जगदीश्वर चतुर्वेदी
असल में, भूमंडलीकरण में अन्तर्विरोध निहित है। इसका संबंध पूंजीवाद के अन्तर्विरोध
से है। पूंजीवाद ने विश्व व्यवस्था के रुप में जब अपना विकास शुरु किया तो उसने
सीमित रुप में सामन्तशाही के खिलाफ संघर्ष किया। पूंजीवादी सत्ता और औपनिवेशिक शासन
व्यवस्था की स्थापना की। पुराने संबंधों को बरकरार रखा। इसके खिलाफ दुनिया के गुलाम
मुल्कों में आजादी के लिए संघर्षों का सिलसिला चल निकला।
आजादी के लिए संघर्ष पूंजीवादी भूमंडलीकरण के खिलाफ पहली सबसे बड़ी जंग हैं।
तात्पर्य यह है कि भूमंडलीकरण मूलत: आजादी और आत्मनिर्भरता को छीनता है। यह पर
निर्भरता और सैन्य-निर्भरता पैदा करता है। लोकतन्त्र को कमजोर बनाता है या उसे खत्म
करता है। यह कार्य वह भूमंडलीय माध्यमों, भूमंडलीय संचारप्रणाली, भूमंडलीय नियमों
और निर्बाध प्रवेश के जरिये करता है।
साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण की विशेषता है पर-निर्भरता, सैन्य सहयोग और
उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रचार- प्रसार। इच्छा और आकांक्षाएं सामाजिक सरोकारों से
जुड़ने की बजाय वस्तु प्राप्ति से जुडने लगती हैं। फलत: इच्छाओं का वस्तुकरण होने
लगता है। जीवनशैली, खान-पान, प्रतीकों एवं चिह्नों के जरिये साम्राज्यवादी संस्कृति
को जनप्रिय बनाने की कोशिशें तेज हो जाती हैं। इस क्रम में जहां एक ओर
बहुराष्ट्रीयनिगमों का विस्तार होता है। वहीं दूसरी ओर आम लोगों में भ्रम की सृष्टि
होती है। यही वजह है कि किससे लडना है और कैसे लडना है, इन सवालों पर नये किस्म के
चिन्तन की जरुरत महसूस की जा रही है।नयी समझ के अभाव में संघर्ष के पुराने अस्त्र
बेकार हो गए हैं।
समाज में नयी परिस्थितियों के अनुरुप नयी कतारबंदी शुरु हुई है। समाज, संस्कृति,
राजनीति, अर्थनीति, साहित्य आदि क्षेत्रों में नए सवाल उठे हैं। ये ऐसे सवाल हैं जो
नए उत्तरों की मांग कर रहे हैं।
साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण का एकमात्र प्रत्युत्तर यही हो सकता है कि उत्पादक
शक्तियों के पक्ष में खडे हों और चीजों, घटनाओं, संवृत्तियों, प्रवृतियों और
व्यक्तियों को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखें। जनमाध्यमों से परिचालित होना बंद कर
दें।तर्क और सही समझ के आधार पर निर्णय लें। दिशाहीनता, अनालोचनात्मकता और उत्पादक
शक्तियों के प्रति घृणाभाव अंतत: साम्राज्यवादी ताकतों की मदद करता है। यदि उपरोक्त
सुझावों पर अमल करें तो पाएंगे कि साम्राज्यवादी संस्कृति धीरे -धीरे अपने असली
चरित्र में सामने आ जाएगी।
सादगी की बजाय चमक-दमक पूर्ण जीवनशैली, कृत्रिम भाषा और औपचारिकता के जरिये
ध्यान रहे जनमाध्यम और विज्ञापन आम लोगों को अपने दृष्टिकोण में ढ़ालते हैं। अपने
अनुरुप माहौल बनाते हैं। इस तिलिस्म को तोड़ने की जरुरत है।
आज पूंजीवाद हमारे अन्दर से हमला कर रहा है। ह्रासशील और सहजजात वृत्तियों के
जरिये हमला कर रहा है। इस हमले के खिलाफ संघर्ष ज्यादा कठिन है।विश्व पूंजीवाद के
खिलाफ संघर्ष को मन के अन्दर और बाहर दो स्तरों पर चलाना होगा।
मन में संघर्ष का अर्थ है काल्पनिक जीवन शैली या अमरीकी जीवन शैली के प्रति
अनाकर्षक भावबोध की सृष्टि या देशी जीवन शैली के प्रति गहरी आस्थाएं पैदा
करना।बाह्य जीवन में उन नीतियों के लिए लड़ना जो सार्वभौम संप्रभु
राष्ट्र्,आत्मनिर्भर आर्थिकव्यवस्था,सादगीपूर्ण जीवनशैली और सामाजिक एकता बनाये,
पर-निर्भरता, शानो-शौकत और खोखली जीवनशैली के प्रति घृणा पैदा करे। कारण यह है कि
पूंजीवाद को कृत्रिमता पसंद है। तड़क-भड़क पसंद है। यदि किसी भी कारण से ये दोनों
तत्व जीवन शैली में बने रहते हैं तो परायी संस्कृति के प्रति रुझान पैदा होता है।
प्रभुत्वशाली संस्कृति अपना आधार निर्मित करती है। यहीं से यथार्थ और अनुभव में
अंतर शुरु हो जाता है। वास्तविकता से दूरी बढ़ जाती है। जीवन में यह दूरी अलगाव की
शक्ल में आती है। पूंजीवाद की सारी लीलाएं इसी अलगाव को भरने के नाम पर शुरु होती
हैं। वह इसके लिए आभासी यथार्थ की सृष्टि करता है। आभासी यथार्थ से भरने की कोशिश
