चांदनी
योग में ज्यादातर बीमारियों के इलाज की बजाय बचाव की क्षमता ज्यादा है। यह कहना है हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अधयक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल का। क्लीनिकल ट्रायल वाले कई अधययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि जिन मामलों में दवाओं और दवाएं अथवा सर्जिकल प्रक्रिया जरूरी है उनमें सिर्फ योगिक क्रियाएं कारगर साबित नहीं हो सकती हैं। जन्मजात दिल की बीमारियों, हार्ट वॉल्व से संबंधित र्युमेटिक हार्ट डिजीज भी योग से ठीक नहीं हो सकती है। ऐसा हार्ट फेलियर जो ईकोकार्डियोग्राफी से ठीक नहीं हो सकता है उसमें कोई चिकित्सा पद्धति कारगर नहीं हो सकती है। आयुर्वेद में भी साधय व असाधय रोगों का वर्गीकरण है। आयुर्वेद बीमारियों की असाधय स्थिति को निरुपाय माना है। कई तरह के ट्रायल में यह पाया गया कि दिल की बीमारियों में लंबे समय तक जीवनशैली में बदलाव जिसमें योग, डाइट मैनेजमेंट और एक्सरसाइज का संयोजन हो, अपनाने से नसों में ब्लॉकेज में सिर्फ 4 पर्सेंट तक फायदा हुआ। ऐसे में जिस मरीज को एंजियोप्लास्टी या सर्जरी की जरूरत है उसे सिर्फ लाइफ स्टाइल योगिक मैनेजमेंट के जरिए सुधार का खतरा नहीं लेना चाहिए।
जिन मामलों में फास्टिंग ब्लड शुगर लेवर 250 से अधिक हो और परसिस्टेंट ब्लड प्रेशर 160/100 से ऊपर हो उसमें नियंत्रण के लिए दवाओं की जरूरत होती है। ऐसे में सिर्फ योग नियंत्रण कर पाने में समर्थ नहीं हो सकता है। इसी तरह से रीनल फेलियर के मरीज को भी योग या ऐसी किसी अन्य चिकित्सा पद्धति से राहत नहीं मिल सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर इलाज में लाइफ स्टाइल मैनेजमेंट की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार ही अपनाया जाना चाहिए। किन मामलों में सिर्फ लाइफ स्टाइल मैनेजमेंट कारगर है।
इस बारे में अब स्पष्ट दिशा-निर्देश उपलब्धा हो चुके हैं। हाई ब्लड प्रेशर के ऐसे मरीज जिनमें कोई संबंधित अंग प्रभावित न हो अथवा हाई ब्लड शुगर के ऐसे मरीज जिनके यूरीन में माइक्रो एल्ब्युमिन नहीं मिला हो और कोरोनरी आर्टरी डिजीज के ऐसे मामले जिसमें मरीज को दो से तीन किलोमीटर वॉक करने में चेस्ट पेन न होता हो, ऐसे में तीन से छह महीने के लिए लाइफ स्टाइल मैनेजमेंट का ट्रायल किया जा सकता है। अगर इससे कोई सुधार नहीं होता है तो दवाएं लेना बेहद जरूरी होता है।
किसी भी चिकित्सा पद्धति का टेलीविजन पर विज्ञापन दिखाना प्रतिबंधित है, बावजूद इसके वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े कई लोग विज्ञापन दे रहे हैं, खासतौर से आधयात्मिक हीलिंग के मामले में मरीजों को फायदे से ज्यादा नुकसान हो रहा है। योग शिविरों में लोग पहले से यह राय बनाकर जाते हैं कि इससे वे बीमारियां भी ठीक हो जाएंगी, जिनमें सर्जरी की जरूरत है। नियमित अथवा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े ऐसे विज्ञापनों के मामलों में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और इन पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए ताकि समाज तक सही संदेश पहुंचे।