समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन परियोजना (आईसीजेडएम) 7,500 कि.मी. लंबी तटरेखा, तटरेखा बदलाव का प्रभाव और देश
में समुद्र स्तर में वृध्दि के अध्ययन का पहला प्रयास है। परियोजना के तहत छह करोड़
लोग आएंगे जो तटीय क्षेत्रों में रहते हैं। विश्व बैंक से सहायता प्राप्त
1156 करोड़ रुपए की यह परियोजना पर्यावरण एवं वन मंत्रालय
द्वारा अगले पांच सालों में क्रियान्वित की जाएगी। विश्व बैंक इस परियोजना के लिए
बतौर आसान ऋण आईडीए ऋण 897 करोड़ रुपए यानी 78 फीसदी का योगदान कर रहा है। इस
आईसीजेडएम परियोजना का जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से विशेष महत्व है क्योंकि
आईपीसीसी के निष्कर्षों में एक के अनुसार वैश्विक तापमान में वृध्दि की वजह से औसत
समुद्री स्तर बढ गया है। परियोजना के तहत चार तत्वों- तटरेखा बदलाव, ज्वार-भाटा, लहरें और समुद्र स्तर में वृध्दि पर
विशेष ध्यान दिया जाएगा।
इस परियोजना से प्रत्यक्ष रूप से करीब 15 लाख लोग लाभान्वित होंगे, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से करीब 6 करोड़ लोगों को इसका लाभ पहुंचेगा। प्रारंभ में, तट पर
दबाव, गंभीर पारिस्थितिकी तंत्रों की मौजूदगी, प्राकृतिक खतरों के जोखिम आदि के आधार पर तीन राज्यों को इस परियोजना के
लिए चुना गया है। एशियाई विकास बैंक
कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा को कम चौड़ी तटरेखा प्रबंधन में
सहयोग कर रहा है। ऐसा प्रस्ताव है कि परियोजना का दूसरा चरण शेष तटवर्ती राज्यों
में शुरू किया जाएगा और इस संदर्भ में परियोजना की तैयारी भी चल रही
है।
समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन
परियोजना के चार प्रमुख तत्व हैं जिसमें कच्छ की खाड़ी और जामनगर के साथ-साथ
सुंदरबन, हल्दिया और दिघाशंकरपुर में राष्ट्रीय आईसीजेडएम
क्षमता निर्माण और ओड़िसा में आर्दभूमि प्रबंधन शामिल
हैं।
राष्ट्रीय आईसीजेडएम क्षमता निर्माण
इसके तहत 356 करोड़ रुपए व्यय किए जाएंगे। इसमें चार प्रमुख गतिविधियां शामिल
हैं-
भारत की मुख्य भूमि से लगे तट
जोखिम रेखा निर्धारण या मानचित्रण तथा तटीय तलछट क्षेत्र का
निर्धारण।
देश की 7500 किलोमीटर लंबी तटरेखा की सुरक्षा के लिए नियमों के निर्धारण के दो दशक बाद
सरकार ने अंतत: पूरी तटरेखा के लिए भारत की पहली जोखिम रेखा खींचने को मंजूरी दे दी
है। जोखिम रेखा समुद्र से वह दूरी है है
जहां तक लहरें पहुंच सकती हैं। यह
रेखा, तटरेखा बदलाव, ज्वार-भाटा द्वारा
तय की गयी दूरी और नियमित लहरों तथा समुद्र स्तर में वृध्दि को ध्यान में रखकर
खींची जाएगी। एक बार जब यह रेखा खींच ली जाएगी, इसके बाद इस
रेखा के पार रहने वाले लोगों को असली समस्या और उससे जुड़े जोखिम के बारे में बताया
जाएगा। कुछ ऐसे लोग जो इस खतरनाक रेखा के समीप रहते हैं और जिनपर समुद्री प्राकृतिक
आपदा का खतरा बना रहता है, उन्हें इस परियोजना के पूरे होने
के बाद वहां से स्थानांतरित कर दिया जाएगा। केंद्र ने पहले बगैर खतरनाक रेखा खींचे
ही तट के समीप वाणिज्यिक और विकास गतिविधियों का प्रस्ताव रखा था। पर्यावरण
कार्यकर्ता काफी समय से यह रेखा खींचे
जाने की मांग कर रहे हैं।
सर्वे ऑफ इंडिया हवाई
सर्वेक्षण और सेटेलाइट छायाचित्रण प्रणाली के माध्यम से इस व्यापक और सघन अभियान को
चलाएगा। इस दो वर्षीय परियोजना पर 125 करोड़ रूपए का खर्च
आएगा। विशेषज्ञ हवाई फोटोग्राफी और सेटेलाइट आंकड़ों के सघन इस्तेमाल के माध्यम से
इस रेखा को खींचने और पर्यावरण की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्रों, जिनका संरक्षण जरूरी है, की पहचान करने की योजना बना
रहे हैं।
मानचित्रण से जोखिम
रेखा निर्धारण या तट के आसपास रहने वाले समुदायों और अवसंरचना की सुरक्षा में मदद
मिलेगी। जोखिम रेखा निर्धारण परियोजना का पहला चरण गुजरात, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल में शुरू किया जाएगा। इन राज्यों का चयन समुद्र से
उन्हें खतरे की संभाव्यता और तट पर चल रहे विकास कार्यों के आधार पर किया गया है।
पर्यावरण की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्रों ,
जिनका संरक्षण जरूरी
है, का मानचित्रण एवं
रेखांकन
परियोजना के अंग के रूप में
सरकार पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करेगी। पश्चिम बंगाल
की न्यू मूर आइसलैंड घटना जैसी पुनरावृत्ति
को रोकने के लिए,
जहां समुद्र के स्तर में वृध्दि के कारण यह द्वीप डूब गया था,
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील
