उदासियों के दिन
आज कल
उदासियों में
दिन बसर
हो रहा है
शायद
कुछ खो
रहा है...
न मुस्कान की रोशनी है
न सपनों की कोई गली है
हर पल जैसे
खाली सा गुजर रहा है।
राहें भी चुपचाप हैं
हवाएँ भी बेहिसाब हैं
जैसे मन का आकाश
बादलों में घिर रहा है।
आँखों में एक धुंध है
दिल में अनकहा सा दर्द है
हर धड़कन बस यही कह रही है
कुछ छूट रहा है
कुछ टूट रहा है।
आज कल
उदासियों में
ये सफ़र चल रहा है
शायद
मन का कोई कोना
धीरे-धीरे
खाली हो रहा है...
-अंकिता पटेल