सरफ़राज़ ख़ान
हिसार (हरियाणा). चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विभिन्न फसलों के उत्पादन संबंधी समय-समय पर दी जाने वाली तकनीकी जानकारी से जुड़े कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हुए अब किसानों को कपास की फसल में होने वाले जड़-गांठ रोग बारे आगाह किया है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि कपास में होने वाली विभिन्न बीमारियों के अलावा पौधे की जड़ों में गांठें बनने की भी प्रमुख समस्या है। इस बीमारी से नन्हें सूत्रकृमि मिट्टी से छोटे पौधों की जड़ों में घुसकर उन पर गांठ बना देते हैं जिसके फलस्वरूप प्रभावित पौधे जमीन से आवश्यक खाद-पानी नहीं ले पाते। वैज्ञानिकों ने कहा है कि जड़-गांठ रोग से प्रभावित पौधे स्वस्थ पौधों की अपेक्षा छोटे रह जाते हैं और उनमें फुटाव भी बहुत कम होता है जिसके कारण कपास की पैदावार में भी काफी कमी हो जाती है।
वैज्ञानिकों ने शोध एवं सर्वेक्षण से पता लगाया है कि यह समस्या रेतीले इलाकों में अधिक होती है। कपास उत्पादक क्षेत्रों जैसे हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, जींद आदि जिलों के खेतों में जड़-गांठ से जुड़े सूत्रकृमियों का प्रकोप होने की अवस्था में जड़गांठ के नियंत्रण के लिए वैज्ञानिकों ने किसानों को मई-जून के महीनों में 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार गहरी जुताई करने का सुझाव दिया है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि जड़-गांठ सूत्रकृमि से ग्रसित खेतों में 1-2 वर्ष तक बिना खाद-पानी से उगने वाली फसलों की बिजाई करें। तत्पश्चात प्रभावित खेत में कपास की बिजाई से पहले बीज को बायोटिका-35-47 से उपचारित करके बिजाई करें। बायोटिका की मात्रा कपास के 5 किलोग्राम बीज के लिए एक पैकेट पर्याप्त बतलाया है।