मोहम्मद रफीक चौहान
भारत में मुस्लिम समुदाय के पिछड़ने के कारण जटिल और बहुआयामी हैं। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और ऐतिहासिक कारकों के संयोजन से इस स्थिति को समझा जा सकता है। नीचे कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया है, जो संक्षिप्त और तथ्यपरक हैं:
1. शैक्षिक अवसरों की कमी: मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का प्रसार अन्य समुदायों की तुलना में कम रहा है। सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006) के अनुसार, मुस्लिमों में साक्षरता दर और उच्च शिक्षा प्राप्त करने की दर राष्ट्रीय औसत से कम है। सरकारी स्कूलों तक पहुंच, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, और आर्थिक तंगी इसके प्रमुख कारण हैं।
2. आर्थिक असमानता: मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा निम्न-आय वाले व्यवसायों, जैसे छोटे व्यापार, कारीगरी, या असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है। उच्च-स्तरीय नौकरियों और उद्यमिता में उनकी भागीदारी सीमित रही है, जिसके कारण आर्थिक प्रगति बाधित होती है।
3. सामाजिक भेदभाव और अलगाव: कुछ क्षेत्रों में सामाजिक और भौगोलिक अलगाव (गेटोकरण) के कारण मुस्लिम समुदाय मुख्यधारा के अवसरों से वंचित रह जाता है। भेदभावपूर्ण रवैये, विशेषकर नौकरियों और आवास में, उनकी प्रगति को प्रभावित करते हैं।
4. राजनीतिक और नीतिगत उपेक्षा: मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष रूप से लक्षित कल्याणकारी योजनाओं का अभाव रहा है। सकारात्मक नीतियों, जैसे आरक्षण या समावेशी विकास कार्यक्रम, में उनकी भागीदारी सीमित रही है।
5. सांस्कृतिक और धार्मिक कारक: कुछ मामलों में, रूढ़िवादी सामाजिक प्रथाएं, जैसे बाल विवाह या लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान, प्रगति में बाधा बनती हैं। हालांकि, यह सभी मुस्लिम समुदायों पर लागू नहीं होता।
6. ऐतिहासिक संदर्भ: विभाजन और उसके बाद के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य ने मुस्लिम समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला। कई शिक्षित और समृद्ध मुस्लिम परिवारों का पलायन हुआ, जिससे भारत में बचे समुदाय को नेतृत्व और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा।
वर्तमान स्थिति: हाल के वर्षों में, कुछ क्षेत्रों में प्रगति दिख रही है, जैसे उच्च शिक्षा में बढ़ती भागीदारी और उद्यमिता में वृद्धि। सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम, जैसे स्कॉलरशिप योजनाएं और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम, भी मदद कर रहे हैं। फिर भी, संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
नोट: यह विश्लेषण सामान्यीकृत है और सभी मुस्लिम समुदायों पर एकसमान लागू नहीं होता, क्योंकि भारत में मुस्लिम आबादी विविध और क्षेत्रीय रूप से भिन्न है।
सच्चर समिति रिपोर्ट पर विस्तार
सच्चर समिति की रिपोर्ट, जिसका पूरा नाम "प्रधानमंत्री की उच्च स्तरीय समिति की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट" है, भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति का आकलन करने के लिए 2005 में गठित एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस समिति का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में हुआ था, और इसका नेतृत्व जस्टिस (सेवानिवृत्त) रजिंदर सच्चर ने किया। इसका उद्देश्य भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करना और उनकी प्रगति में आने वाली बाधाओं को समझना था। 2006 में प्रस्तुत इस रिपोर्ट ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया और नीतिगत सुधारों के लिए सिफारिशें कीं। नीचे इसके प्रमुख बिंदुओं और निष्कर्षों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
सच्चर समिति के गठन का उद्देश्य
- भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का व्यापक विश्लेषण करना।
- अन्य सामाजिक-आर्थिक समूहों, जैसे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), के साथ उनकी स्थिति की तुलना करना।
- सरकारी योजनाओं और नीतियों में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी का मूल्यांकन करना।
- समुदाय के विकास के लिए नीतिगत सुझाव देना।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
1. शैक्षिक स्थिति:
- मुस्लिम समुदाय में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत (लगभग 65% उस समय) से कम थी, जो 59.1% थी।
- उच्च शिक्षा (स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर) में मुस्लिमों की भागीदारी बहुत कम थी। केवल 3.6% मुस्लिम 20 वर्ष से अधिक आयु के लोग स्नातक थे, जबकि राष्ट्रीय औसत 7% था।
- मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा में विशेष रूप से कमी थी, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में उनकी भागीदारी भी नगण्य थी।
2. आर्थिक स्थिति:
- मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत था, जैसे छोटे व्यापार, कारीगरी, और मजदूरी।
- उनकी औसत आय राष्ट्रीय औसत से कम थी, और गरीबी का स्तर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के समान या उससे भी अधिक था।
- सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की हिस्सेदारी उनकी आबादी (लगभग 13.4% उस समय) के अनुपात में बहुत कम थी।
उदाहरण के लिए, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में उनकी हिस्सेदारी केवल 3% थी।
3. सामाजिक स्थिति:
- मुस्लिम समुदाय कई क्षेत्रों में सामाजिक और भौगोलिक अलगाव का सामना करता था। वे अक्सर विशिष्ट क्षेत्रों या "गेटो" में रहते थे, जहां बुनियादी सुविधाएं (जैसे स्कूल, अस्पताल, और सड़कें) सीमित थीं।
- भेदभावपूर्ण व्यवहार, जैसे नौकरियों और आवास में अस्वीकृति, की शिकायतें आम थीं।
- सामाजिक गतिशीलता (सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार) अन्य समुदायों की तुलना में कम थी।
4. सरकारी योजनाओं में भागीदारी:
- गरीबी उन्मूलन और कल्याणकारी योजनाओं में मुस्लिमों की पहुंच और भागीदारी सीमित थी।
- वित्तीय समावेशन, जैसे बैंक ऋण और क्रेडिट सुविधाओं तक उनकी पहुंच कम थी, जिससे उद्यमिता और व्यवसाय शुरू करने में बाधा आती थी।
5. स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएं:
- मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं, स्वच्छता, और पीने का पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं अपर्याप्त थीं।
- शिशु मृत्यु दर और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच राष्ट्रीय औसत से खराब थी।
सिफारिशें
सच्चर समिति ने मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिनमें शामिल हैं:
1. शैक्षिक सुधार:
- मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना।
- लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन।
- तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ाने के लिए कार्यक्रम।
2. आर्थिक सशक्तिकरण:
- सुक्ष्म-वित्त और ऋण सुविधाओं तक बेहतर पहुंच।
- कौशल विकास और उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रमों में समावेश।
3. सामाजिक समावेशन:
- भेदभाव को कम करने के लिए जागरूकता अभियान और कानूनी उपाय।
- मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का विकास।
4. संस्थागत सुधार:
- समान अवसर आयोग (Equal Opportunity Commission) की स्थापना।
- सरकारी नौकरियों और नीति निर्माण में मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ाने के लिए डेटा संग्रह और निगरानी तंत्र।
5. विशेष योजनाएं:
- मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के लिए लक्षित विकास योजनाएं।
- अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की योजनाओं को और प्रभावी बनाने के लिए संसाधन आवंटन।
प्रभाव और कार्यान्वयन
- सकारात्मक प्रभाव:
- सच्चर समिति की रिपोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की स्थिति पर राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया और नीतिगत ध्यान आकर्षित किया।
- इसके बाद कई योजनाएं शुरू की गईं, जैसे अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति, मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन के तहत सहायता, और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के लिए मल्टी-सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (MsDP)।
- कुछ राज्यों में शिक्षा और रोजगार में प्रगति दिखी।
- सीमाएं और चुनौतियां
- कई सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन नहीं हुआ, विशेषकर समान अवसर आयोग जैसे संस्थागत सुधार।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नौकरशाही बाधाओं ने कुछ योजनाओं को प्रभावित किया।
- सामाजिक और आर्थिक असमानता को पूरी तरह दूर करने के लिए दीर्घकालिक और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता थी, जो अपर्याप्त रहे।
वर्तमान प्रासंगिकता
- सच्चर समिति की रिपोर्ट आज भी भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है।
- हाल के वर्षों में, कुछ क्षेत्रों में प्रगति हुई है, जैसे उच्च शिक्षा में बढ़ती भागीदारी और डिजिटल समावेशन। हालांकि, गरीबी, बेरोजगारी, और सामाजिक भेदभाव जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं।
