दीपक सेन
नई दिल्ली. काका हाथरसी पुरस्कार से सम्मानित जाने माने कार्टूनिस्ट इरफान ने कहा कि लोगों में खुद पर हंसने की क्षमता कम होने के कारण ही कार्टूनों के प्रति रूचि खत्म हो रही है।

इरफान ने 'भाषा' के साथ खास बातचीत में कहा, ''वर्तमान समय में लोगों में अपने आप पर हंसने की क्षमता बेहद कम हो गई है और इसके कारण उनकी सहनशक्ति काफी कम हो गयी है।'' गौरतलब है कि हिन्दी अकादमी दिल्ली का काका हाथरसी पुरस्कार इरफान को ऐसे वक्त में दिया गया है जब अखबारों से कार्टून का कोना गायब हो रहा है और यह कला खत्म होने की कगार पर पहुंच गयी है।

उन्होंने कहा कि व्यंग्य हमेशा व्यक्ति को सुधारने का काम करता है और यह लोगों को मुकम्मल इंसान बनाता है।

अखबारों से गायब होते कार्टून के कोने के बारे में उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं इसमें समाचार पत्रों की भी कमी है। बदलते वक्त में संपादक की जगह प्रबंधकों ने ले ली है, जिनको कार्टून में पीत पत्रकारिता दिखाई देती है।

उन्होंने कहा कि धारदार कार्टून छापने में आजकल के संपादकों को कठिनाई होती है। कार्टूनिस्ट और इलेस्ट्रेटर के बीच फर्क नहीं किया जा रहा है। जहां कार्टूनिस्ट संपादकीय टीम का हिस्सा होता है, वहीं इलेस्ट्रेटर तकनीकी टीम का सदस्य होता है।

इरफान ने कहा कि किसी जमाने में अखबार में संपादकीय पृष्ठ, फोटो और कार्टून अनिवार्य होता था। फिर ऐसा क्या हो गया कि कार्टून का कोना ही अखबारों ने समाप्त हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिन्दी अकादमी ने कार्टूनिस्ट को पुरस्कार देकर सिमटती हुई इस कला को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है और यह पुरस्कार केवल मुझे नहीं बल्कि कार्टून विधा को दिया गया है।

उन्होंने कहा कि इस तरह के पुरस्कार बताते हैं कि लोग काम कर रहे हैं, जरूरत है तो बस उन्हें आगे बढ़ाने की। कार्टून की किताबों के टीवी संस्करण के बारे में उन्होंने कहा कि इससे बच्चों में रचनात्मकता कम होती जा रही हैं। सूचना तकनीकी के दौर में बच्चे आसानी से हर चीज हासिल करना चाहते हैं और यह कार्टून दिखाने वाले टीवी चैनलों में उन्हें मिलती है। हालांकि इसका सीधा असर उनकी रचनात्मकता पर पड़ता है।

इरफान ने उदाहरण देकर बताया कि एक कार्टून से दूसरे कार्टून के बीच में क्या हुआ होगा किताब पढ़ते समय बच्चा अपनी रचनात्मक शक्ति से इसे समझता था, लेकिन टेलीविजन चैनल में इसे समझने के लिए मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है।
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