फ़िरदौस ख़ान
सरकार हर साल बजट के दौरान अनेक घोषणाएं करती है, लेकिन ज़्यादातर घोषणाओं पर ठीक तरी़के से अमल नहीं हो पाता और अंतत: एक दिन वे काग़ज़ों में ही दम तोड़ देती हैं. और जिन घोषणाओं पर काम होता है, उनका फ़ायदा ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंच ही नहीं पाता. नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहता है. हालांकि इस बार सरकार ने लगातार बढ़ती महंगाई और सिलेंडरों की सीमित संख्या से परेशान महिलाओं को कुछ राहत देने की कोशिश की है. सरकार ने बड़े वोट बैंक महिलाओं, युवाओं और ग़रीबों से तीन वादे करते हुए कहा है कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्‍चित करना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है. हम लड़कियों और महिलाओं को सशक्त और सुरक्षित रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं. महिलाओं के लिए 97134 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. मालूम हो कि यह पैसा कई योजनाओं के माध्यम से ख़र्च किया जाएगा.

दरअसल, आठवीं बार बजट पेश कर रहे पी चिदंबरम ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कह दिया था कि हर तब़के पर ध्यान देना ज़रूरी है. अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग और अल्पसंख्यक पीछे छूटे हुए हैं. हम महिलाओं में सभी का विकास चाहते हैं. देश में पहला महिला बैंक खोला जाएगा. यह बैंक महिलाओं के लिए ही होगा. महिला ग्राहकों की मदद के लिए शुरू किए जाने वाले इस बैंक को महिलाएं ही चलाएंगी. इसके लिए एक हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. यह बैंक कितना कामयाब होगा, इस व़क्त कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी. आज जब महिलाएं पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं और करना चाहती हैं, ऐसे में महिलाओं के लिए अलग बैंक के औचित्य पर सवाल उठना लाज़िमी है. कुछ महिलाओं का मानना है कि देश में इस तरह की शुरुआत का दिल से स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे महिलाओं में आत्मविश्‍वास बढ़ेगा. लोग अपनी बहन-बेटियों को पढ़ाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी आगे आएंगे. आज के दौर में जब महिलाओं को कार्यस्थल पर पुरुष सहकर्मियों की अश्‍लील हरकतों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में महिला बैंक उनके लिए बेहतर विकल्प साबित होंगे. ग़ौरतलब यह भी है कि पहले भी बैंकों की महिला शाखाएं खोलने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन सुरक्षा कारणों से वे कामयाब नहीं हो पाईं. दरअसल, सरकार महिला बैंक के नाम पर महिला वोट बैंक पर निशाना साध रही है, शायद इसलिए, क्योंकि देश की तक़रीबन आधी आबादी महिलाओं की है.

ख़ास बात यह है कि जिस वक़्त वित्त मंत्री महिला बैंक बनाने का ऐलान कर रहे थे, उस वक़्त यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज मंद-मंद मुस्करा रही थीं. दरअसल, सोनिया गांधी की मुस्कराहट से लग रहा था कि महिलाओं के लिए की गई घोषणाएं उनके एजेंडे का हिस्सा हैं, क्योंकि पिछले काफ़ी दिनों से वह महिला कल्याण पर ख़ासा ज़ोर दे रही हैं. हालांकि सुषमा स्वराज को बावजूद इसके लगता यही है कि इस बजट में महिलाओं के हितों की अनदेखी की गई है. सरकार ने महिला बैंक की घोषणा करके महिलाओं को ख़ुश करने की कोशिश की है. दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की वारदात होने के बाद आलोचनाओं से घिरी सरकार महिला सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर नज़र आई. वित्त मंत्री ने कहा कि महिलाएं, युवा और ग़रीब, भारतीय समाज का चेहरा हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया कोष बनाने का ऐलान किया गया. इसके लिए एक हज़ार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना यह कोष ग़ैर सरकारी संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा पर भी ख़र्च किया जाएगा. इस बार के बजट में महिला विकास और कल्याण के लिए दो हज़ार करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है. गर्भवती महिलाओं के लिए 300 करोड़ रुपये, अकेली और विधवाओं के लिए 200 करोड़ तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की छात्राओं के लिए 700 करो़ड रुपये के बजट की व्यवस्था की गई है. अगर सिर्फ़ महिला और बाल विकास मंत्रालय के बजट पर नज़र डालें, तो उसे पिछले साल 18500 करोड़ रुपये मिले थे, जबकि इस साल 19450करोड़ रुपये मिले हैं. ल़डकियों और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए राजीव गांधी योजना के तहत 650 करोड़ और इंदिरा मैत्रित्व सहयोग योजना के तहत 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. इसी तरह एकीकृत बाल संरक्षण योजना के तहत 300 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय पोषाहार मिशन के तहत भी 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

क़ाबिले-ग़ौर यह भी है कि देश में पहले से ही कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं. वित्त मंत्री ने इन योजनाओं में पारदर्शिता लाने की कोई बात नहीं कही है. इसी तरह इन योजनाओं को अमली जामा पहनाने में जुटे लाखों लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. मसलन, देश में तक़रीबन 27 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता काम कर रही हैं. इनकी अपनी समस्याएं हैं, जिन्हें लेकर वे समय-समय पर आंदोलन भी करती रही हैं, लेकिन इस तरफ़ भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए मज़बूत क़डी का काम तो यही लोग करते हैं. और अगर इनकी ही हालत ठीक नहीं होगी, तो योजनाओं की सेहत कैसे बेहतर हो सकती है. सरकार ने महिलाओं के आभूषण प्रेम को देखते हुए उन्हें एक तोहफ़ा यह भी दिया है कि अब वे विदेश से एक लाख रुपये तक की क़ीमत के सोने के ज़ेवरअपने साथ ला सकती हैं, जो ड्यूटी फ्री होंगे, जबकि मर्दों के लिए यह छूट 50 हज़ार रुपये के आभूषणों तक ही है. महिलाएं विदेश से सोना लाने में मिली राहत और रत्नों के सस्ता होने से उत्साहित हैं, क्योंकि गहनों में तो उनकी जान बसती है. ल़डकियां ब्रांडेड कपड़े और विदेशी जूते सस्ता होने से ख़ुश हैं, क्योंकि युवाओं में ही इनका चलन ज़्यादा है. रसोई सिलेंडरों के दाम न बढ़ने से भी महिलाएं ख़ुश नज़र आ रही हैं, लेकिन सरकार सिलेंडरों के दाम पहले ही इतने ज़्यादा बढ़ा चुकी है कि अब गुंजाइश ही कहां बचती है. बहरहाल, बजट पर आम महिलाओं की भी मिलीजुली राय है. नौकरीपेशा महिलाओं का कहना है कि अगर आयकर में कुछ छूट मिल जाती, तो बेहतर था. इस लिहाज़ से सरकार ने हमें निराश ही क्या है, लेकिन महिला बैंक और विदेश से सोना लाने पर कस्टम ड्यूटी में मिली छूट का कुछ महिलाओं ने स्वागत किया है.


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