मलिक असगर हाशमी

विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका की खुफिया जानकारियां एक वेबसाइट पर सार्वजनिक होने से देश-दुनिया में खलबली मची हुई है। करीब ढाई लाख गुप्त दस्तावेज विकीलीक्स नामक साइट पर कैसे और क्यों लीक हुए, यह जानने के लिए संबंधित देश गहन मंथन में लगे हैं।
उर्दू मीडिया इस मसले पर एक खास नतीजे तक पहुंच चुका है। इस बात पर तकरीबन सभी एकमत हैं कि अमेरिका का राजफाश करने वाले जूलियन असांजे ने इस्लामी और एशियाई देशों के बीच दरार पैदा करने के लिए यह करामात किया है। ऐसा नहीं होता, तो फिर ईसाई मुल्कों या इस्राइल को लेकर ऐसे खुलासे क्यों नहीं किए गए? रही बात हिन्दुस्तान की, तो अमेरिका को दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र से कोई खास लगाव नहीं है। सिर्फ अपना मतलब साधने के लिए वह हमें समय-समय पर चढ़ाता रहता है।
सऊदी अरब और पाकिस्तान के साथ भी वह यही खेल खेलता रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपने बेरोजगार नौजवानों के लिए नौकरी की जरूरत पड़ी, तो अपने हालिया भारत दौरे में वह जय हो तक का नारा लगा गए। इसी तरह ईरान का खौफ दिखाकर सऊदी अरब से अरबों रुपये के हथियारों का सौदा कर लिया। सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी जगह दिलाने को लेकर अमेरिका की राय का खुलासा विकीलीक्स कर चुका है।
जम्मू-कश्मीर का ‘रोजनामा रोशनी’, ‘विकीलीक्स : मालूमात कहां से दस्तयाब हुई’ शीर्षक के तहत कहता है, ‘अमेरिका ने खुफिया दस्तावेजों के आदान-प्रदान के लिए वर्ष 1999 में एक सुपर नेटवर्क स्थापित किया था। वहां से उड़ाए गए दस्तावेजों से जाहिर हुआ है कि वह हमारी इस जरूरी मांग को लेकर गंभीर नहीं।’
दिल्ली का ‘हमारा मकसद’, ‘दारोगा-ए-जहां बेनकाब’ में कहता है, अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन हमारा यह कहकर मजाक उड़ाती हैं कि भारत खुद ही सुरक्षा परिषद की दौड़ में शामिल है। ऐसा ही ख्याल जापान, ब्राजील और जर्मनी के बारे में अमेरिका भी रखता है।
विकीलीक्स के खुलासे से भारत-पाकिस्तान तथा सऊदी अरब-ईरान के बीच की दूरियां और बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। भारत में रह रहे इस्राइलियों पर आतंकी हमले की जानकारी अमेरिका के जरिये इस्राइल तक पहुंचाने के खुलासे के बाद इस्लामी देशों में पाकिस्तान की फजीहत हो सकती है। फलस्तीन के मसले पर उसका इस्राइल से कोई राजनयिक संबंध नहीं है। तकरीबन तमाम इस्लामी देश इस्राइल की नीतियों को मजहब विरोधी मानते हैं। वेबसाइट ने सऊदी अरब के सामने भी दुविधा वाली स्थिति पैदा कर दी है।
पाक खुफिया एजेंसी द्वारा चार आतंकी संगठनों को खाद-पानी देने के रहस्योद्घाटन से भारत और अमेरिका के बीच अविश्वास बढ़ेगा। एक अखबार में इरफान सिद्दीकी लिखते हैं कि आतंकवाद के मसले पर अमेरिका ने कभी भारत से वफादारी नहीं की। उसे पाक प्रायोजित आतंकी गतिविधियों की तमाम जानकारियां पहले से होती हैं, पर वह वक्त रहते उन्हें भारत से साझा करना जरूरी नहीं समझता।
‘हमारा समाज’ की राय में विकीलीक्स के खुलासे के पीछे यहूदी दिमाग है। इस वजह से ज्यादातर दस्तावेज इस्लामी देशों या उनसे करीबी रिश्ता रखने वाले भारत से संबंधित हैं। अमेरिका के सुपर नेटवर्क पर मौजूद दस्तावेजों में छह प्रतिशत तो अति गोपनीय हैं। 40 प्रतिशत गोपनीय श्रेणी के दस्तावेज हैं। शेष गूढ़ जानकारियां हैं। नेटवर्क का पासवर्ड हर डेढ़ सौ दिन के बाद बदला जाता है।
अमेरिका में 30 साल से पहले किसी गोपनीय दस्तावेज को उजागर करने को लेकर सख्त सजा का प्रावधान है। अखबार कहते हैं कि ऐसे में कुछ खास मुल्कों से संबंधित खुफिया दस्तावेजों का जाहिर किया जाना संदेह पैदा करता है। ‘सहाफत’ लिखता है, विकीलीक्स के खुलासे के बाद इस्लामी मुल्कों में ऐसी शर्मिदगी छाई है कि कोई किसी को ढंग से सफाई भी नहीं दे पा रहा है। अखबार समझते हैं कि ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद और चीन सरकार इस खेल के पीछे की रणनीति समझते हैं, इसीलिए उन्होंने इसे दुष्प्रचार बताकर खारिज कर दिया।

मुंबई के ‘उर्दू टाइम्स’ को लगता है कि खुफिया दस्तावेजों को जाहिर करने पर असांजे को कानूनी शिकंजे में जकड़ने का अमेरिका केवल दिखावा कर रहा है। उसे इसकी तनिक परवाह नहीं कि इस खुलासे से उसके दूसरे देशों से कैसे संबंध रह जाएंगे। ‘जदीद अखबार’ इससे भी कहीं ज्यादा इस बात को लेकर चिंतित है कि आईटी के उच्च तकनीक के गलत इस्तेमाल से कोई भी किसी का दफन राज उजागर कर उसे गंभीर संकट में डाल सकता है। ऐसे में समय रहते बेहतर उपाए किए जाने आवश्यक हैं।
(लेखक हिन्दुस्तान से जुड़े हैं)

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