सरफ़राज़ ख़ान   
देश में पैदा होने वाले एक फ़ीसद से ज़्यादा बच्चे जन्मजात दिल की बीमारियों से पीड़ित होते हैं. भ्रूण में दिल संबंधी असंगतियों के ज़्यादातर मामले कम ख़तरे वाली जनसंख्या में मिलते हैं. 20 सप्ताह के गर्भ में होने वाली 20 पर्सेंट मौतों के मामलों और जन्म के एक साल बाद होने वाली एक तिहाई मौतों के लिए जन्मजात दिल की बीमारियां ज़िम्मेदार होती हैं.

जनसंख्या स्क्रीनिंग वाले अध्ययन यह बताते हैं कि 1000 नवजातों में से 8-10 में जन्मजात दिल की बीमारियां होती हैं, इनमें से 50 फ़ीसद में गंभीर समस्या होती है और 50 फ़ीसद में दिल की मामूली समस्याएं होती हैं. हालांकि गंभीर और कम गंभीर की कोई औपचारिक व्याख्या नहीं है, ऐसे में गंभीर उस मामले को मान लेते हैं, जिसमें बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद ही जन्मजात दिल की बीमारियों के लक्षण दिखने लग जाएं, मसलन ब्लू बेबी, गंभीर वैल्युलर नैरोइंग या दिल में बड़ा छेद होने जैसी दिक़्क़तें होना. कम दिक़्क़त वाली बीमारियों में दिल में छोटा छेद होना और हार्ट वॉल्व का कम संकरा होना शामिल है.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल, भ्रूण ईको स्पेशलिस्ट डॉ. वंदना चड्ढा, और डॉ. सावित्री श्रीवास्तव के मुताबिक़ जन्मजात दिल की बीमारियों पर विस्तृत जानकारी दी.

ज़रूरी बातें
1. भ्रूण में दिल की समस्याओं का पता लगाने का सबसे सही वक़्त होता है गर्भावस्था के 18 से 22 सप्ताह के बीच.
2. जन्मजात दिल की विसंगतियों को पता लगाने के लिए हर प्रेग्नेंसी में फुल फीटल ईको ज़रूर कराना चाहिए.
3. इन स्थितियों में होता है ज़्यादा ख़तरा- 
ए-पहले बच्चे को दिल की जन्मजात बीमारी रही हो.
बी-माता पिता में से किसी को जन्मजात दिल की बीमारी रही हो.
सी- परिवार में किसी को इस तरह की समस्या रही हो.
डी- गर्भावस्था में कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल जिनसे खतरा बढ़ता हो.
ई- मां को डायबीटीज़ होना.
एफ़- गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में मां को रुबेला होना.
जी-गर्भ के लिए इन विट्रो फ़र्टिलाइज़ेशन तकनीक अपनाई गई हो.
एच- अल्ट्रासाउंड के दौरान दिल की विसंगतियों का संदेह होना.
आई- अल्ट्रासाउंड में किसी अन्य तरह की जन्मजात विसंगति का पता लगना.
जे- भ्रूण का हार्ट रेट असामान्य होना.
के- भ्रूण में क्रोमोज़ोम से संबंधित कोई विसंगति होना.
एल- 11- 14 सप्ताह के गर्भ के अल्ट्रासाउंड में नक़ल ट्रांसक्लुएंसी का बढ़ा होना.
4. जन्मजात दिल की बीमारियों के ज़्यादातर मामलों की पहचान गर्भावस्था के 20वें सप्ताह से पहले हो सकती है. अगर बीमारी बच्चे के जीवन के लिए ख़तरनाक है, तो इस दौरान भ्रण को ख़त्म भी किया जा सकता है. एमटीपी क़ानून के मुताबिक़ गर्भ को सिर्फ़ 20 सप्ताह का होने तक ही गिरा सकते हैं. इसके लिए दो स्त्रीरोग विशेषज्ञों की सहमति लेना भी अनिवार्य होता है.
5. अगर दिल की जन्मजात बीमारी का जन्म से पहले ही पता लग जाता है, तो ऐसे बच्चों की डिलीवरी किसी ऐसे संस्थान में करानी चाहिए जहां नियोनेटल कार्डिएक केयर की पूरी व्यवस्था हो. ऐसे मामलों में बेहतर देखभाल के लिए मेटरनल फीटल स्पेशलिस्ट, ऑब्सटेट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट, जेनेसिस्ट और नियोनेटलिस्ट की सलाह की भी ज़रूरत पड़ सकती है.
बच्चों के जन्मजात दिल की बीमारियों पर बात करते हुए डॉ. सावित्री श्रीवास्तव ने कहा कि आजकल ज़्यादातर ऐसी बीमारियों का सर्जरी से इलाज संभव हो गया है और सक्सेस रेट भी काफ़ी अच्छा है.
हार्ट ब्लॉकेज के बारे में बात करते हुए डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा कि ग़लत जीवनशैली अपनाने की वजह से आजकल ज़्यादातर मामलों में हार्ट ब्लॉकेज की शुरुआत छोटी उम्र से ही हो जाती है. ख़तरा बढऩे से पहले ब्लॉकेज़ का पता लगाने का सिर्फ़ एक तरीक़ा है, वह है ऐसे बच्चों की नेक आर्टरी वॉल थिकनेस का अल्ट्रासाउंड से पता लगाना जो एक्सरसाइज़ नहीं करते और उनके खानपान की आदतें ग़लत हैं. अगर नेक आर्टरी वॉल सामान्य से मोटी है, तो एक-दो दशक बाद बच्चे को हार्ट अटैक होने का ख़तरा काफ़ी ज़्यादा रहता है.

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