बेमौसम की बारिश और ओलों से रबी फ़सल को हुए नु़कसान के बाद किसानों को ख़रीफ़ फ़सल से उम्मीद बंधी है. सरकार की भी यही कोशिश है कि ख़रीफ़ फ़सल बेहतर हो. इसके लिए सरकारी स्तर पर तैयारी शुरू कर दी गई है. कृषि विभाग द्वारा शिविर लगाकर किसानों को ख़रीफ़ फ़सल से संबंधित तमाम ज़रूरी जानकारी दी जा रही है. फ़िलहाल देशभर में ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई की तैयारी ज़ोरशोर से चल रही है. ख़रीफ़ की फ़सलों में धान, बाजरा, मक्की, ग्वार, गन्ना, मूंग, उड़द, लोबिया, अरहर, सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरंड आदि शामिल हैं. जून-जुलाई में ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई शुरू हो जाती है. खेतों में फ़सल बोने से पहले किसानों को बहुत-सी तैयारियां करनी होती हैं. किसानों को खाद और बीज की ज़रूरत होती है. रबी फ़सल के नुक़सान को देखते हुए सरकार इस क़वायद में जुटी है कि किसानों को खाद और बीज वक़्त पर मिल जाएं. इसके लिए अधिकारियों को सख़्त निर्देश दिए गए हैं. सहकारी समिति और सोसाइटी के ज़रिये खाद और प्रमाणित बीजों की छिट्पुट बिक्री शुरू हो गई है. ख़रीफ़ सीज़न में किसानों को खाद और बीज की क़िल्लत न हो, इसके लिए सहकारी गोदामों में खाद का भंडारण किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ की ज़िला सहकारी केंद्रीय बैंक की बालोद शाख़ा किसानों को मैसेज भेजकर बीज और खाद की जानकारी मुहैया करा रही है. ज़िला सहकारी केंद्रीय बैंक और किसानों को भेजे जाने वाले मैसेज में लिखा होता है कि सहकारी समिति में प्रमाणित बीज और रासायनिक खाद उपलब्ध है. परमिट लेकर खाद और बीज का जल्द उठाव करें. इस तरह मैसेज भेजे जाने का मक़सद किसानों को जागरूक करना है, ताकि वे वक़्त पर खाद और बीज उठाएं और गोदाम व समिति में भी समय पर खाद बीज भंडारित होते रहें. यह सेवा इसी साल शुरू हुई है. अब किसानों को बार-बार सोसाइटी जाकर ये पूछना नहीं पड़ेगा कि खाद और बीज उपलब्ध है या नहीं. ज़िले में अब तक 77 हज़ार नंबर बालोद शाख़ा में सुरक्षित हैं. किसानों का मानना है कि इससे उनके धन और समय की बचत होगी. ग़ौरतलब है कि किसानों को अकसर खाद और बीज की क़िल्लत से जूझना पड़ता है और दुकानदार इसका फ़ायदा उठाकर खाद और बीज के दाम बढ़ा देते हैं. इतना ही नहीं, अकसर घटिया क़िस्म के बीज किसानों को ज़्यादा दाम पर बेच दिए जाते हैं. इससे किसानों की फ़सल ख़राब हो जाती है और उन्हें भारी नुक़सान होता है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छी उपज पाने के लिए किसानों को उत्तम बीजों का ही इस्तेमाल करना चाहिए. इसके अलावा खाद और कीटनाशकों का सही इस्तेमाल भी बेहद ज़रूरी है.
उत्तर प्रदेश सरकार ख़रीफ़ की फ़सल के दौरान संकर बीजों का इस्तेमाल करके उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है. सरकारी योजना के तहत धान, बाजरा, मक्का और ज्वार आदि के बीज निजी कंपनियों के ज़रिये किसानों को मुहैया कराए जाएंगे. इसके लिए छूट की राशि को किसानों के खाते में भेजी जाएगी. बीज पाने के लिए किसानों को पहले पंजीकरण कराना होगा. संत कबीर नगर के ज़िला कृषि अधिकारी शैलेंद्र कुमार वर्मा के मुताबिक़ अब किसान भारत सरकार द्वारा प्रमाणित किसी भी कंपनी का बीज ख़रीदने के लिए स्वतंत्र हैं. इसके लिए अनुदान की बाधा नहीं आएगी. इसके लिए किसानों का पंजीकरण किया जा रहा है. पंजीकृत किसानों की सूची विकास खंड स्तर पर जारी की जाएगी. बीजों के बिक्री के लिए कंपनियों का चयन करने के साथ ही उन्हें अपने स्तर से उपलब्धता के लिए स्टाल लगाने का निर्देश भी दिया जा चुका है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वीडियो कांफ्रेसिंग के ज़रिये किसानों से कहा कि बेमौसम बारिश से हुए फ़सलों के नुक़सान के सदमे से उबर कर अगली फ़सल की तैयारी में जुट जाएं. उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड के किसानों को तिल के बीज पर राज्य सरकार अनुदान देगी.
