फ़िरदौस ख़ान 
किसान अब पारंपरिक खेती पर ही निर्भर नहीं रहते. वे पारंपरिक खेती के साथ-साथ बाग़वानी भी करने लगे हैं. इसके उनकी आमदनी पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा बढ़ी है. बाग़वानी से फलों के अलावा इमारती लकड़ी भी मिलती है, जिसकी बाज़ार में अच्छी ख़ासी मांग है. बाग़वानी किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. इससे वातावरण भी हराभरा होता है.

उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले के गांव मितईखेड़ा के किसान गंगा प्रसाद पटेल ने पारंपरिक खेती छोड़कर अनार की बाग़वानी की. इससे उन्हें अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा हुआ और मेहनत भी कम लगी. उनकी देखादेखी गांव के दूसरे किसानों ने भी अनार उगाने शुरू कर दिए. पारंपरिक खेती में लगातार हो रहे नुक़सान से इलाक़े के किसानों के लिए अनार की खेती मुनाफ़े का सौदा साबित हुई है. गंगा प्रसाद का कहना है कि एक बीघे खेत में अनार की फ़सल तैयार करने के लिए सबसे पहले तीन बाई तीन का आधार बनाया जाता है. एक बीघे में 170 पौधे लगाए जाते हैं. पौध के नीचे काफ़ी जगह होती है, जहां पर प्याज़, लहसुन, गोभी आदि की फ़सल भी तैयार करते हैं. किसानों का कहना है कि एक पेड़ में तक़रीबन दो सौ फल लगते हैं. चार बीघे फ़सल में एक साल में साढ़े चार लाख की आमदनी हो जाती है, जो कि अन्य फ़सलों में मुमकिन नहीं है. इस खेती को देखकर लोग केले की खेती करना बंद करने लगे हैं, क्योंकि केले की अपेक्षा अनार की खेती ज़्यादा आसान है. ग़ौरतलब है कि अनार की फ़सल लगाने से किसान को लम्बे अरसे तक आमदनी होती है. एक बार अनार के पौध तैयार होने के बाद 24 साल तक अनार की पैदावार होती है, जबकि अन्य फ़सलों के लिए हर साल उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है.  इसमें अन्य फ़सलों के मुक़ाबले निकाई-गुड़ाई का झंझट कम रहता है. इतना ही नहीं, कम उपजाऊ और बंजर ज़मीन में भी अनार की पैदावार करके किसान मलामाल हो सकते हैं.

झारखंड के सिमडेगा ज़िले के आदिवासी किसान उत्तम विकास किड़ो ने तीन एकड़ बंजर ज़मीन में तरबूज़ की खेती कर मिसाल पेश की है. सिंचाई की सुविधा नहीं होने की वजह से बरसों से उनके खेत सूने पड़े थे. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने खेती शुरू की. सिंचाई जल का अभाव था. उन्होंने कांसजोर डैम की टूटी हुई नहर से अपने खेत तक पानी लाने के लिए मेसो परियोजना के तहत सिंचाई योजना का आवेदन दिया. माइक्रोलिफ्ट सिंचाई योजना मंज़ूर होने पर लाभुक समिति बनाकर उसने 14 सौ फ़ीट की पाइप लाइन नहर से खेत तक बिछाई. पानी को जमा करके रखने के लिए किसान उत्थान यूनियन की सलाह पर गड्ढे खोदे और प्लास्टिक बिछाकर स्टोरेज टैंक तैयार किया गया. सिंचाई सुविधा जुटाने के बाद संस्था की सलाह पर उन्होंने तरबूज़ की खेती शुरू की, जो फ़ायदे का सौदा साबित हई. तरबूज़ की बंपर पैदावार होती है, जिसे लेने के लिए कारोबारी ख़ुद उनके खेत तक पहुंच रहे हैं. तरबूज़ का मौसम ख़त्म होने पर वह फल और सब्ज़ियों की खेती करेंगे.

