बीत रहा आश्विन

Posted Star News Agency Sunday, October 05, 2025


एक गीत
बीत रहा आश्विन
फूल भरा रूमाल बिखेरे
गंध भरे पल छिन
अब भी कभी याद आते हैं
त्यौहारों के दिन
दीवारों पर ऐपन वाला
हाथ अभी भी है
कभी अकेले में हो तो वो
साथ अभी भी है
चुहल शरारत मीठे लमहे
क्या नकदी,क्या ऋण
तैर रहे ईंगुर के अक्षर
उजले दरपन में
गीले पांव बने हैं अब भी
घर में,आंगन में
रीती गागर छोड़ गई है
तट पर पनिहारिन है
अपने मन का बना घरौंदा
ईंटे गारे से
अभी गया मनिहार लौटकर
देहरी द्वारे से
चिठ्ठी भेज रहीं नम आँखें
बीत रहा आश्विन ।
-यश मालवीय


أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ

أنا أحب محم صَلَّى ٱللّٰهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ
I Love Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam

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