कुमार कृष्णन
नई दिल्ली. जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत को गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में आयोजित समारोह में रचनात्मक कार्यों के लिए स्वामी प्रणवानंद शांति पुरस्कार लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार ने प्रदान किया. राष्ट्रीय स्तर पर दिए जाने वाले इस पुरस्कार से टीपीआर नाथ (केरल), गोपाल लोधियाल (उत्तराखंड) और मोहन हीराबाई हीरालाल (महाराष्ट्र) और साहित्य के लिए वाग्देवी प्रकाशन (दीपचंद, राजस्थान), उमेश कुमार (झारखंड) और भारतीय विद्या भवन (अशोक प्रधान, मुंबई) को सम्मानित किया.
अब तक इस पुरस्कार से गुजरात के वरिष्ठ सर्वोदयी नेता चुन्नीलाल वैद्य, उत्तराखंड के बिहारीलाल भाई, तमिलनाडु के डॉ. जयप्रकाशम, एस कुलैंदे सामी, पोलैंड की अनिता सोनी, दिल्ली के एके अरुण और आगरा के कृष्णचंद्र सहाय नवाज़े जा चुके हैं.
यह पुरस्कार हरेक दो साल में शांति और गांधीवादी साहित्य के लिए किसी दो व्यक्ति, पुस्तक या संस्था को दिया जाता है. इस बार पिछले 2010, 2012 और 2014 के लिए स्वामी प्रणवानंद साहित्य पुरस्कार वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर से प्रकाशित 'सत्याग्रह की संस्कृति को, भारतीय विद्या भवन, मुंबई से प्रकाशित 'मोहनदास कर्मचंद गांधी' और उमेश कुमार की पुस्तक 'देवता के घर बापू को दिया गया है.
समारोह में लोकसभा की पूर्व अध्यक्षा मीरा कुमार ने कहा कि जातिवादी व्यवस्था का परित्याग कर ही हम सच्चा लोकतंत्र ला सकते हैं. यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो लोकतंत्र अधूरा रहेगा.
उन्होंने कहा कि गांधी का रास्ता पहले भी कठिन था, अब भी कठिन है. सामाजिक मुक्ति संग्राम और राजनीतिक आजादी की लड़ाई उन्होंने सत्य और अहिंसा के औजार के आधार पर लड़ी. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में गांधी का रास्ता ही विकल्प है.
सम्मानित लोगों की आपबीती और गांधीवादी रास्ते पर चलने पर आ रही चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए मीरा कुमार ने कहा कि महात्मा गांधी के रास्ते पर चलना तब भी कठिन था, जब वे जीवित थे और आज तो और भी कठिन है, क्योंकि मौजूदा पीढ़ी के सामने गांधी के नाम पर लाठी हाथ में लिए उनके बुढ़ापे की तस्वीर मात्र है. उन्होंने कहा कि उस गांधी की छवि इस तस्वीर में नहीं दिखती, जो एक युवा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रेल के डिब्बे से उतार दिए जाने के बाद महाशक्ति से संघर्ष करने का एक महान संकल्प लिया था.
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी जितना विश्वास कमजोर से कमजोर और दलित से दलित लोगों पर करते थे, वैसा विश्वास दुनिया के किसी भी महानतम नायकों ने नहीं किया. उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अपनी भागीदारी का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैंने उस सम्मेलन में जब अपना भाषण इस बात से शुरू किया कि मैं गांधी के देश से आई हूं तो सम्मेलन में भाग ले रहे सभी लोग सम्मान में खड़े होकर तालियां बजाने लगे. उन्होंने कहा कि गांधी का ऐसा सम्मान इसलिए होता है कि वे न्यायिक मूल्यों पर एकदम खरे थे और जो खरे हैं वे ही गांधीजी के रास्ते पर चल सकते हैं.
समारोह की अध्यक्षता करते हुए गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा राधा भट्ट ने कहा कि आजादी के लंबे अरसे के बाद भी लोग अधिकारों के लड़ रहे हैं. गुजरात और हरियाणा के विकास मॉडल पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यहां कई क्षेत्रों में शिक्षा, आजीविका से लोग वंचित हैं. उन्होंने कहा कि सरकारें लापरवाही और बदनीयती के कारण गांधी के महत्वपूर्ण संदर्भों को भुला रही हैं.
उन्होंने पुरस्कृत लोगों के काम के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि इनके द्वारा किए जा रहे कार्य साबित करते हैं गांधी के सुझाए रास्ते की बात कोई कल्पना नहीं है, यह पूरी तरह से व्यवहार में लाने की बात है. भट्ट ने कहा कि अब तो दुनिया को विडंबनाओं और परेशानियों से मुक्त होना होगा, तो उन्हें गांधी के बताए रास्ते पर ही चलना होगा. भट्ट ने देश में बढ़ती विषमता और सांप्रदायिकता पर चिंता जताते हुए सभी से अपील की कि इसके लिए अब मैदान में आना होगा और ऐसी ताकतों को जवाब देना होगा.
अतिथियों का स्वागत गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार ने किया तथा संचालन स्वामी प्रणवानंद पुरस्कार ट्रस्ट के संयोजक टीएस नेगी ने किया. इस अवसर पर पर्यावरणविद् और गांधी मार्ग के संपादक अनुपम मिश्र ने कहा कि हिंसा आधारित व्यस्था में शांति तथा सद्भाव कायम करने वाले लोगों को स्थान नहीं मिल पाता है। प्रणवानंद शांति पुरस्कार ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करने का एक माध्यम है. उन्होंने कहा कि बलात्कारियों की खबरें जल्दी छपती हैं, खूब छपती हैं लेकिन सद्प्रयासों की खबरें नहीं छपतीं. उन्होंने कहा कि सद्भावना और शांति के काम करने वाले लोग हमेशा बेख़बर रहते हैं, लेकिन समाज में अच्छे बदलाव लाने में ऐसे ही लोग कामयाब होते हैं.
भागलपुर स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़कर शांति स्थापित करने का काम करते रहे. श्री प्रसून लतांत ने छात्र आंदोलन से निवृत होकर धीरेन्द्र मजूमदार द्वारा जोधपुर में स्थापित सुचेता कृपलानी शिक्षा निकेतन में एक साल तक चलनेवाले ग्रामीण रचनात्मक कार्यकर्ता प्रशिक्षण सत्र में शामिल होकर रचनात्मक कार्यों को समझा और एक नए प्रयोग के तौर पर अपने रचनात्मक कार्यों को गांवो के अलावा शहरी क्षेत्र के गरीब लोगों तक बढ़ाया, जहां गांवों से पलायन कर ग्रामीण आते हैं. चंडीगढ़ में ऐसे ग्रामीण मजदूरों की वस्तियों में श्री प्रसून लतांत सक्रिय हुए. इन वस्तियों के लोगों के पुनर्वास के लिये न केवल आंदोलन के लिए मज़दूरों को संगठित किया बल्कि उनके बारे में तबतक लिखते रहे जब तक उन्हें सरकार की ओर से रहने के लिए घर नहीं मिला. श्री प्रसून लतांत न केवल सर्व सेवा संघ के कार्यक्रमों में सक्रिय रहे, विभिन्न सर्वोदय समाज के सम्मेलनों में भाग लेते रहे हैं और उन पर रिर्पोटिंग भी की है. इसके अलावा गांधी के विभिन्न स्थलों, संस्थानों और आंदोलनों की गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहते हैं. वे बिहार के भागलपुर में भी मदद फांउडेशन की स्थापना कर वहां के साथियों के साथ महिला और बाल विकास, पर्यावरण और साहित्य को लेकर आयोजन करते रहते हैं. श्री प्रसून लतांत ने जहां बहुत से नौजवानों को समाजसेवा के लिए प्रेरित किया, वहीं वे विभिन्न जगहों पर युवाओं का जागरूक पत्रकार के रूप में आगे बढ़ाने का काम करते रहते हैं.