पंजाब के कपूरथला ज़िले के गांव मुकटराम वाला के देविन्दर सिंह ने फलदार पौधे लगाकर न केवल वातावरण को हराभरा किया है, बल्कि काफ़ी आमदनी भी हासिल की है. फ़िलहाल वह नींबू की खेती कर रहे हैं. नींबू के अलावा वह आम, अमरूद, अनार, जामुन, मौसमी, संतरे, कीनू, आलू बुख़ारा, बेरी, नीम, अलसी आदि की बाग़वानी कर रहे हैं. उनका कहना है कि गेहूं और धान के फ़सल चक्र से निकलने के लिए उन्होंने फलों की बाग़वानी शुरू की. उन्होंने शुरुआत नींबू से की. नींबू की अच्छी पैदावार के लिए उन्हें पिछले एक दशक से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना से नींबू जाति के विभिन्न सर्वोत्तम पौधों और फलों के लिए पहला इनाम मिल रहा है. उनका कहना है कि अपने खेत और उद्यानों के लिए वह ख़ुद ही जैविक खाद तैयार करते हैं. ख़ास मौक़ों पर वह धार्मिक स्थलों को मुफ़्त पौधे वितरित करते हैं.

हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले के किसानों ने पारंपरिक फ़सलों के साथ फल-सब्ज़ी उगाकर खेती के घाटे से ख़ुद को उबारा है. बाग़वानी से हर सीज़न में उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है. ग़ौरतलब है कि कृषि वानिकी योजना के तहत वन विभाग खेतों का चयन कर उनमें पौधे लगाता है. पहले किसान इस तरफ़ ध्यान नहीं देते थे, लेकिन कृषि वानिकी के फ़ायदे को देखते हुए किसान अब ख़ुद आगे आ रहे हैं. साल 2014- 2015 में ज़िले के 298 किसानों ने अपने खेतों में पौधे लगवाए हैं. इस योजना के तहत 1 लाख 40 हज़ार पौधे लगाए गए हैं. ये पौधे चार से पांच साल में तैयार हो जाते हैं. इनमें नीम,शहतूत, शीशम, देशी नीम, अर्जुन, सफ़ेदा, आड़ू और अमरूद आदि पौधे लगाए जाते हैं. हालांकि किसान सबसे ज़्यादा नीम, शहतूत और सफ़ेदा के पौधे पसंद करते हैं, क्योंकि ये कम समय में तैयार हो जाते हैं और बाज़ार में आसानी से इनकी बिक्री हो जाती है. ज़िले में इस समय तक़रीबन 650 हेक्टेयर क्षेत्र में फलों और 5400 हेक्टेयर क्षेत्र में सब्ज़ियों की खेती की जा रही है. इसी तरह पलवल ज़िले के किसान रमेश सैनी परंपरागत खेती के साथ अपने बाग़ों में फल उगाकर दोहरी कमाई भी कर रहे हैं. वह नौ एकड़ में बाग़वानी और छह एकड़ में खेती करते हैं. उन्होंने अपने बाग़ों में अमरूद, बेर, जामुन, नींबू, आंवला, बेलपत्र, शहतूत आदि के पेड़ लगाए हैं, जबकि खेतों में गेहूं, मूंग, उड़द, ज्वार, बरसीम, कपास, कचरी, लौकी, तोरी, भिंडी, बैंगन आदि फ़सलें उगाते हैं. वह बताते हैं कि बाग़ों में पेड़ों के बीच में जो जगह बचती हैं, उसमें भी खेती करते हैं. उनका कहना है कि वह किसानों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं क फ़ायदा उठाते हैं. उनकी मेहनत को देखते हुए उद्यान विभाग ने उन्हें मुफ़्त में पौधे मुहैया कराए और वक़्त पर खाद और दवाएं भी उपलब्ध कराते हैं. अगर कभी वक़्त पर उन्हें खाद और दवाएं नहीं मिल पातें, तो उन्हें बाज़ार से ज़्यादा दाम में खाद और दवाएं ख़रीदनी पड़ती हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार समय पर खाद, दवाएं और उन्नत अच्छे क़िस्म के बीज उपलब्ध कराए, तो किसानों की आमदनी और बढ़ सकती हैं.

