वीर विनोद छाबड़ा
वो एक करिश्मा है. निर्देशक की नायिका है. उसे मालूम है कि किस गहराई और ऊंचाई के स्तर पर कब और कैसे परफार्म करना है. बात जब स्टाईल, सेक्सी और आकर्षक दिखने और अपनी मौजूदगी की अहसास कराने की होती है तो सिर्फ और सिर्फ उसी का ही नाम याद आता है. शून्य से शिखर तक की यात्रा उसने अकेले और अपने बूते की है. जब कभी वो राह भटकी है तो पुनः खुद को खोजा है. पुरुष बन कर पुरुषों वाले काम पुरुष से भी बेहतर ढंग से किये हैं. उसकी तुलना हालीवुड की लीजेंड ग्रेटा गोर्बा से होती है. अगर संक्षेप में हालीवुड की मर्लिन मुनरो सेक्स है तो बालीवुड की वो चमत्कार है. उसके नाम के बाद महान की सूची बंद हो जाती है. इस तरह की जब कहीं वार्ता हो रही हो तो यकीन जानिए यह सिर्फ और सिर्फ रेखा की बात हो रही होती है, जो आज ज़िंदगी के 70वें बरस में कदम रख रही है.
ये फिल्मी दुनिया भी विचित्र है. किस्मत मेहरबान हो तो बंदा पल भर में कहां से कहां पहुंच जाए. अपढ़ भी हेडमास्टर. लेकिन रेखा को महज किस्मत ने फर्श से अर्श तक नहीं पहुंचाया. इसमें उनकी अपनी भी मेहनत शामिल है. किसी ने कल्पना नहीं की थी कि मोहन सहगल की ‘सावन भादों’(1970) की वो पच्चासी झटके वाली थुलथुली और भोंदू रेखा, जिसको नाक तक पोंछने की तमीज नहीं है, एक दिन किवदंती बन जायेगी. इसकी वजह सिर्फ यह है कि रेखा बचपन से अब तक की जिंदगी में बेशुमार पतझड़ों से गुज़री है और कई अग्नि परीक्षाओं की भट्टी में पकी है. न जाने कितनी बार ज़हर पीया है. यह सब उसने आत्मसात करके मंथन किया है. इससे आगे अब शायद कुछ बचा भी नहीं है.
मुज़फ्फर अली जब ‘उमराव जान’ (1981) की तवायफ़ की तलाश कर रहे थे तो उन्हें सुंझाव दिया गया कि ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और ‘सुहाग’ की रेखा को देखें. और मुज़फ्फर की तलाश पूरी हो गयी. रेखा उमराव की जान बन गयी. इसके लिये सर्वश्रेष्ठ नायिका का राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला. एक इतिहासकार का कथन था कि गो उसने इतिहास में दर्ज उमराव जान को देखा तो नहीं है, लेकिन रेखा को देख कर दावे से कह सकता हूं कि उमराव जान ऐसी ही रही होगी.
परदे की दुनिया से बाहर रेखा लव अफेयर्स के लिये कई बरस तक खासी चर्चा में रही. विनोद मेहरा, किरन कुमार, जीतेंद्र और आखिर में अमिताभ बच्चन से उसके करीबी रिश्तों को लेकर गप्पोड़ियों की दुनिया चटखारे लेती रही. लेकिन कहीं न कहीं सच तो था, बिना आग के धुआं नहीं उठता. बताते हैं कि जया बच्चन से मिली फटकार के बाद रेखा मान गयी कि वो किसी का घर उजाड़ कर और किसी पत्नी का दिल तोड़ कर कतई अपना घर नहीं बसायेगी. इस प्रेम कथा की गिनती फिल्म इंडस्ट्री की टाप प्रेम कथाओं में होती है. इस चर्चित कथा का दि एंड भी खासा ड्रामाई रहा. यश चोपड़ा ने ‘सिलसिला में इसे एक खूबसूरत मोड़ देकर दफ़न कर दिया.
रेखा को अनेक संस्थाओं ने लाईफटाईम एवार्डों से नवाज़ा. भारत सरकार ने 2010 में पदमश्री दी. और 2012 में जब राज्यसभा की सदस्य बनाया था तो इसी सदन में जया बच्चन पहले से मौजूद थीं. 'सिलसिला' की यादें ताज़ा हो आयीं थीं.
रेखा ने लगभग 150 फिल्में की हैं. उम्र बढ़ी है लेकिन उमंगे अभी जवां हैं. पिछले दिनों उन्हें इंडियन आईडल के एक एपिसोड में देखा गया. वो फिटनेस की भी एक जीवित चर्चित मिसाल हैं. आज की पीढ़ी पूछती है वो क्या खाती हैं? कहां है वो चक्की? क्या पीती हैं? कौन सा योगासन करती हैं? किस मोहल्ले में है वो जिम जिसमें वो जाती हैं.
दो राय नहीं है कि रेखा की अब तक की फिल्मी यात्रा किसी महाकथा से कम नहीं है. इस पर एक कालजई बायोपिक भी बन सकती है.
हालाँकि पिछले काफ़ी वक़्त से रेखा की कोई फिल्म नहीं आयी है. बस टीवी इवेंट्स में नज़र आयीं. फ़िल्म जाने क्यों मुझे लगता कि रेखा का सर्वश्रेष्ठ अभी देखना बाकी है. ऐसा इसलिये कि ‘मदर इंडिया’ की नरगिस और ‘साहब बीवी और गुलाम’ की मीना कुमारी जैसे कालजई किरदार तो उन्होंने अभी किये ही नहीं हैं. किरदार तो बहुत हैं. मुज़फ्फर अली जैसे कैलिबर के किसी डायरेक्टर को ये पहल करनी चाहिए.