अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर गये पर न लगा जी तो किधर जाएंगे
सामने-चश्मे-गुहरबार के, कह दो, दरिया
चढ़ के अगर आये तो नज़रों से उतर जाएंगे
ख़ाली ऐ चारागरों होंगे बहुत मरहमदान
पर मेरे ज़ख्म नहीं ऐसे कि भर जाएंगे
पहुंचेंगे रहगुज़रे-यार तलक हम क्यूंकर
पहले जब तक न दो-आलम से गुज़र जाएंगे
आग दोजख़ की भी हो आएगी पानी-पानी
जब ये आसी अरक़े-शर्म से तर जाएंगे
हम नहीं वह जो करें ख़ून का दावा तुझपर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएंगे
रुख़े-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहरो-मह नज़रों से यारों के उतर जाएंगे
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उनको मैख़ाने में ले लाओ, संवर जाएंगे
-ज़ौक़
ग़ालिब की डायरी है दस्तंबू
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*फ़िरदौस ख़ान*
हिन्दुस्तान के बेहतरीन शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने उर्दू शायरी को नई ऊंचाई दी.
उनके ज़माने में उर्दू शायरी इश्क़, मुहब्बत, विसाल, हिज्र और हुस्...
