संजय आहूजा
आजकल पृथ्वी के अति-ऊष्मीकरण का सब जगह ही बोलबाला है. जहां देखिए, यही मुद्दा छाया है. राष्ट्रों के बीच समझौते होने की कगार पर बातचीत समाप्त हो जाती है और फिर एक नई बैठक होती है. ऐसा इसी कारण हो रहा है कि सभी अपना स्वार्थ सर्वोपरि रखकर दूसरों से कटौती करवाना चाहते हैं. विकसित देश विकासशील देशों को दबाना चाहते हैं और विकासशील देश विकसित देशों से कटौती चाहते हैं. मगर इसमें राष्ट्रों के अलावा दो और भी स्रोत हैं जो मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. वे हैं हमारे पूजनीय अरुण और वरुण. अरुण यानी सूर्य और वरुण यानी जल. जहां एक ओर सूर्य पृथ्वी के ऊष्मीकरण को बढ़ा रहा है वहीँ दूसरी ओर जल इस ऊष्मीकरण को टाल रहा है. प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र की ओर से 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. इस दिन जल के सदुपयोग पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
जल हमारे लिए कितना आवश्यक है इसका पता इसी से लग जाता है कि ये पंच महाभूतों में एक है. हमारे शरीर का 71% अंश केवल जल है. इसमें हमारा रक्त, लार, अन्य जलीय अम्ल और आंसू तथा पसीने की ग्रंथियां सब शामिल हैं. हमारे शरीर का तापमान भी यही जल संचालित करता है. हमारे शरीर की ही तरह पृथ्वी पर भी 71% ही जल संसाधन है. मगर समस्या ये है कि इसमें से अधिकांश खारा होने के कारण हमारे लिए उपयोगी नहीं है. केवल 1% ही पेयजल पृथ्वी पर है. इस 1% का 70% संसाधन तो कृषि के लिए उपयुक्त होता है. बचे हुए का दो तिहाई औद्योगिक प्रणालियों में लग जाता है और शेष एक तिहाई यानी कुल संसाधन का 0.1% (दशमलव एक प्रतिशत) ही घरेलू उपयोग में आता है.
विश्व भर में कृषि उद्योग में केवल फलें नहीं आतीं. खाने के लिए जो मांस आता है वेह भी कृषि में ही गिना जाता है. और आंकड़े बताते हैं कि एक किलो मांस की पैदावार के लिए जितना जल उपयुक्त होता है, उतना ही जल एक हेक्टेयर ज़मीन में अनाज उगाने में लगता है. भारत जैसे देश में जहां पानी की इतनी कमी है यहां मांसाहार कितना सही है इसका फैसला आप स्वयं कर सकते हैं. दूसरा कारण है कि आज के उद्योगों में जितना भी सामान बन रहा है, सब कुछ जल संसाधन पर निर्भर है. जैसे यदि हम स्टील का उदहारण लें तो एक टन स्टील बनाने में करीब तीन लाख लीटर पानी की लागत आती है. और यही अब हम बीयर के बनने का जल का उपयोग देखें तो 1 लीटर बीयर बनाने के लिए 150 लीटर पानी लगता है, यानी कोई 1 लीटर बीयर पीता है तो वह उस दिन 75 लोगों के बराबर पानी पी जाता है (औसतन 1 आदमी एक दिन में 2 लीटर पानी पीता है). यानी कोई अगर इस देश से प्यार करता है तो बीयर पीना और मांस खाना छोड़ दे. यदि सभी देशवासी ये सौगंध ले-लें कि शराब और मांसाहार छोड़ देंगे तो इस देश की खाद्य और पेयजल समस्या वैसे ही काफी हद तक समाप्त हो जाए. अभी तो मैंने कोई और आदत सुधारने की बात की भी नहीं है जैसे नल खुला छोड़ना, टपकने देना, फ़व्वारा चलाकर नहाना, नल चलाकर दांत साफ़ करना या दाढ़ी बनाना इत्यादि. यदि हम पेट्रोल के आंकड़े भी देखें तो १ लीटर पेट्रोल बनाने के लिए 462 लीटर जल की ज़रूरत पड़ती है. यानी एक लीटर पेट्रोल बचाने पर हमने 231 लोगों के एक दिन के पानी की व्यवस्था भी कर दी. सोचिए केवल सदुपयोग से आप कितने लोगों का भला कर सकते हैं और अपने पैसे और वातावरण की भी सुरक्षा हो जाती है.
अंतिम बात जो बहुत हद तक शहरीकरण से संबंधित है और वह है धरती के अन्दर का जलस्तर घटना. वैसे तो यदि हम शाकाहारी हो जाएं और मदिरापान बंद कर दें तो पानी की आवश्यकता इतनी घट जाएगी कि हमें धरती से पानी खींचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. मगर जब तक ऐसा नहीं होता (वैसे भी ऐसा होना काफी हद तक असंभव ही है चाहे वही जीवन जीने का असली सलीका भी हो) तब तक तो यह चिंता बनी ही रहेगी कि इस घाटे को कैसे पूरा किया जाए. तो जल के सदुपयोग के अलावा कोई चारा ही नहीं है. उपर्युक्त तरीकों को अवश्य प्रयोग में लायें ताकि जल संसाधन का सही उपयोग हो और जलस्तर घटने न पाए. क्योंकि यही जल हमारे और हमारी संतानों के आने वाले जीवन में काम आएगा. सरकारी तंत्र को चाहिए कि वे भी गंदे और सड़े-गले पाइप हटाकर साफ़ पाइप लगवाए, ताकि रास्ते में लीकेज के कारण जल की बर्बादी न हो. दिल्ली में वर्ष में यहां 28.15 करोड़ क्यूबिक मीटर जल बढ़ता है मगर धरती से 47.95 करोड़ क्यूबिक मीटर जल निकाल लिया जाता है. यानी 19.8 करोड़ क्यूबिक मीटर जल अधिक निकाल लिया जाता है. जिससे दिल्ली का जलस्तर तेज़ी से घट रहा है. कौन कहेगा 40 वर्ष पहले इसी दिल्ली में सब-सोइल वाटर काम्मिशन हुआ करता था जिसका काम था ज़मीन से अतिरिक्त पानी को निकालकर उसे रहने लायक बनाना. समस्या इस स्थिति तक पहुंच गई है कि वाटर हार्वेस्टिंग (पानी को बहकर बर्बाद होने से बचाकर ज़मीन में पहुंचाना) एक आवश्यकता बन गई है.
याद रखें - जल ही जीवन है - बिना खाए हम महीना भर भी काट सकते हैं पर बिना जल के एक सप्ताह भी काटना मुश्किल है. यही एहसास करवाने के लिए विश्व जल दिवस मनाया जाता है. आइये सौगंध लें कि हम जल के सदुपयोग का ध्यान रखेंगे और जल जो घरों तक केवल 1% ही पहुंच पाता है उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे.