मलिक असगर हाशमी
अगले महीने फ्रांस में बुर्के पर बंदिश लगाने के लिए कानून लाने और 14 साल बाद लाजपत नगर ब्लास्ट के आरोपियों को सजा सुनाए जाने को लेकर उर्दू अखबारों में खासी बहस छिड़ी हुई है। एक तबका दुनिया के उन नब्बे मुल्कों के साथ है जहां अपराधियों को फांसी की सजा नहीं दी जाती। जबकि नकाब पर पाबंदी लगाने के फैसले को इस्लाम केबुनियादी उसूलों के साथ छेड़छाड़ बताया जा रहा है।
अमेरिकी पत्रिका ‘फारेन पॉलिसी’में छपी एक रिपोर्ट को उर्दू अखबारों ने खासी तरजीह दी है। अनुवाद कर छापी गई इस रिपोर्ट मेंजानकारी दी गई है कि अपराधियों को फांसी के तख्ते पर लटकाने में चीन दुनिया भर में अव्वल है। पिछले साल ईरान में जहां 177 और इराक में 165 लोग फांसी पर चढ़ाए गए। चीन में इस दौरान एक हजार दस लोगों को फांसी लगाई गई।
एक एनजीओ की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में 2007 में 42 महिलाएं और तीन बच्चों समेत 109 लोग सूली पर लटकाए गए। ‘सहाफत’ में असद मुफ्ती फांसी की सजा समाप्त करने की वकालत करते हैं जबकि कश्मीरी अखबारों ने लाजपत नगर धमाके में दिल्ली की जिला अदालत द्वारा उनके प्रदेश के तीन युवाओं को फांसी की सजा सुनाने की आलोचना की है।
‘रोजनामा रोशनी’ ने हुर्रियत कान्फ्रेंस के एक गुट के हवाले से कहा गया है- भारतीय अदालतें कश्मीरियों के मामले में पक्षपाती नजरिया रखती हैं। इन खबरों की बीच कुछ ऐसी खबरें भी सामने आई जिससे मुस्लिम महिलाओं की बदलती जहनियत और रुझान का पता चलता है।
एक अखबार में अनीसा मेहंदी ने अपने लेख में अमेरिकन यूनिवर्सिटी के फिल्म एंड मीडिया डीविजन की निदेशक ब्रिजेड माहर की फिल्म ‘नकाबपोश औरतों’ के जरिए बताया कि दुनिया मुस्लिम औरतों के प्रति चाहे जैसा नजरिया रखती है। हकीकत में आम औरतों की तरह उनकी जेहनियत भी बदल रही है।
चंद रोज कबल खैरुन्नीसा की पहल पर केरल हाईकोर्ट के मुस्लिम महिला के तलाक लेने के संदर्भ में दिए गए ऐतिहासिक फैसले को भी उसी नजरिए से देखना चाहिए। ‘जदीद खबर’ में सैयद मंसूर आगा लिखते हैं ‘यह मुस्लिम खानदानी जिंदगी पर दूर तक असर करेगा।’
शरियत मुसलमानों को चार शादियों की इजाजत देती है। आम शिकायत है एक से ज्यादा शादियां करने वाला शख्स अपनी सभी पत्नियों के साथ समान बर्ताव नहीं करता। खैरुन्नीसा की शादी 1980 में अब्दुल रहमान से हुई थी। शादी के तीन साल बाद पति ने दूसरी शादी कर ली। उसके बाद उसके साथ भी वही सब होने लगा जो नई के आने के बाद पुरानी के साथ होता है। इससे परेशान होकर वह तलाक के लिए कोर्ट पहुंच गई। दो जजों की बेंच ने इस मामले में खैरुन्नीसा को शौहर से तलाक लेने की इजाजत दे दी।
मुस्लिम महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति बढ़ती चेतना के कुछ और उदाहरण सामने आए हैं। एक अखबार में मोहम्मद वहीदउद्दीन ने ‘जमातुल मोमिनात’ से संबंधित एक दिलचस्प खबर दी है। हैदराबाद का यह मदरसा मुस्लिम औरतों को मुफ्ती की तालीम देकर उन्हें फतवा देने के काबिल बना रहा है। यहां से अब तक 75 औरतें मुफ्ती बनकर निकली हैं। 18 कतार में हैं।
अभी तक मर्द ही मुफ्ती बनते रहे हैं। हैदराबाद के मुगलपुरा के इस मदरसे के संचालक मुफ्ती मस्तान अली ने उन्हें चुनौती पेश करने की कोशिश की है। महिला मुफ्तियों में लबालब उत्साह को देखते हुए यह मदरसा जल्द ही देश की पहली 24 घंटे की हेल्पलाइन सेवा शुरू करने जा रहा है। इसकी मदद से मुसलमान शरीयत से संबंधित मसलों का हल किसी भी समय प्राप्त कर सकेंगे।
उर्दू अखबारों में सऊदी औरतों के दबाव में वहां के मौजूदा शाह अब्दुल्लाह के मुल्क की दकियानूसी और कट्टर मजहबी इमेज को बदलने के लिए किए जा रहे प्रयासों को भी खासी तरजीह मिलीं। वहां की महिला वकीलों की मांग पर शाह ने उन्हें कोर्ट में वकालत करने की इजाजत देने का निर्णय लिया है।
एक अखबर ‘सऊदी ख्वातीन को वकालत की इजाजत’ में कहता  है- इससे पहले सऊदी हुकूमत इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की स्थापना का ऐलान और बगैर मर्द के होटलों में महिलाओं को ठहरने की इजाजत देकर सकारात्मक सोच का नमूना पेश किया था।
सऊदी शाह ने हाल में साइंस एंड टेक्नालॉजी की पढ़ाई की नुक्ताचीनी करने पर एक मजहबी आलिम को उनके ओहदे से हटा दिया था। अरब मुल्कों में औरतों के वकालत करने के बावजूद उन्हें दफ्तर की चारदीवारी में रहकर ही काम करने के आदेश हैं, लेकिन अरब औरतों की मांग पर वहां की हुकूमत की चाल-ढाल बदल रही है।

(लेखक ‘हिन्दुस्तान’ से जुड़े हैं)


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