कहते हैं कि जहां चाह वहां राह। आदिला अन्सेर के मामले में ये प्रेरक शब्द कहीं अधक चरितार्थ हुए हैं। कई वर्ष पहले 9 बच्चों में सबसे बड़ी आदिला के कंधों पर उसके परिवार का सारा बोझ आन पड़ा। उसके कमजोर कंधों पर उसके पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी, लेकिन फिर भी उसका हौसला अटल और इच्छाशक्ति दृढ़ बनी रही। यह पुरानी कहावत उस वक्त सच साबित हुई जब उसने अपने लिए तथा अपने आश्रितों के लिए भी अनेक अवसर पैदा किए। शिमोगा जिले के एक औद्योगिक कस्बे भद्रावती की यह साहसी महिला दसवीं कक्षा तक पढ़ी है। यह आज एक गैर सरकारी संगठन जीवा (जवाहर एजुकेशन, एम्पावरमेंट, विज़न इन एक्शन) की निदेशक हैं। इस एनजीओ का सकल वार्षिक कारोबार 14-17 लाख रुपए का है। वर्षों से यह एनजीओ जिले के विविध भागों में स्व सहायता समूह बनाने और चलाने में सहायता करता आया है।
आदिला ने 15 वर्ष की उम्र में दसवीं (एसएसएलसी) करते ही 1983 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में कैरियर प्रारंभ किया। जब वह महिला समूह का अंग बनी तो स्व सहायता समूह को चलाने और उपयोगिता के बारे में पहले बीज बोए गए। वर्ष 1993 में जवाहर महिला मंडली नाम से इस अनौपचारिक समूह ने औपचारिक शुरूआत की। उसके बाद आदिला ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह समुदाय कार्य में सक्रिय रूप से संलग्न हो गई । वह स्व सहायता समूहों को एकजुट करने तथा उन्हें बनाने में मदद करने लगी। तब से लेकर आज तक वह महिला मंडल शिमोगा और भद्रावती के विविध भागों में 286 समूहों को बनाने में मदद कर चुका है। तब का महिला मंडल आज पूर्ण सुसज्जित एनजीओ यानी गैर सरकारी संगठन है। इन 286 समूहों में से 42 पुरूषों के तथा 15 विकलांग व्यक्तियों के स्व सहायता समूह हैं। महिलाओं वाले कुल स्व सहायता समूहों में से 78 अल्पसंख्यक समूहों के हैं। करीब 4800 लोग इन विभिन्न समूहों के सदस्य बन चुके हैं।
ये स्व सहायता समूह विभिन्न गतिविधियों में संलग्न हैं जिनमें अचार और सांभर पाउडर बनाना, कसीदाकारी और दस्तकारी, साबुन एवं फिनाइल बनाना, ठोस अवशिष्ट प्रबंधनवर्मी कम्पोस्ट बनाना इत्यादि शामिल हैं। जीवा पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों, विधवाओं, बच्चों और नि:सहाय व्यक्तियों के लिए स्व रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए रोजगारोन्मुख पाठयक्रम भी चलाता है। इस गैर सरकारी संगठन को इलैक्ट्रानिक उपकरणों की मरम्मत के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण देने का श्रेय भी हासिल है। इस पाठयक्रम में प्रशिक्षण हासिल कर चुकी दो महिलाएं शिमोगा में अपनी दुकानें चला रही हैं।
इस गैर सरकारी संगठन की कामयाबी ने आदिला अन्सेर की उपलब्धियों में चार चांद लगा दिए हैं। आदिला ने अल्पसंख्यक प्रधान धर्म घाट्टा क्षेत्र में अल्पसंख्यकों से जो संपर्क और संबंध कायम किए हैं उससे शिमोगा जिला पंचायत को बहुत मदद मिली है। शिमोगा जिला पंचायत को सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत परिवारों के लिए व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण के लिए कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। आदिला ने सफलतापूर्वक मध्यस्थता की और वह समुदाय को सफाई एवं स्वच्छता के स्वास्थ्य संबंधी फायदे समझाने में सफल रहीं। अब गांववालों का कहना है कि इन शौचालयों से उनकी प्रतिष्ठा और हैसियत में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, तथा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा बढ़ी है।
यह अल्पसंख्यक समुदाय की महिला की सफलता की कहानी है जिसने दूसरों की मदद करना अपना ध्येय बना लिया है। कई वर्ष पहले आदिला को जिन हालात का सामना करना पड़ा, उनमें घिरी अपने जैसी अन्य महिलाओं की मदद करना उसके जीवन का ध्येय बन गया है। वह कहती है कि यही बात उसे निरन्तर काम जारी रखने का हौसला देती है।