चांदनी
नई दिल्ली. क्या मधुमक्खी से उपचार को एफडीए से मान्यता मिल पाएगी जिसका हाल के वर्षों में घावों में उपचार के लिए इस्तेमाल बढ़ा है। घाव के उपचार में शहद के उपयोग में दिलचस्पी बढ़ी है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ शहद एक प्लांट नेक्टर होती है जो मधुमक्खी एपिस मेलीफेरा के कारनामों से तैयार होती है इसका इस्तेमाल घावों के उपचार में किया जाता है। पुराने समय में इसका प्रयोग मिस्र, असीरियन्स, चीन, ग्रीक और रोम में होता है।
कई ऐसे मैकेनिज्म हैं जिसमें शहद घाव के उपचार के तौर पर काम करती है
1. जब इसको सीधेया ड्रेसिंग के जरिए घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह एक्ट करती है और ऐसे में घाव इन्फेक्षन से बचा के रखता है।
2. इसके अलावा शहद में ग्लूकोज (35 फीसदी), फ्रक्टोज (40 फीसदी), सकरोज (5 फीसदी) और पानी (20 फीसदी) होता है। इस मीठे उत्पाद में विटामिन, मिनरल ओर एमीनो एसिड भी होता है जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने ओर टिश्यू के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं।
3. शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट भी होती है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देती है और जल्द उसकी भरपाई करती है और उस जगह के बैक्टीरिया भी मर जाते है।
4. इसको बैक्टीरिया के निवारण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव में लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है।
5. मैक्रोस्कोपिक में भी शहद को डेब्रिडिंग एक्शन के रूप मे ंदेखा गया है।
6. मनुका (मेडिहनी) मेडिसिनल हनी होती है जिसें एंटीबैक्टीरिया कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में हासिल किये जाते हैं। जून और जुलाई 2007 में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में इस्तेमाल के लिए हरी झंडी दे दी।
7. यूनिवर्सिटी ऑफ वैकाटो, न्यूजीलैंड का एक बायोकैमिस्ट पीटर मोलन ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया है कि इसको 56 बार डाइल्यूट करने से ही बैक्टीरिया का ग्रोथ बंद हो जाता है। उसने चूहों और सुअर पर शहद का अध्ययन भी किया और इसमें सुझाया गया कि एंटी इनफ्लैमेटरी प्रापर्टीज व स्टीम्युलेट एपीथीलियल ग्रोथ इन पशुओं में एडवांसिंग क्लोजर रही।
8. यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में भी शहद पर कई तरह के टेस्ट किये जिसमें बैक्टीरियल स्ट्रेन्स कई अस्पतालों पर हुए, इसमें पाया गया कि स्ट्रेन को अधिकतर एंटीबायोटिक्स शहद की वजह से पनप नहीं पाए। यहां
9. करीब 17 विभिन्न तरह के टेस्ट में जिसमें 1965 लोगों को शामिल किया गया; पांच अन्य तरह के क्लीनिकल जांच किये गए जिनमें 97 लोगों ने हिस्सा लिया और इनका भी शहद से ही उपचार किया गया जैसा कि साहित्य में दिया गया है। आगे भी 16 अन्य जांचें की गई जिनमें कुल 533 पशुओं के घाव पर प्रयोग किया गया। ऐसे 270 से अधिक मामले थे जिमनें अधिकतर क्रोनिक घाव वाले थे, जिनको शहद से ही उपचार किया गया। शहद से इन सबमें अच्छे परिणाम मिले, बजाए इन 14 मामलों के।