, जहां से हम शोधकर्ताओं को चुनते हैं। इसका उद्देश्य विकास और ज्ञान के सृजन की प्रक्रिया में उनकी रचनात्मक भागीदारी करना सुनिश्चित करना है। हमारा उद्देश्य पुरातत्व-अनुसंधान के क्षेत्र में नए दृष्टिकोण प्रस्तुत करना और इस क्षेत्र में नई तकनीकों और पद्धतियों को विकसित करना है। यह 'ज्ञान के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय न्यास' का एक शोध जर्नल है। यह एक ऐसा संस्थान है, जो अत्याधुनिक ज्ञान को लोगों तक ले जाने और ज्ञान के विकास की प्रक्रिया में उनकी रचनात्मक भागीदारी को बड़ा बनाने के लिए समर्पित मंच है। इसका मुख्य उद्देश्य पुरातत्व के सभी उत्साही लोगों, जैसे अनुसंधान करने वाले विद्वानों, शिक्षाविदों और अन्य उपलब्धि हासिल करने वालों को आमंत्रित करना और एकेडेमिक दुनिया के लिए आसानी से उपलब्ध अपने डेटा को ठोस और उपयोगी रूप में बदलने के लिए सहायता प्रदान करना है।"
पुरातत्व के प्रति जनता में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए वे कहते हैं कि "यदि किसी के पास अतीत का खुलासा करने वाली कुछ प्रासंगिक जानकारी है, तो कृपया आगे आएं, एक लेख लिखें और दूसरों को इसके बारे में बताएं। यदि आप पुरावशेषों के संग्राहक हैं और आपके पास ऐसी कोई वस्तु है, जिसे आपके बाद भुला दिए जाने की संभावना है, तो इसके बारे में लिखें। हम आपके द्वारा प्रदान की गई जानकारी को प्रदर्शित करेंगे। यदि आप किसी ऐसे स्मारक को जानते हैं, जो नष्ट होने के कगार पर है, तो कृपया उसका दस्तावेजीकरण करें और प्रकाशन के लिए हमारे जर्नल को दें। हमारे पास तस्वीरों के लिए पर्याप्त जगह है, इसलिए स्थिति के पूर्ण विवरण के लिए कृपया अधिक से अधिक तस्वीरें भेजें। हम आपको एक ऐसी पत्रिका देना चाहते हैं, जो वास्तव में अखिल भारतीय चरित्र वाली हो, जहां पूरे भारत के पुरातत्व से संबंधित कागजात एक ही स्थान पर प्रकाशित हों और उन्हें समानुपातिक स्थान और विद्वानों का ध्यान प्राप्त हो।"
श्री विजय कुमार जी द्वारा यह हमारे राष्ट्र की विरासत को तत्थ्यात्मक रूप से सामने लाने का एक बहुत महत्वपूर्ण और महान कार्य है, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियां लाभान्वित हो सकेंगी। कुछ संगठन और आरामकुर्सीपरस्त पुरातत्वविद् जमीन में गहरे दबे हुए अतीत को खोजने का काम पूरा नहीं कर सकते। इन सबसे अलग हमें प्राचीन स्थलों पर रहने वाले आम आदमी की मदद लेनी होगी और उसे प्रतिदिन देखे जाने वाले विभिन्न पुरावशेषों के बारे में लिखने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। इस दिशा में 'इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी' वाकई बहुत परिश्रम और लगन के साथ उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में यह कुछ नवीन संभावनाओं के द्वार खोलने वाला प्रशंसनीय प्रयास है।