- नीतिगत स्तर पर, अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने कुछ हद तक मदद की है, लेकिन संरचनात्मक असमानताओं को पूरी तरह खत्म करने के लिए और अधिक समन्वित प्रयासों की जरूरत है।
सिफारिशों का कार्यान्वयन
सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006) ने भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की थीं। इन सिफारिशों के कार्यान्वयन की प्रगति और चुनौतियों का विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है:
प्रमुख सिफारिशें और उनका कार्यान्वयन
1. शैक्षिक सुधार
- सिफारिश: मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना, लड़कियों की शिक्षा के लिए विशेष छात्रवृत्तियाँ, और तकनीकी/व्यावसायिक शिक्षा में भागीदारी बढ़ाने के लिए कार्यक्रम।
- कार्यान्वयन
- छात्रवृत्ति योजनाएं: केंद्र और राज्य सरकारों ने अल्पसंख्यक समुदायों (विशेषकर मुस्लिमों) के लिए प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक, और मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप योजनाएं शुरू कीं। इन योजनाओं ने लाखों मुस्लिम छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने में मदद की।
उदाहरण के लिए, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 60 लाख से अधिक छात्रों को इन योजनाओं का लाभ मिला।
- मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन: इसने मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए, जैसे बेगम हजरत महल छात्रवृत्ति।
- मदरसा आधुनिकीकरण: सरकार ने SPQEM (Scheme for Providing Quality Education in Madrasas) शुरू किया, जिसके तहत मदरसों में आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, और अंग्रेजी को शामिल किया गया। हालांकि, इसकी पहुंच सीमित रही।
- प्रगति: साक्षरता दर और उच्च शिक्षा में मुस्लिमों की भागीदारी में सुधार हुआ।
उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम साक्षरता दर 59.1% से बढ़कर 68.5% हो गई। फिर भी, यह राष्ट्रीय औसत (74%) से कम थी।
- चुनौतियां: मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्कूलों की कमी, शिक्षकों की अपर्याप्तता, और जागरूकता की कमी ने पूर्ण कार्यान्वयन में बाधा डाली।
2. आर्थिक सशक्तिकरण:
- सिफारिश: सूक्ष्म-वित्त और ऋण सुविधाओं तक पहुंच, कौशल विकास, और उद्यमिता प्रशिक्षण में समावेश।
- कार्यान्वयन:
- मल्टी-सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (MsDP): मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास के लिए शुरू किया गया। इसमें स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, और कौशल विकास केंद्र स्थापित किए गए। 2014 तक, 90 अल्पसंख्यक-केंद्रित जिलों में इस कार्यक्रम को लागू किया गया।
- नेशनल माइनॉरिटी डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (NMDFC): मुस्लिमों सहित अल्पसंख्यकों को सस्ते ऋण प्रदान किए गए। 2020 तक, NMDFC ने हजारों लाभार्थियों को सूक्ष्म-वित्त प्रदान किया।
- कौशल विकास: स्किल इंडिया और सीखो और कमाओ जैसे कार्यक्रमों में मुस्लिम युवाओं को शामिल किया गया। उदाहरण के लिए, सीखो और कमाओ योजना ने 2013-14 से 2020 तक लगभग 1.5 लाख अल्पसंख्यक युवाओं को प्रशिक्षण दिया।
- प्रगति: असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत मुस्लिमों की संख्या में कमी और छोटे व्यवसायों में वृद्धि देखी गई। कुछ शहरी क्षेत्रों में उद्यमिता बढ़ी।
- चुनौतियां: वित्तीय समावेशन अभी भी सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच कम है, और NMDFC जैसे संस्थानों का प्रभाव छोटे शहरों और गांवों तक पूरी तरह नहीं पहुंचा।
3. सामाजिक समावेशन:
- सिफारिश: भेदभाव को कम करने के लिए जागरूकता अभियान, कानूनी उपाय, और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास।
- कार्यान्वयन:
- MsDP के तहत बुनियादी ढांचा: मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में सड़कें, स्कूल, और स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए। 2014-2020 के बीच, इस योजना के तहत सैकड़ों परियोजनाएं पूरी की गईं।
- जागरूकता अभियान: कुछ राज्यों में सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाए गए, लेकिन ये बड़े पैमाने पर प्रभावी नहीं रहे।
- प्रगति: कुछ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं में सुधार हुआ, जैसे पीने का पानी और बिजली की उपलब्धता। शहरी क्षेत्रों में सामाजिक गतिशीलता में मामूली वृद्धि हुई।
- चुनौतियां: सामाजिक भेदभाव और गेटोकरण की समस्या बनी रही। आवास और नौकरियों में भेदभाव की शिकायतें अब भी प्रचलित हैं।