ग़ौरतलब है कि मंत्रिपरिषद ने बुन्देलखंड क्षेत्र में तिल उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए अतिरिक्त अनुदान की योजना को मंज़ूरी दी है, जिससे यहां के किसान तिल की खेती को ज़्यादा क्षेत्र में कर सकें. इसके तहत अब तिल पर पूर्व में देय 20 रुपये प्रति किलोग्राम अनुदान के अतिरिक्त 80 रुपये प्रति किलोग्राम अनुदान दिया जाएगा. औसतन एक हेक्टेयर क्षेत्र में तक़रीबन 5 किलोग्राम तिल के बीज की ज़रूरत होती है. इस तरह प्रति हेक्टेयर 400 रुपये अनुदान देय होगा. बुन्देलखंड में कुल 3.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तिल की खेती के लिए साल 2015-16 में कुल 13 करोड़ रुपये अतिरिक्त ख़र्च होंगे.
मैनपुरी ज़िले में कृषि विभाग ने किसानों को ख़रीफ़ के फ़सल में राहत देने के तैयारी शुरू कर दी है. धान का उत्पादन बढ़ाने के लिए सुगंधा प्रजाति का बीज मंगा लिया है, ताकि नर्सरी की बुआई का वक़्त शुरू होने से पहले ही किसानों को बीज मुहैया कराया जा सके. ज़िले में ख़रीफ़ की फ़सल में सबसे ज़्यादा धान का उत्पादन होता है. देशभर में नहरों और ट्यूबवेलों की मरम्मत का काम भी शुरू हो चुका है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सभी प्रबंधन से किसान अच्छी फ़सल हासिल कर सकते हैं. उन्होंने ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई से पहले की तैयारियों के लिए किसानों को ग्रीष्मकाल में खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी है. उनका कहना है कि गर्मी में खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी पलटने के साथ ही उसमें हानिकारक सूक्ष्मजीव, फफूंद व लार्वा ऊपर आकर नष्ट हो जाते हैं. साथ ही किसानों को मौसम की अनुकूलता वाली फ़सल की बुआई करने की सलाह भी दी गई है. उनका कहना है कि सबसे पहले किसानों को अपनी भूमि की जांच करानी चाहिए. अगर उसमें कोई कमी है, तो सबसे पहले भूमि का सुधार करना चाहिए. सुधार के नज़रिये से मोटे तौर पर भूमि को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, लवणीय और क्षारीय भूमि. लवणीय भूमि में कैल्शियम, मैगनीशियम, सोडियम क्लोराइड और सल्फ़ेट से बने नमक की मात्रा ज़्यादा होती है. क्षारीय भूमि में सोडियम कार्बोनेट की मात्रा ज़्यादा होती है. इसके सुधार के लिए खेत को समतल कर लें. फिर एक एकड़ के खेत को आठ बराबर हिस्सों में बांट लें. भूमि के हर प्लाट के चारों तरफ़ 30 सेंटीमीटर ऊंची मेढ़ बना लें. इन प्लाटों में दो बार मेढ़ तक यानी 30 सेंटीमीटर पानी भर लें. इससे भूमि की 30 सेंटीमीटर तक की तह में पहले के मुक़ाबले 10 फ़ीसद लवण रह जाएंगे. ऐसे खेतों में नमक के प्रति सहनशील फ़सलें उगानी चाहिए. क्षारीय भूमि में जिप्सम आदि का इस्तेमाल कर इसे सुधारा जा सकता है.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को सही कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करना चाहिए. धान की फ़सल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और उसके बाद में देसी हल से जुताई करनी चाहिए. पौधारोपण से पहले खेत में पानी भर दें और खड़े पानी में एक-दो जुताइयां करके सुहागा लगाएं. अगेती और समय की फ़सल में धान की रोपाई के 15 दिन बाद धान निराई यंत्र पेडीवीडर से निराई करनी चाहिए. देर से रोपी और ज़्यादा उपज देने वाली बौनी क़िस्मों में हाथ से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. बाजरे की फ़सल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में एक या दो जुताइयां देसी हल से करनी चाहिए. बिजाई ट्रैक्टर चालित रीजर-सीडर से या देसी हल से करनी चाहिए. बिजाई के 20 से 25 दिन बाद बैलों द्वारा चालित व्हील हो और व्हील हैंड हो से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. गन्ने की फ़सल के लिए बिजाई के सात से दस दिन बाद सुहागा लगा दें. खरपतवारों के नाश के लिए दो-तीन गुड़ाई करनी चाहिए. मई के महीने में हल्की मिट्टी और मानसून शुरू होने से पहले जून के महीने में रीजर की मदद से भारी मात्रा में मिट्टी चढ़नी चाहिए. कपास की बिजाई, बीज व खाद ड्रिल/प्लांटर से करें. इसके अलावा किसान एक कतारी ड्रिल का इस्तेमाल कर सकते हैं. पहली सिंचाई से पहले पहली गुड़ाई करें. मक्की के लिए खेत की 12 से 15 सेंटीमीटर की गहराई तक जुताई करें. इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करनी चाहिए. इसके बाद चार जुताइयां और करनी चाहिए और छह बार सुहागा लगाना चाहिए. बिजाई के लिए प्लांटर का इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की निराई कल्टीवेटर, व्हील-हैंड-हो या खुरपे से करनी चाहिए. इससे बीजों के अच्छे जमाव और खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है. जहां वायु क्षरण की समस्या हो, वहां जुताई कम करनी चाहिए. बिजाई हवा की दिशा से आड़ी दिशा में करनी चाहिए और पिछली फ़सल के अवशेषों को भी वहीं रहने देना चाहिए. मिट्टी की पपड़ी बनने की परेशानी से बचने के लिए रीजर सीडर से बिजाई करनी चाहिए. बिजाई के बाद पंक्तियों में देसी खाद या सरसों का भूसा डालने से जमाव अच्छा होता है.
