चांदनी
नई दिल्ली. नये किडनी स्टोन के इंटरनेशनल दिशा-निर्देशों के मुताबिक पांच मिमी से कम का किडनी स्टोन होने पर उपचार की जरूरत नहीं होती और यह चार हफ्तों में बाहर निकल जाता है।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक 5 से 10 मिमी के बीच के स्टोन में सिर्फ 20 फीसदी मामलों में इसके निकलने की संभावना रहती है। 10 मिमी से ज्यादा का स्टोन होने पर नॉन मेडिकल इंटरवेंषन की जरूरत होती है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि नये दिशा-निर्देशों में उन दवाओं को भी शामिल किया गया जिससे स्टोन के खात्मे में मदद के साथ ही मांसपेशियों को राहत मिलती है। ये दवाएं हैं- नाइफीडिपाइन (कैल्शियम चैनल ब्लॉकर) एल्फा ब्लॉकर और स्टीरॉयड्स।

अभी तक ऐसा माना जाता है कि रीनल स्टोन का पता लगाने के लिए इंट्रावीनस पाइलोग्राफी सबसे बढ़िया तरीका है, लेकिन अब यह बिना किसी भी तरह के भ्रम से साबित हो चुका है कि मरीज के किडनी में दर्द होने पर रीनल स्टोन की आषंका रहती है और इसे पेट के सी टी स्कैन से सही पता लगा लिया जाता है। दिशा-निर्देशों के मुताबिक स्टोन का ओपन रिमूवल पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया है। लीथोट्रिप्सी, पीसीएनएल और यूरेट्रोस्कॉपी के जरिए ओपन सर्जिकल प्रक्रिया को अपनाया जाता है। उत्तरी भारत को स्टोन बेल्ट माना जाता है जहां किडनी के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं।


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