4. संस्थागत सुधार:
- सिफारिश: समान अवसर आयोग (Equal Opportunity Commission) की स्थापना और सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ाने के लिए डेटा संग्रह तंत्र।
- कार्यान्वयन:
- समान अवसर आयोग: इसकी स्थापना नहीं हुई, जो एक प्रमुख कमी रही। सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
- डेटा संग्रह: कुछ हद तक डेटा संग्रह शुरू हुआ, जैसे अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा योजनाओं की निगरानी, लेकिन यह व्यवस्थित और व्यापक नहीं रहा।
- सरकारी नौकरियां: मुस्लिमों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कोई विशेष आरक्षण नीति लागू नहीं की गई। हालांकि, कुछ राज्यों में OBC श्रेणी के तहत मुस्लिम उप-समूहों को लाभ मिला।
- प्रगति: सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की हिस्सेदारी में मामूली सुधार हुआ, लेकिन यह अभी भी उनकी जनसंख्या के अनुपात में कम है।
- चुनौतियां: समान अवसर आयोग का अभाव और नीतिगत उपेक्षा ने इस क्षेत्र में प्रगति को सीमित किया।
5. विशेष योजनाएं:
- सिफारिश: मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के लिए लक्षित विकास योजनाएं और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की योजनाओं को प्रभावी बनाना।
- कार्यान्वयन:
- अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय: इसने कई योजनाएं चलाईं, जैसे हज सुब्सिडी (2018 में समाप्त), उस्ताद योजना (पारंपरिक कारीगरों के लिए), और नई रोशनी (महिला सशक्तिकरण के लिए)।
- 15-पॉइंट प्रोग्राम: 2006 में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी ढांचे में सुधार था। इसने कुछ हद तक प्रभाव दिखाया, विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य में।
- प्रगति: कुछ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं और शिक्षा में सुधार हुआ। उदाहरण के लिए, मुस्लिम-बहुल जिलों में स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ी।
- चुनौतियां: योजनाओं का कार्यान्वयन असमान रहा। कई राज्यों में धन का उपयोग अपर्याप्त रहा, और निगरानी की कमी के कारण परिणाम सीमित रहे।
कुल मिलाकर प्रगति और कमियां
- प्रगति:
- शिक्षा में सुधार, विशेषकर साक्षरता दर और स्कूल नामांकन में वृद्धि।
- कुछ आर्थिक योजनाओं, जैसे NMDFC और सीखो और कमाओ, ने मुस्लिम युवाओं और कारीगरों को लाभ पहुंचाया।
- बुनियादी ढांचे के विकास ने कुछ हद तक मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों की स्थिति सुधारी।
- कमियां:
- कई महत्वपूर्ण सिफारिशें, जैसे समान अवसर आयोग और व्यवस्थित डेटा संग्रह, लागू नहीं हुईं।
- सामाजिक भेदभाव और गेटोकरण जैसी संरचनात्मक समस्याएं बनी रहीं।
- नीतिगत कार्यान्वयन में राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरशाही दक्षता की कमी।
- ग्रामीण और छोटे शहरों में योजनाओं की पहुंच सीमित रही।
वर्तमान संदर्भ (2025 तक)
- हाल के वर्षों में, सरकार ने डिजिटल समावेशन और स्किल डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में जोर दिया है, जो मुस्लिम समुदाय के लिए भी लाभकारी रहा है।
उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया ने कुछ मुस्लिम उद्यमियों को अवसर प्रदान किए।
- हालांकि, सच्चर समिति की सिफारिशों का पूर्ण कार्यान्वयन अभी भी अधूरा है। सामाजिक और आर्थिक असमानताएं कम करने के लिए और अधिक लक्षित और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
- कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और सामुदायिक पहल ने भी शिक्षा और कौशल विकास में योगदान दिया है, लेकिन ये प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर सीमित प्रभाव डाल पाए हैं।
निष्कर्ष
सच्चर समिति की रिपोर्ट ने भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति को व्यवस्थित रूप से उजागर किया और यह दिखाया कि उनकी प्रगति में कई संरचनात्मक और ऐतिहासिक बाधाएं हैं। यह नीतिगत सुधारों और सामाजिक समावेशन के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है।
सच्चर समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन में मिश्रित परिणाम देखे गए हैं। शिक्षा और बुनियादी ढांचे में कुछ प्रगति हुई, लेकिन संरचनात्मक सुधार, जैसे समान अवसर आयोग और भेदभाव-विरोधी उपाय, लागू नहीं हो पाए। ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच और नीतिगत निरंतरता की कमी प्रमुख चुनौतियां बनी हुई हैं।
(लेखक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट करनाल में एडवोकेट, लॉ बुक लेखक और क़ानूनी सलाहकार हैं)