कोहरे में डूबी सुबह हमारी
धुँआ धुंध में डूबे सहमे दिन
शीत ठिठुरती सूनी रात हमारी
जतन कर भी लौटे नहीं सुदिन
प्रियतम तुम बिन
स्मृतियों का व्योम बड़ा है
धुँधले मटमैले लगते प्रतिबिम्ब
पीत उदासी लिए चांँदनी
कुम्हलाए मुरझाए विधु बिम्ब
प्रियतम तुम बिन
नई वधू लज्जालु झिझक सी
सहमी सहमी छुवन धूप की
सिहराती रोम रोम तन रंध्र
मधुमास शिशिर लिखें अनुबंध
प्रियतम तुम बिन
लघु से लघुतर दिनमान हो गए
वृहद वृहत्तर निशि मान हो गए
स्मृतियों के सूने शमशान हो गए
काटे कटते नहीं पल छिन
प्रियतम तुम बिन।
डाँ० स्वामी विजयानन्द