करता है। रंगीन सपनों, एवं वस्तुओं से भरने की कोशिश करता है। साम्राज्यवादी
भूमंडलीकरण का सामाजिक स्तर पर यही प्रत्युत्तर हो सकता है कि ज्यादा से ज्यादा
सामाजिक, राजनीतिक एवं सामूहिक गतिविधियों में हिस्सा लें।जो ताकतें साम्राज्यवाद
के खिलाफ संघर्ष रत हैं उनकी गतिविधियों में शामिल हों। जनमाध्यमों के कार्यक्रमों
के बारे में आपस में निरन्तर गोष्ठियां करें। क्योंकि माध्यमों के बारे में
जागरुकता ही दबाव पैदा करती है। ऐसी स्थिति के अभाव में जनमाध्यम दबाव पैदा करते
हैं। इसके अलावा मातृभाषाओं के जरिए शिक्षा एवं प्रशासनिक कार्यवाही के संचालन की
व्यवस्था की जानी चाहिए। देशी भाषा, देशी संस्कृति, देशी जनमाध्यमों का स्वायत्त
विकास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार एवं वैज्ञानिक चेतना का निर्माण ही
भूमंडलीकरण का विकल्प निर्मित करेगा।
ध्यान रहे भूमंडलीकरण मुद्रा और माल के प्रवाह के अतिरिक्त कुछ और भी है।यह
विश्व के लोगों में अन्तरनिर्भरता बढ़ाने वाली प्रवृत्ति है। भूमंडलीकरण के कारण
प्रत्येक क्षेत्र में
केन्द्रीकरण और विश्व बाजार से जुड़ने के नाम पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से
जुडने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे बाजार और राजनीति में इन ताकतों का प्रभुत्व बढ़ा
है। आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक असंतुलन बढा है। कानून के शासन की अवहेलना बढ़ी
है।इसके विकल्प के तौर पर कानून के शासन, विकेन्द्रीकरण, जनतांत्रिक शासन व्यवस्था
और मानवाधिकारों के अनुपालन पर जोर देना होगा।
आज स्थिति यह हैकि ‘ओईसीडी’ के सदस्य राष्ट्रों में विश्व जनसंख्या का मात्र 19
प्रतिशत हिस्सा रहता है। किन्तु माल और सेवा क्षेत्र में इनका 71 प्रतिशत बाजार पर
कब्जा है। 58प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इनके पास है। 91 प्रतिशत इंटरनेट
उपभोक्ता इन देशों में हैं। दुनिया में सबसे समृध्द दो सौ लोगों ने 1984 से लेकर
1998 के बीच अपनी आमदनी दुगुनी कर ली। सन् 1998 में इनकी कुल संपत्ति 1000 हजार
डॉलर आंकी गयी।
तीन सबसे बडे ख़रबपतियों के पास इतनी संपत्ति है जो समस्त अविकसित राष्ट्रों और
उनकी 60 करोड़ आबादी के पास भी नहीं है। 262 अरब डॉलर के दूरसंचार व्यापार के 86
फीसदी हिस्से पर दस बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है। सन् 1993 में विश्व में
होने वाले अनुसंधान और विकास का चार फीसदी हिस्सा 10 देशों से आया। विकासशील देशों
के स्वीकृत किए गए 80 फीसदी पेटेण्ट औद्योगिक देशों के बाशिन्दों के नाम हैं।
दुनिया के 90 फीसदी पेटेण्टों को अमरीका नियंत्रित करता है।हॉलीवुड उद्योग ने
1997 विश्व में30 अरब डॉलर का व्यापार किया। इस सबके कारण विश्व में असंतुलन बढ़ा
है। उपग्रह संचार प्रणाली और कम्प्यूटर व्यवस्था के विकास ने बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों के हमलों को तेज किया है। संस्कृति उद्योग के माध्यम से सांस्कृतिक मालों
की खरीद-फरोख्त बढ़ी है। सांस्कृतिक वैविध्य और जातीय पहचान के रुपों को खतरा बढ़ा
है। नशीले पदार्थों की तस्करी, औरतों की बिक्री एवं जिस्म फरोशी, हथियारों की अवैध
बिक्री, अपराध, हिंसा एवं विभाजनकारी ताकतों की गतिविधियों में इजाफा हुआ है।
आज विश्व में20 करोड़ से ज्यादा लोग हैं जो विभिन्न किस्म के नशीले पदार्थों का
सेवन करते हैं। विगत एक दशक में अफीम का उत्पादन दुगुना हो गया। कोका के पत्तों का
उत्पादन दुगुने से भी ज्यादा हो गया। सन् 1995 में नशीले पदार्थों की बिक्री 400
अरब डॉलर आंकी गयी। यह सकल विश्वव्यापार का आठ प्रतिशत है। अकेले पूर्वी यूरोप से
पॉच लाख औरतों की बिक्री दर्ज की गयी। अपराध जगत ने1500अरब डॉलर का कारोबार किया।
काले-धंधे में इतनी तेजी का प्रधान कारण है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, सिंडीकेट
माफिया गिरोहों की सक्रिय भागीदारी।
(लेखक
वामपंथी चिंतक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी
विभाग में प्रोफेसर हैं)