हिसार (हरियाणा). चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को गेहूं की फसल में इन दिनों होने वाली खुली कांगियारी, पत्तों की कांगियारी तथा करनाल बंट नामक बीमारियों से फसल को बचाने का आह्वान किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन रोगों के कारण पैदावार तथा गेहूं की गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ता है।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. आर.पी. नरवाल ने बताया कि खुली कांगियारी के कारण बालियों में दानों की बजाय काला चूर्ण बन जाता है तथा प्राय: रोगी पौधों में सभी बालियां रोगग्रस्त होती हैं। फसल में गोभ अवस्था में प्रभावित पौधों की सबसे ऊपर वाली पत्ती पीली पड़कर सूखनी शुरू हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों ने रोगग्रस्त पौधों को ध्यानपूर्वक उखाड़कर मिट्टी में दबाने की सलाह दी है ताकि रोग के बीजाणु साथ वाले स्वस्थ पौधों में बन रहे दानों तक न जा सकें।
अनुसंधान निदेशक के मुताबिक पत्तों की कांगियारी रोग प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों भिवानी, सिरसा, रिवाड़ी, झज्जर व अम्बाला जिले के नारायणगढ़ क्षेत्र में अधिक पाया जाता है, जबकि करनाल बंट रोग प्राय: नमी वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। उन्होंने कहा कि पत्तों की कांगियारी रोग होने पर पत्तों पर नसों के समानान्तर लम्बी व चमकीली काली धारियां बन जाती हैं। बाद में इनके फटने से काले रंग का चूर्ण निकलता है जिसमें रोग को फैलाने वाली फफूंद के असंख्य बीजाणु होते हैं।
इस रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने रोगग्रस्त पौधों को तुरन्त उखाड़कर जला देने तथा प्रभावित खेतों में 2-3 वर्ष का फसल-चक्र अपनाये जाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि करनाल बंट रोग का पता गेहूं निकालने के बाद खलिहान व मंडियों में ही चल पाता है, क्योंकि रोगग्रस्त दानों का अंदरूनी भाग आंशिक व पूर्ण रूप से काले चूर्ण में बदल जाता है। इसकी रोकथाम के लिए किसानों को बिजाई से पूर्व ही उपचार आदि की सावधानियां बरतनी चाहिएं।