सरफ़राज़ ख़ान
नई दिल्ली. अधिकतर मधुमेह रोगियों
में डायबिटिक रेटिनोपैथी (आंख शामिल) का खतरा
होता है और इसके लक्षण जब तक नहीं पता चलते जब तक यह आखिरी स्थिति
में नहीं होता
और यह वह समय होता है जब बहुत देर हो चुकी होती
है। इसके बढ़ने
की गति काफी
तेज हो सकती
है और कमी करने दोनों में ही फायदेमंद होती
है। इसलिए मधुमेह
रोगियों को रेटिनल
डिसीज के बढ़ते
खतरे को देखते
हुए नियमित जांच
करवानी चाहिए। आंखों
का महत्वपूर्ण असर हृदय बीमारी पर पड़ता है जो कि छोटी रक्त
नसों में काफी
पहले दिखने लगती
हैं और ये समय से पहले
के लक्षण होते
हैं।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल
के मुताबिक़ रेटिनोपैथी के शिकार मधुमेह रोगी अगले
12 सालों में बिना
इसके शिकार व्यक्तियों की तुलना
में हृदय बीमारी
से कहीं ज्यादा
मौत के शिकार होते हैं। आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी
ऑफ सिडनी व यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न
और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के अध्ययन
में देखा गया कि रेटिनोपैथी के शिकार लोगों में बिना
इसके शिकार व्यक्तियों की तुलना
में हृदय बीमारी
से मौतें लगभग
दो गुना अधिक
हुईं।
ऐसे लोग जिनकी आंखों में इस तरह का बदलाव पहली बार दिखे तो यह उनकी धमनियों को होने वाले नुकसान
का सूचक होता
है ओर कोलेस्ट्रॉल
और ब्लड प्रेशर
को कम करने
की कोशिश करनी चाहिए। गैर रैटिनोपैथी के शिकार व्यक्तियों की तुलना
में रेटिनोपैथी शिकार
लोगों में हृदय संबंधी बीमारी से मौत का खतरा कहीं
ज्यादा होता है। इन बीमारियों में शामिल हैं-
हार्ट अटैक, स्ट्रोक, रीवैस्कुलराइजेशन और सीवीडी डैथ।