क्षेत्रों की पहचान करने का फैसला किया है। पश्चिम बंगाल में सुंदरबन पर्यावरण की
दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है और इसपर जलवायु परिवर्तन का बहुत असर पड़ने
की संभावना है। इसे गंभीर रूप से खतरा संभावित क्षेत्रों के रूप में वगीकृत किया
जाएगा। सुंदरबन, जो 50 लाख
लोगों, 70 बाघों और मैंग्रोव की 50
प्रजातियों का घर है, की पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए भारत और बंगलादेश संयुक्त कार्य
योजना तैयार करेंगे क्योंकि यह क्षेत्र दोनों देशों में फैला हुआ
है।
इस परियोजना के तहत
मैंग्रोव, खारा पानी, आर्द्रभूमि, प्रवाल भित्ति जैसे संरक्षण वांछित तटीय
क्षेत्रों की पहचान और निर्धारण किया जाएगा और इसके आधार पर गंभीर रूप से खतरा
संभावित तटीय क्षेत्र नामक नई श्रेणी बनाई जाएगी । उस श्रेणी के संरक्षण एवं
पुनर्जीवन के लिए उपयुक्त प्रबंधन योजना तैयार कर उसे लागू किया जाएगा। इसके तहत
लक्षदीप, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, गुजरात में खंभात की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी, महाराष्ट्र में वसाई-मनोरी, अर्करत्नागिरि,
कर्नाटक में कारावार और कुन्दापुर, केरल में
वेम्बानंद, ओड़िसा में भैतरकणिका और चिलिका, आंध्रप्रदेश में कोरिंगा, पूर्वी गोदावरी और
कृष्णा, पश्चिम बंगाल में सुंदरबन, तथा
तमिनाडु में पीचावरम और मन्नार की खाड़ी आदि शामिल हैं।
अन्ना
विश्वविद्यालय, चेन्नई में
राष्ट्रीय संपोषणीण तटीय प्रबंधन केंद्र की
स्थापना
अन्ना विश्वविद्यालय में
शीघ्र ही राष्ट्रीय संपोषीणय तटीय प्रबंधन केंद्र खुलेंगे। इस केंद्र में तटीय
प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य होंगे तथा केंद्र तटीय समुदायों के साथ
मिलकर काम करेगा तथा यह मंत्रालय को नीतिगत मामलों पर सलाह मशविरा देगा। अकादमिक
शोधकार्य से सामाजिक प्रभाव की ओर दृष्टगत बदलाव को परिलक्षित करने के लिए इसे
केंद्र नाम दिया गया है न कि संस्थान। इस केंद्र में विज्ञान पर नहीं, बल्कि लोगों, खासकर मछुआरों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह तटीय क्षेत्र प्रबंधन के लिए मुख्य विस्तार केंद्र होगा और
तटीय क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान देगा।
इस परियोजना के पहले चरण में
निवेश भवन निर्माण पर नहीं किया जाएगा बल्कि विशेषज्ञों का दल तैयार करने पर
केंद्रित होगा। 10 करोड़ रूपए की प्रारंभिक निधि से
50 वैज्ञानिक जो अभियांत्रिकी और समाज विज्ञान दोनों
क्षेत्रों के विशेषज्ञ होंगे, एकत्र किए जाएंगे। इन
विज्ञानियों के लिए औसत उम्र 35 वर्ष रखी गयी है और दल में
आधी सदस्य महिलाएं होंगी। दल के 60 प्रतिशत सदस्य तमिलनाडु से
बाहर के होंगे।
विश्वविद्यालय ने
10 एकड़ क्षेत्र में इस केंद्र के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।
इस केंद्र के निर्माण के लिए
166 करोड़ निर्धारित किए गए हैं।
जाने माने वैज्ञानिक एम एस
स्वामीनाथन,
जिन्होंने जुलाई, 2009 में अपनी रिपोर्ट में इस
संस्थान की स्थापना की सिफारिश की थी, इस केंद्र के लिए
सलाहकार के रूप में काम करेंगे। इस केंद्र को विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित
आईसीजेडएम परियोजना से धन उपलब्ध कराया जाएगा। परियोजना के लिए अगले पांच सालों के
लिए 800 करोड़ रूपए कुल बजट है।
तटीय प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम:
आईसीजेडएम कार्यक्रम के तहत देशभर में तटीय क्षेत्र प्रबंधन के लिए
प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू किया जाएगा।
गुजरात में आईसीजेडएम गतिविधियां
गुजरात कच्छ की खाड़ी और जामनगर जिले में समेकित तटीय
क्षेत्र प्रबंधन गतिविधियों पर करीब 298 करोड़ रुपए का व्यय आएगा।
ओड़िसा में आद्रभूमि संरक्षण
ओड़िसा तट के दो खंडों पर
समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन एवं आद्रभूमि संरक्षण गतिविधियों में गोपालपुर-चिलिका
और पारादीप-धर्मा में 201 करोड़ रूपए के संरक्षण कार्य होंगे।
पश्चिम बंगाल में आईसीजेडएम गतिविधि
पश्चिम बंगाल में सुंदरबन, हल्दिया और दीघाशंकरपुर में समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन गतिविधि पर कुल
300 करोड़ रुपए का निवेश किया
जाएगा।
इस परियोजना के तहत तटीय जल में प्रदूषण के नियंत्रण एवं तटीय समुदायों के लिए
जीविका के विकल्प बढ़ाने के वास्ते सीआरजेड अधिसूचना 1991 को
प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए क्षमता और संस्थानों का निर्माण किया
जाएगा।