पहले किसान रबी और ख़रीफ़ की पारंपरिक फ़सलें ही उगाते थे, लेकिन अब बाग़वानी विभाग की कोशिशों फल और सब्ज़ियां भी उगाने लगे हैं. बाग़वानी विभाग के अधिकारी इस काम में उनकी मदद करते हैं. श्रावस्ती के ज़िला बाग़वानी अधिकारी अनूप कुमार चतुर्वेदी का कहना है कि अगर किसान ख़रीफ़ फ़सल के मौसम में बाग़वानी करना चाहते हैं, तो उन्हें कहीं भटकने की ज़रूरत नहीं है. वे सीधा उद्यान विभाग में संपर्क कर सकते हैं. उद्यान विभाग की राजकीय पौधशाला में आम, अमरूद, नीबू और आंवला समेत तमाम फलदार पौधों की बेहतरीन नर्सरी लगाई गई है. पौधों की प्रजातियां भी ऐसी कि मन खुश हो जाए. दशहरी, लंगड़ा, चौसा और बांबे ग्रीन प्रजाति के आम के पौधे राजकीय पौधशाला मदारा से लिए जा सकते हैं.

अमूमन किसान जानकारी न होने की वजह से सरकारी योजनाओं का फ़ायदा नहीं उठा पाते. हरियाणा के कैथल के ज़िला बाग़वानी अधिकारी डॉ. जगफूल सिंह ने बताया कि राज्य सरकार फल, फूल और सब्ज़ियों की फ़सलों के लिए 25 से 100 फ़ीसद तक अनुदान दे रही है. उन्होंने बताया कि मलचिंग पर खीरा, ख़रबूज़ा, तरबूज़ आदि लगाने पर आठ हज़ार रुपये एकड़ अनुदान, अमरूद नींबू, कीनू आदि लगाने पर 11 हज़ार रुपये प्रति एकड़ का अनुदान लेकर एक किसान 10 एकड़ तक बाग़ लगा सकता है. टपका सिंचाई विधि पर 60 से 70 फ़ीसद अनुदान से किसान पानी, खाद, दवाई आसानी से खेत में डाल सकते हैं. हाईब्रीड सब्ज़ी लगाने पर आठ हज़ार रुपये प्रति एकड़ अनुदान दिया जा रहा है. पाली हाउस में 55 फ़ीसद और फूलों की खेती में 60 से 65 फ़ीसद अनुदान किसानों को दिया जाता है. मशरूम की यूनिट लगाने पर भी भारी अनुदान दिया जा रहा है. सब्ज़ी, फूलों के लिए नीम ऒयल, सब्ज़ी रखने की प्लास्टिक क्रेट 50 फ़ीसद अनुदान पर दी जा रही है.

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने के लिए परंपरागत खेती के साथ-साथ फल, फूल, सब्ज़ियों, तिलहन, दलहन और औषधीय पौधों की खेती करने पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए किसानों को खेती के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए. सब्ज़ियों और फल-फूल की खेती किसानों के लिए काफ़ी फ़ायदे का सौदा साबित हो रही है. इनकी की बुआई करने से फ़सल की अच्छी पैदावार तो होती ही है, वहीं किसानों को फ़सल के अच्छे दाम भी मिलते हैं. फ़सलों को बदल-बदल कर बोने से खेत की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है. इससे वातावरण हराभरा होता है और ताज़ा हवा मिलती है.

घटती कृषि भूमि, बढ़ती कृषि लागत से किसानों का मुनाफ़ा लगातार कम हो रहा है. ऐसे में किसान फ़सल चक्र के साथ-साथ फल- सब्ज़ियों की खेती करके ज़्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं. एक बार पेड़ रोप देने के बाद वे बरसों तक फल देते रहते हैं और इनसे इमारती लकड़ी भी मिलती है. है न सोने पे सुहागा. ज़्यादा जानकारी के लिए किसान अपने नज़दीकी बाग़वानी विभाग से संपर्क कर सकते हैं.

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