हेमलता म्हस्के
पुणे में 14 नवंबर को हजारों अनाथ बच्चों की ममतामई मां के रूप में विख्यात सिंधुताई सपकाल के जन्मदिन को  एक तरफ पूरे उत्साह के साथ उनके द्वारा गोद लिए गए बच्चों के विकसित परिवार ने मनाया और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इनकी प्रतिमा का अनावरण भी किया तो दूसरी तरफ सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन,पुणे की ओर से आयोजित एक विशाल सभा में वरिष्ठ पत्रकार और समाजकर्मी प्रसून लतांत सहित दर्जनों महिलाओं ने सिंधुताई सपकाल पर समाजसेविका हेमलता म्हस्के द्वारा लिखित और लेखिका ज्योति झा द्वारा संपादित पुस्तक का लोकार्पण किया गया। सिंधुताई सपकाल पर लिखी यह हिंदी की पहली पुस्तक है,जिसमें सिंधुताई के रहने और नही रहने के मायने के साथ अनाथ बच्चों के हित में उनके किए कार्यों का उल्लेख किया गया है।

लोग सिंधुताई सपकाल को महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के रूप में जानते रहे हैं। लेकिन उनका कार्य मदर टेरेसा से तुलना के लायक नहीं है। सिंधुताई ने साधनविहीन होते हुए भी अनाथ बच्चों के हित में जो कार्य किया है  वह अपने आप में पूरी तरह से मौलिक है। अपने देश में सिंधुताई का व्यक्तित्व का कोई जोड़ नहीं है। उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में एक हजार से अधिक बच्चों को गोद लिया था। हालांकि सिंधुताई खुद साधनविहीन थी। गाने गा कर भीख मांग कर ससुराल से बहिष्कृत महिला थी। जब वह गर्भवती थी तब उनको ससुराल से निकाल दिया गया था। बहुत बुरी हालत में सिंधुताई ने गाय के तबेले में बेटी को जन्म दिया और बेटी सहित हजारों अनाथ बच्चों को भीख मांग कर ना सिर्फ पालन पोषण किया बल्कि उनको पढ़ा लिखा कर उनको योग्य और सक्षम नागरिक भी बनाया। सिंधुताई को सैकड़ों संस्थाओं ने सम्मानित और पुरुस्कृत किया। 

पिछले साल सिंधुताई को पदमश्री से अलंकृत किया गया था और इसके कुछ ही महीने बाद इसी साल 4 जनवरी को उनका निधन भी हो गया था। सिंधुताई अपने पीछे अनाथ बच्चों का विकसित बहुत बड़ा परिवार छोड़ कर गई हैं। जिनमे दो सौ से अधिक दामाद है,36 बहुएं हैं और एक हजार से अधिक पोते और पोतियां हैं।
 
सिंधुताई सपकाल के जन्मदिन पर पुणे के बड़गांव शेरी में सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन की ओर से महिलाओं और बच्चों की सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और समाजकर्मी प्रसून लतांत ने कहा कि सिंधुताई ने अपने पूरे जीवनकाल में जो कार्य किया, वह न सिर्फ़ उल्लेखनीय है बल्कि दबी कुचली जा रही महिलाओं के लिए सदैव प्रेरणा श्रौत रहेगा। उन्होंने कहा कि सिंधुताई के जीवन के बारे में आज भी बहुत कुछ अछूता है। उनको सामने लाने की जरूरत है। सिंधुताई को  दुनिया सिर्फ अनाथ  बच्चों की मां के रूप में जानती है जबकि वे महिलाओं के हित में संघर्ष करने वाली यौद्घा भी थीं। उन्होंने महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों का खुल कर विरोध किया था इसलिए उनके सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हुई जिसका उन्होंने डट कर न सिर्फ मुकाबला किया बल्कि समाज सेवा के मौलिक तौर तरीके अपना कर  एक  नई मिसाल कायम कर दी। प्रसून लतांत ने महाराष्ट्र में सावित्रीबाई फुले से लेकर सिंधुताई तक की परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि समाज निर्माण में महाराष्ट्र की महिलाओं का योगदान अनुपम है लेकिन सरकारों ने उनको वह सम्मान नही दिया जिनकी वे हकदार हैं। उन्होंने जब सावित्रीबाई फुले को भारत रत्न से अलंकृत करने की बात की तो मौके पर मौजूद सैकड़ों महिलाओं ने हाथ उठाकर समर्थन किया। 

सभा को पुस्तक की लेखिका हेमलता म्हस्के ने सिंधु ताई सपकाल से मुलाकात के प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि सिंधुताई का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि कोई भी उनके प्रभाव से वंचित नहीं रह सकता है। उसी का प्रभाव था कि उन पर मैं एक किताब तैयार कर पाई। उन्होंने कहा कि समाज सेवा के लिए खुद के दुख दर्द को और अपने स्वार्थ को भूलना पड़ता है ,मन को संवेदनशील बनाना होता है। 

इस मौके पर विशिष्ट अतिथियों के रूप में मौजूद श्यामकांत पाटिल,माला ताई मून,  ईशा ताई, इंदुमती,सुवर्णा जाम दाडे और सचिन नारे ने अपने विचार व्यक्त किए। सिंधुताई के जन्मदिन पर लुधियाना पंजाब के हरिओम जिंदल,इंदुमती दराडे और मुंबई की कुतुब किदवई की ओर सौ से अधिक बच्चों के बीच बैग और कॉपियां वितरित की गई। साथ ही सामाजिक कार्यों के लिए पूनम बारके,शीतल गायकवाड,शिवानी म्हस्के,शाहबाज,कोमल ताई,इंदुमती दराडे विल्सन सरगड़े,सचिन नारे और यशोदा को सम्मानित किया गया।

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