अनुराग मुस्कान
रूचिका आज अगर इस दुनिया में होती तो 32 साल के आसपास होती और अगर आप आत्मा के शरीर बदलने में यक़ीन करते हैं तो आपको ये भी मानना पड़ेगा की रुचिका ने अगर दूसरा जन्म लिया होगा तो वो आज किसी रूप में 19 साल की हो चुकी होगी। रुचिका ने जब आत्महत्या की थी तो वो 13 साल की थी। यानि रुचिका आज उस उम्र से भी 6 साल बड़ी होगी जिस उम्र में उसे राठौर ने ख़ुदकुशी के लिए मजबूर किया था। मैंने आपको इतना mathematics इसलिए समझाया कि आप समझ सकें कि जिस देश में आप रहते हैं उसमें न्याय आपकी पहुंच से कितनी उम्र दूर है।
कल्पना कीजिए कि कहीं जन्म ले चुकी 19 साल की रूचिका आज अपने घर में बैठकर टीवी पर ये ख़बर देख रही होगी और रूचिका गिरहोत्रा के लिए इंसाफ़ की उम्मीद में प्रार्थना कर रही होगी और घर से बाहर..... घर से बाहर ना जाने कितने ही एसपीएस राठौर उसे दबोचने के लिए तैयार होंगे। तो क्या ये दमनचक्र जारी रहेगा। एक राठौर पकड़ा गया, कितने छूट जाते होंगे।
वैसे कमाल नहीं है इस देश की क़ानून व्यवस्था? उन्नीस साल बाद रुचिका से छेड़खानी के मामले में मनचले राठौर को सज़ा होती है, और वो भी ड़ेढ साल की। ये भी अभी निचली अदालत का फैसला है। यानि पीड़ित परिवार के लिए 19 साल बाद भी ये लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है। अभी तो खैर राठौर का ठौर जेल है लेकिन कितने दिन? राठौर के सामने हाई कोर्ट का दरवाज़ा है, सुप्रीम कोर्ट की चौखट है। मलतब ये कि राठौर सालों तक इन अदालतों के दरवाज़े पीट-पीट कर कड़ी सज़ा से ज़्यादा से ज़्यादा समय तक बचता फिर सकता है। मुमकिन है, इन सालों में राठौर अपनी स्वाभाविक मौत मर भी जाए। लेकिन याद रहे, रुचिका अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरी थी। उसे राठौर ने मरने पर मजबूर किया था। एक 13 साल की मासूम बच्ची को किस क़दर प्रताड़ित किया होगा इस वहशी ने।
फिर भी हमारे देश की क़ानून व्यवस्था ने उसे छेड़खानी के मामले में अधिकतम सज़ा, जो दो साल की होती है, वो नहीं दी। कारण समझा जा रहा है राठौर की बढ़ती उम्र और उसकी बीमारियां। तो क्या रूचिका की उस उम्र को नज़रअंदाज़ कर दिया गया? क्या जिस उम्र में रुचिका ने वो मानसिक उत्पीड़न सहा होगा उसके सामने दो साल की सज़ा काफी है? और राठौर को तो वो भी नहीं हुई। जब राठौर को छः महीने की सज़ा हुई थी तो वो फ़िल्म 'कमीने' के फ़ाहिद कपूर की तरह मुस्कुरा रहा था। आज डेढ़ साल की सज़ा हुई तो सिट्टीपिट्टी गुम। लेकिन क्या फ़र्क पड़ता है। उसकी पत्नी तो महंगे ब्रांड का चश्मा पहने कर मुस्कुरा ही रही है। और सबसे बड़ी बात तो ये कि रूचिका को न्याय केवल राठौर के चेहरे से मुस्कुराहट भर छीन लेने से तो मिलेगा नहीं।
आज इसी मसले पर Live Bulletin कर रहा था। केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ से Phono हुआ तो उन्होंने भी कहा कि किसी से छेड़खानी की सज़ा दो साल बहुत कम है, और विशेषकर बच्चियों के साथ हुई छेड़खानी के मामले में तो बहुत कम। उन्होने न्याय व्यवस्था में बदलाव की पैरवी भी की। मेरी समझ में ये नहीं आता कि जब लचर न्याय एवं क़ानून व्यवस्था में बदलाव की ज़रूरत इतनी शिद्दत के साथ महसूस की जाती रही है तो इंतज़ार किस बात का है?
