नज़्म
किसी पहाड़ पर...
मेरे महबूब
आओ चलें
किसी पहाड़ पर
जहां
कल-कल करती नदिया हो
झर-झर गिरते झरने हों
शां-शां करते जंगल हों...
जहां
सहर उगे
सूरज की बनफ़शी किरनें
तन-मन को छू जाएं
दोपहर ढले
घने दरख़्तों के साये
बाहें फैलाये हमें बुलाएं
और
शाम सुहानी
रफ़ाक़त से भीगे मौसम के
मदभरे गीत सुनाए
रात चांदनी
बेला के गजरों से
महक-महक जाए...
आओ चलें
किसी पहाड़ पर
जहां
हरदम जाड़ो का मौसम रहता है...
-फ़िरदौस ख़ान