फ़िरदौस ख़ान
केंद्र सरकार ने देश में किसानों द्वारा कीटनाशकों के समुचित इस्तेमाल के लिए कई क़दम उठाए हैं. राष्ट्रीय स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी के तहत प्राप्त कीटनाशक अवशेष डेटा को राज्य सरकारों, संबंधित मंत्रालयों और संगठनों के साथ साझा किया गया है, ताकि एक एकीकृत कीट प्रबंधन के दृष्टिकोण के साथ फ़सलों पर कीटनाशकों का विवेकपूर्ण और समुचित इस्तेमाल के लिए सुधार की कार्रवाई शुरू की जा सके.

कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण (डीएसी एवं परिवार कल्याण), एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम), पर ज़ोर  देता है, जो कीटनाशकों के जैविक, सांस्कृतिक और यांत्रिक तरीक़ों को बढ़ावा देता है और कीटनाशकों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल की सिफ़ारिश करता है. डीएसी एवं परिवार कल्याण, एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) को बढ़ावा देने के लिए भारत में कीट प्रबंधन के दृष्टिकोण को सुदृढ़ बनाने और आधुनिकीकरण नामक की योजना को लागू कर रहा है, जो कीट समस्याओं के प्रबंधन के लिए पर्यावरण अनुकूल व्यापक पारिस्थितिक दृष्टिकोण है. इसमें कीट नियंत्रण की विभिन्न तकनीक शामिल हैं जैसे सांस्कृतिक, यांत्रिक और जैविक, ताकि रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम की जा सके.

एकीकृत कीट प्रबंधन में मानव संसाधन विकास कार्य के तहत किसानों के खेतों में प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करके ज़मीनी स्तर पर कृषि, बाग़वानी विस्तार अधिकारियों और किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है.
डीएसी एवं परिवार कल्याण ने एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग राज्यों में 35 केंद्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केन्द्रों की स्थापना की है. जैव नियंत्रण प्रयोगशालाओं की स्थापना, सुदृढ़ीकरण के लिए राज्यों को अनुदान भी दिया जाता है. इस प्रकार पूरे देश में तक़रीबन 313 जैव नियंत्रण प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है.

’सुरक्षित खाद्य उपजाएं’ अभियान, विभिन्न हितधारकों के बीच कीटनाशकों के सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए शुरू किया गया है. इसके अलावा डैक व परिवार कल्याण ने कीट प्रबंधन की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक तकनीक को प्रोत्साहन देने के लिए प्रमुख फ़सलों के लिए आचरण की 68 एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) पैकेज में संशोधन किया है. कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत मानव स्वास्थ्य के लिए उत्पाद की सुरक्षा के मूल्यांकन के बाद कीटनाशकों को पंजीकृत किया जाता है. पंजीकरण की यह भी शर्त होती है कि कीटनाशकों के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए किसानों और कीटनाशकों के उपयोगकर्ताओं के लिए कीटनाशकों के सुरक्षित उपयोग के निर्देश और लेबल कंटेनरों में शामिल हों. अगर कीटनाशकों का दिशा-निर्देशों के अनुसार उपयोग किया जाता है, तो इस बात की कम आशंका रहती है कि वे कृषि उत्पादों पर अवांछित प्रभाव छोड़ेगें.

ग़ौरतलब है कि कृषि मंत्रालय का कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग, नियमित रूप से ’राष्ट्रीय स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी’ की केन्द्रीय क्षेत्र की योजना के तहत खाद्य वस्तुओं और पर्यावरण के नमूनों में कीटनाशकों के अवशेष निगरानी कर रहा है. यह योजना, 2005-06 के दौरान शुरू की गई थी. इसमें देश भर के 25 प्रयोगशालाएं हिस्सा ले रही हैं, जिनमें प्रतिनिधिक स्तर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, पर्यावरण और वन मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, रसायन और उर्वरक मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और देश भर में राज्य कृषि विश्वविद्यालय शामिल हैं. हिस्सा लेने वाली प्रयोगशालाएं पूरे देश भर से विभिन्न कृषि उत्पाद विपणन कमेटियों, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खेतों से सिंचाई के पानी तथा मिट्टी के नमूने तथा कृषि उत्पादों के नमूने एकट्ठे करती हैं. विभिन्न खाद्य नमूनों जैसे सब्ज़ियां, फल, अनाज, मसाले, दाल, दूध, मक्खन, सिंचित पानी, मछली, मांस, चाय में संभव कीटनाशक अवशेषों की मौजूदगी के लिए विश्लेषण किया जाता है.

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