या तो आलसी व्यवस्था बदले या फिर 19, 20, और 25 साल बाद निचली अदालतों से मिले न्यायसंगत फैसलों का स्वागत करने की हमारी आदत।
(लेखक स्टार न्यूज़ में न्यूज़ एंकर हैं)
रूचिका आज अगर इस दुनिया में होती तो 32 साल के आसपास होती और अगर आप आत्मा के शरीर बदलने में यक़ीन करते हैं तो आपको ये भी मानना पड़ेगा की रुचिका ने अगर दूसरा जन्म लिया होगा तो वो आज किसी रूप में 19 साल की हो चुकी होगी। रुचिका ने जब आत्महत्या की थी तो वो 13 साल की थी। यानि रुचिका आज उस उम्र से भी 6 साल बड़ी होगी जिस उम्र में उसे राठौर ने ख़ुदकुशी के लिए मजबूर किया था। मैंने आपको इतना mathematics इसलिए समझाया कि आप समझ सकें कि जिस देश में आप रहते हैं उसमें न्याय आपकी पहुंच से कितनी उम्र दूर है।
कल्पना कीजिए कि कहीं जन्म ले चुकी 19 साल की रूचिका आज अपने घर में बैठकर टीवी पर ये ख़बर देख रही होगी और रूचिका गिरहोत्रा के लिए इंसाफ़ की उम्मीद में प्रार्थना कर रही होगी और घर से बाहर..... घर से बाहर ना जाने कितने ही एसपीएस राठौर उसे दबोचने के लिए तैयार होंगे। तो क्या ये दमनचक्र जारी रहेगा। एक राठौर पकड़ा गया, कितने छूट जाते होंगे।
वैसे कमाल नहीं है इस देश की क़ानून व्यवस्था? उन्नीस साल बाद रुचिका से छेड़खानी के मामले में मनचले राठौर को सज़ा होती है, और वो भी ड़ेढ साल की। ये भी अभी निचली अदालत का फैसला है। यानि पीड़ित परिवार के लिए 19 साल बाद भी ये लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है। अभी तो खैर राठौर का ठौर जेल है लेकिन कितने दिन? राठौर के सामने हाई कोर्ट का दरवाज़ा है, सुप्रीम कोर्ट की चौखट है। मलतब ये कि राठौर सालों तक इन अदालतों के दरवाज़े पीट-पीट कर कड़ी सज़ा से ज़्यादा से ज़्यादा समय तक बचता फिर सकता है। मुमकिन है, इन सालों में राठौर अपनी स्वाभाविक मौत मर भी जाए। लेकिन याद रहे, रुचिका अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरी थी। उसे राठौर ने मरने पर मजबूर किया था। एक 13 साल की मासूम बच्ची को किस क़दर प्रताड़ित किया होगा इस वहशी ने।
फिर भी हमारे देश की क़ानून व्यवस्था ने उसे छेड़खानी के मामले में अधिकतम सज़ा, जो दो साल की होती है, वो नहीं दी। कारण समझा जा रहा है राठौर की बढ़ती उम्र और उसकी बीमारियां। तो क्या रूचिका की उस उम्र को नज़रअंदाज़ कर दिया गया? क्या जिस उम्र में रुचिका ने वो मानसिक उत्पीड़न सहा होगा उसके सामने दो साल की सज़ा काफी है? और राठौर को तो वो भी नहीं हुई। जब राठौर को छः महीने की सज़ा हुई थी तो वो फ़िल्म 'कमीने' के फ़ाहिद कपूर की तरह मुस्कुरा रहा था। आज डेढ़ साल की सज़ा हुई तो सिट्टीपिट्टी गुम। लेकिन क्या फ़र्क पड़ता है। उसकी पत्नी तो महंगे ब्रांड का चश्मा पहने कर मुस्कुरा ही रही है। और सबसे बड़ी बात तो ये कि रूचिका को न्याय केवल राठौर के चेहरे से मुस्कुराहट भर छीन लेने से तो मिलेगा नहीं।
आज इसी मसले पर Live Bulletin कर रहा था। केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ से Phono हुआ तो उन्होंने भी कहा कि किसी से छेड़खानी की सज़ा दो साल बहुत कम है, और विशेषकर बच्चियों के साथ हुई छेड़खानी के मामले में तो बहुत कम। उन्होने न्याय व्यवस्था में बदलाव की पैरवी भी की। मेरी समझ में ये नहीं आता कि जब लचर न्याय एवं क़ानून व्यवस्था में बदलाव की ज़रूरत इतनी शिद्दत के साथ महसूस की जाती रही है तो इंतज़ार किस बात का है?
या तो आलसी व्यवस्था बदले या फिर 19, 20, और 25 साल बाद निचली अदालतों से मिले न्यायसंगत फैसलों का स्वागत करने की हमारी आदत।
(लेखक स्टार न्यूज़ में न्यूज़ एंकर हैं)