प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी की आज बरसी है. आज ही के दिन 1972 में इस महान अभिनेत्री ने आखिरी सांस ली थी.  मीना कुमारी को ट्रेजडी क्वीन के नाम से जाना जाता है. दुखांत फिल्मों में उनकी यादगार भूमिकाओं के लिए उन्हें यह नाम दिया गया था.

मीना कुमारी का असली नाम माहजबीं बानो था. उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मंजे हुये कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था. उनकी मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो) भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थीं. उनका संबंध टैगोर परिवार से था. माहजबीं ने पहली बार किसी फिल्म के लिए छह साल की उम्र में काम किया था. उनका नाम मीना कुमारी विजय भट्ट की लोकप्रिय फिल्म 'बैजू बावरा' पड़ा. मीना कुमारी की शुरुआती फिल्में ज़्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं. मीना कुमारी के आने के साथ भारतीय सिनेमा में नई अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरू हुआ था जिसमें नरगिस, निम्मी, सुचित्रा सेन और नूतन शामिल थीं.

1953 तक मीना कुमारी की तीन सफल फिल्में आ चुकी थीं जिनमें : दायरा, दो बीघा ज़मीन और परिणीता शामिल थीं. परिणीता से मीना कुमारी के लिये एक नया युग शुरु हुआ. परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूंकि इस फिल्म में भारतीय नारियों के आम जिदगी की तकलीफ़ों का चित्रण करने की कोशिश की गई थी. लेकिन इसी फिल्म की वजह से उनकी छवि सिर्फ़ दुखांत किरदार करने वाले की होकर सीमित हो गई.

मीना कुमारी की शादी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ हुई जिन्होंने मीना कुमारी की कुछ मशहूर फिल्मों का निर्देशन किया था, लेकिन उनकी शादी कामयाब नहीं रही मीना अमरोही से 1964 में अलग हो गईं. शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं, लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की. उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में प्रकाशित हुईं.
पेश है मीना कुमारी की चंद नज़्में

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली

रिमझिम-रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आंखें हंस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आंखों में, सादा सी जो बात मिली


चांद तन्हा है, आसमां तन्हा

दिल मिला है कहां-कहां तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा।
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं।
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।
हमसफ़र कोई मिल गया जो कहीं
दोनों चलते रहे यहां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा


दिन गुज़रता नज़र नहीं आता
रात काटे सेभी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उम्र बांटे से भी नहीं बंटती
अकेलेपन के अंधेरे में दूर-दूर तलक
यह एक खौफ़ जी पे धुआं बनके छाया है
फिसल के आंख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक-पलक ने जिस राह से उठाया है
शाम का यह उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख बढ़ता जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो कुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज़ में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आंखों के तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आगोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है



मुसर्रत पे रिवाजों का सख्त पहरा है,
न जाने कौन-सी उम्मीदों पे दिल ठहरा है
तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की क़सम
ए दोस्त दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है


वक़्त ने छीन लिया हौसला-ए-जब्ते सितम
अब तो हादिसा-ए- ग़म पे तड़प उठता है दिल
हर नए ज़ख्म पे अब रूह बिलख उठती है
होंठ अगर हंस भी पड़े आंख छलक उठती है
ज़िन्दगी एक बिखरता हुआ दर्दाना है
ऐसा लगता है कि अब ख़त्म पर अफ़साना है

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं