सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उनसे यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हमसे न होगा कि किसी एक को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहां है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
-जांनिसार अख्तर
ज़िन्दगी
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हमने ज़िन्दगी में जो चाहा वह नहीं मिला, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा मिला. ज़मीन
चाही, तो आसमान मिला... इतना मिला कि अब कुछ और चाहने की 'चाह' ही नहीं रही.
* ज़िन...