मानसून की भविष्यवाणी के मद्देनज़र किसानों को पानी की हर बूंद का सदुपयोग करने की सलाह दी गई है. किसान सिंचाई नालियों को पक्का करके ज़मीन में रिसने वाले 20 से 30 फ़ीसद पानी को बचा सकते हैं. ट्यूबवेल का पानी काफ़ी महंगा पड़ता है. इसलिए सही माप के पाईप का इस्तेमाल करना चाहिए. रेतीली, दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में पानी बहुत जल्द नीचे चला जाता है. इसलिए ऊपरी सतह को सघन बनाने के लिए सिंचाई या बारिश के बाद भारी रोलर को कई बार चलाना चाहिए. इससे भूमि 30 से 40 सेंटीमीटर गहराई तल सघन हो जाएगी. जब खेत की जुताई होगी, तो मिट्टी की ऊपरी सतह हल्की हो जाएगी. ऐसा करने से के सिंचाई जल की ज़रूरत होगी. इससे किसानों का काफ़ी ख़र्च बच जाएगा.
ग़ौरतलब है कि भारतीय मौसम विभाग ने हाल ही में 2015 में सामान्य से कम बारिश का अनुमान ज़ाहिर किया है., जिससे किसानों को सिंचाई की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. मौसम विभाग के मुताबिक़ मानसून का आगमन सामान्य दिख रहा है. इसमें दो से तीन दिन की देरी हो सकती है. अब तक बारिश के आगमन में कोई देरी नहीं हुई है. देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भारतीय कृषि का योगदान भले ही 15 फ़ीसद है, लेकिन इससे 60 फ़ीसद आबादी जुड़ी है. देश की 60 फ़ीसद खेती मानसून पर निर्भर है, क्योंकि महज़ 40 फ़ीसद कृषि भूमि ही सिंचित है. ख़रीफ़ की बुआई के लिए बारिश का वक़्त पर होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि देश में 70 फ़ीसद कुल सालाना बारिश दक्षिण-पश्चिम मानसून सत्र यानी जून-सितंबर के दौरान होती है. हालांकि अमेरिका, जापान और यूरोप के मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल भारत में मानसून सामान्य रहेगा. गर्मी के दौरान अल नीनो की वजह से बारिश पर पर असर पड़ने की 50-60 फ़ीसद संभावना है, लेकिन इससे कोई ख़तरा नहीं है.
पिछले दो माह में ख़राब मानसून और बेमौसम बारिश की वजह से 2014-15 फ़सल साल में खाद्यान्न का उत्पादन 5.25 फ़ीसद घटकर 25.112 करोड़ टन रहने का अनुमान है. 2013-14 फ़सल साल (जुलाई-जून) के दौरान देश में रिकॉर्ड 26.50 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था.
कृषि मंत्रालय ने 2014-15 के लिए अपना तीसरा अग्रिम अनुमान जारी करते हुए कहा है कि 2014 में ख़राब मानसून और मार्च-अप्रैल 2015 में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से ज़्यादातर फ़सलों की पैदावार घटी है. इसकी वजह से ख़रीफ़ और रबी फ़सलों को काफ़ी नुक़सान हुआ है. तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 2014-15 में चावल का उत्पादन 10.254 करोड़ टन रहने की संभावना है, जो पिछले साल रिकॉर्ड 10.665 करोड़ टन था. इसी तरह 2014-15 में गेहूं का उत्पादन घटकर 9.078 करोड़ टन रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल 9.585 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था. इसी तरह मोटे अनाज 4.042 करोड़ टन, दालें 1.738 करोड़ टन, तिलहन 2.738 करोड़ टन, कपास 3.532 करोड़ गांठें (प्रत्येक 170 किलोग्राम) और गन्ना 35.656 करोड़ टन रहने की संभावना है. पिछले साल देश में 12 फ़ीसद कम बारिश हुई थी, जिससे अनाज, कपास और तिलहन के उत्पादन अर असर पड़ा हुआ था.
फ़िलहाल यही कामना है कि मानसून वक़्त पर आए, अच्छी बारिश हो और खेतों में फ़सलें लहलहा उठें, जिन्हें देखकर किसान रबी फ़सल की तबाही का दुख-दर्द भूल जाएं.