दयावंती श्रीवास्‍तव
भारत का पूर्वी क्षेत्र देश के धान उत्‍पादन में अपनी हिस्‍सेदारी बढ़ाने को तैयार है। केंद्र और क्षेत्र के राज्‍यों की सरकारों की ओर से की गई पहल की बदौलत यहां पहले से ही खाद्यान्‍न उत्‍पादन में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है और यह क्षेत्र खाद्यान्‍न की कमी वाले इलाके से, खाद्यान्‍न की बहुतायत वाले इलाके में परिवर्तित हो रहा है।
      पूर्वी भारत में धान की फसल प्रणालियों की उत्‍पादकता को सीमित करने वाले अवरोधों को दूर करने के लिए सरकार ने दो साल पहले 'ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्‍यूशन इन ईस्‍टर्न इंडिया' (बीजीआरईआई) कार्यक्रम शुरू किया था। यह कार्यक्रम सात राज्‍यों- असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्‍तर प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ में चलाया जा रहा है।
      अंतर-मंत्रालय कार्यबल पर आधारित प्रधानमंत्री की पहल के रूप में वर्ष 2010-2011 में लागू होने के बाद से ही इस कार्यक्रम की बदौलत क्षेत्र में धान और गेहूं की पैदावार के उल्‍लेखनीय नतीजे सामने आए हैं। इस कार्यक्रम के तहत बिहार और झारखंड में धान की पैदावार में भारी वृद्धि हुई है। धान और गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार के लिए क्षेत्र के किसानों तक तकनीके और पद्धतियां पहुंचाने के वास्‍ते राज्‍य सरकारों ने विलक्षण प्रयास किये।
       परियोजना के तहत पूर्वी क्षेत्र का चयन उसके प्रचुर जल संसाधनों का लाभ उठाने के लिए किया गया है, जो खाद्यान्‍नों की उपज बढ़ाने के लिए आवश्‍यक हैं। पूर्वी क्षेत्र की मुख्‍य समस्‍या जल की उपलब्‍धता नहीं, बल्कि उसका प्रबंधन है। इसका आधार यह है कि जल के प्रचुर भंडार के साथ फसल की उत्‍पादकता बढ़ाना तभी सम्‍भव होगा, जब बेहतर कृषि पद्धतियां अपनाई जाएं, अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले बीज डाले जाएं तथा खाद और उर्वरक जैसे पदार्थों का इस्‍तेमाल समझदारी से किया जाए। जहां एक ओर, साठ के दशक में हरित क्रांति के दौरान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश फले-फूले, वहीं इन तीनों राज्‍यों में क्षमता से अधिक दोहण की वजह से जल संसाधन की दृष्टि से स्थिति खराब हुई है। यह बात देश के कृषि सम्‍बंधी योजनाकारों के लिए बेहद चिंता का विषय है।
      स्‍पष्‍ट तौर पर, भारत को अपनी बढ़ती जनसंख्‍या का पेट भरने के लिए खाद्यान्‍न उत्‍पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। प्रत्‍येक भारतीय की चिंता का विषय बन चुकी खाद्य सुरक्षा को  सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यही है कि घरेलू तौर पर पर्याप्‍त खाद्यान्‍न उगाए जाएं। पूर्वी क्षेत्र में नई हरित क्रांति शुरू करने की क्षमता है। बीजीआरईआई को केंद्र और राज्‍यों की सरकारों द्वारा दी जा रही प्राथमिकता और ध्‍यान को देखते हुए इसके देश के खाद्यान्‍न का कटोरा न बन पाने की कोई वजह नहीं है।
      इसलिए, अनेक गतिविधियां शुरू की गई हैं जिनमें गेहूं और धान की तकनीकों का प्रखंड स्‍तर पर सामूहिक प्रणाली में प्रदर्शन करना, संसाधन संरक्षण तकनीक को बढ़ावा देना (गेहूं के तहत शून्‍य जुताई), जल प्रबंधन के लिए परिसम्‍पत्ति निर्माण गतिविधियां को अंजाम देना (कम गहरे नलकूपों/ कुओं/बोरवेल की खुदाई, पम्‍प सेटों का वितरण), खेती के औजारों के इस्‍तेमाल और जरूरत पर आधारित स्‍थल विशिष्‍ट गतिविधियों को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।
      धान की संकर तकनीके अपनाने, श्रृंखलाबद्ध रोपाई, एसआरआई, सूक्ष्‍म पोषक तत्‍व, आदि कुछ ऐसी कामयाब बाते हैं, जो इस क्षेत्र में राज्‍य प्रशासनों द्वारा की गई कड़ी मेहनत से सामने आई हैं।
      हालांकि, उत्‍पादन में स्‍थायित्‍व लाने के लिए इस क्षेत्र के प्रचुर संसाधनों का इस्‍तेमाल करना होगा। उपज की प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए प्रभावशाली विपणन प्रबंध, खरीद प्रक्रिया, बिजली सिंचाई, गतिविधियों की श्रृंखला और ग्रामीण अवसंरचना और ऋण आपूर्ति के लिए संस्‍थागत विकास तथा नवीन पद्धतियों को विस्‍तार से लागू करना, ताकि वे बड़ी संख्‍या में छोटे और सीमांत किसानों की उन तक पहुंच सम्‍भव हो सके। इसके अलावा, किसानों को अपनी उपज का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य मिलना चाहिए और उसके लिए किसानों ग्रेडिंग मानकों के बारे में जागरूक बनाया जाना चाहिए। शीर्ष स्‍तर पर बीजीआरईआई के कार्यान्‍वयन की निगरानी तथा इस योजना को सर्वोच्‍च प्रा‍थमिकता मिलना बरकरार रखने के लिए इन राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों की समिति का गठन किया गया है।

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