सरफ़राज़ ख़ान
हिसार (हरियाणा). चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग की अध्यक्षा डॉ. सुचेता खोखर ने जिले में सरसों की फसल पर चेपा कीट के प्रकोप को देखते हुए किसानों से इस कीट पर नियंत्रण पाने हेतु तुरंत कदम उठाने की अपील की है। उनके अनुसार कीट विज्ञान विभाग की टीम ने हाल ही में जिले में सरसों तथा चना की फसलों का सर्वेक्षण किया है, जिसमें सरसों की फसल पर चेपा का व्यापक प्रकोप पाया गया है।
डॉ. खोखर ने बताया कि क्षेत्र में सरसों के लगभग प्रत्येक खेत को चेपा नुकसान पहुंचा रहा है, जबकि करीब 20 प्रतिशत खेतों में इसका भारी प्रकोप है। उन्होंने बताया कि चेपा कीट फूलों, टहनियों व हरी फलियों से अत्यधिक रस चूसता है जिससे वह मुरझाकर सूख जाते हैं तथा पुरानी हरी फलियों में भी बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं। इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि आगामी पखवाड़े में जहां फसल पकने के करीब है वहां चेपे द्वारा नुकसान कम होगा, जबकि पछेती पकने वाली फसल जिसमें अभी भी काफी संख्या में फूल मौजूद हैं, में काफी नुकसान होने की संभावना है। उन्होंने इस कीट की रोकथाम के लिए किसानों को फसल पर सिफारिश किए गए कीटनाशियों का छिड़काव करने की सलाह दी है । किसान प्रति एकड़ 300 मि.ली. मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी. अथवा रोगोर 30 ई.सी. को 300 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
डॉ. खोखर के अनुसार क्षेत्र में चने की फसल पर फिलहाल इस पर लगने वाली सुण्डी (हैलीकोवरपा) का प्रकोप बहुत कम यानि आर्थिक कगार से नीचे है, लेकिन आगामी पखवाड़े में इस कीट की अगली पीढ़ी आरंभ हो जाएगी जो चने को हानि पहुंचा सकती है। उन्होंने कहा कि अगेती पकने वाली फसल में कोई विशेष नुकसान होने की संभावना नहीं है परंतु अधिक पछेती फसल में यह काफी नुकसान कर सकती है। उन्होंने कहा कि इस कीट की संख्या आर्थिक कगार अर्थात एक सुण्डी प्रति दो मीटर फसल पंक्ति पर पहुंच जाने पर कीटनाशी का छिड़काव अवश्य किया जाना चाहिए।
उधर, अनुसंधान निदेशक डॉ. आर.पी. नरवाल ने किसानों से अपनी फसल का समय-समय पर निरीक्षण करते रहने को कहा है। उन्होंने कहा इससे पहले कि कीट फसल को नुकसान पहुंचाएं इनकी उचित तरीकों से रोकथाम अवश्य की जानी चाहिए।