फ़िरदौस ख़ान
देश के चर्चित जैन हवाला कांड को सामने लाने वाले पत्रकार विनीत नारायण की किताब भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार मौजूदा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलती है. भिलाई के इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक सुरेंद्र कुमार जैन की डायरी में राजनेताओं और अफ़सरों के अवैध रूप से करोड़ों रुपयों के लेनदेन का ब्योरा दर्ज था. इसके आधार पर विनीत नारायण हवाला कांड को जनता के सामने लेकर आए. इस किताब में बताया गया है कि किस तरह लेखक ने हवाला कांड का पर्दाफ़ाश किया और इस दौरान उन्हें किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा. किताब के अध्याय भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार, क्या है जैन हवाला कांड, कैसे मिली जैन डायरी और कैसे बनी खोजी रिपोर्ट, सेंसर बोर्ड ने की मामले को दबाने की कोशिश, जनहित याचिका जिसने रचा इतिहास, सह-याचिकाकर्ताओं की विवादास्पद भूमिका, राम जेठमलानी ने बदला पाला, सांसदों की ख़तरनाक चुप्पी, हवाला कांड का असर, सीबीआई की शर्मनाक भूमिका, फेरा व आयकर विभाग के कारनामे, हाईकोर्ट ने कैसे किया अभियुक्तों को बरी, न्यायपालिका पर दबाव, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने देश को गुमराह किया, जिनसे उम्मीद थी, मीडिया की भूमिका, राष्ट्रवादियों की भयंकर भूल, फिर दबा दिया हवाला केस, फिर आगे क्या हुआ, मंथन, तिथिवार घटनाक्रम, अनजाने संघर्ष के साथी, अदालत की अवमानना, क़ानून का दुरुपयोग, जन सतर्कता आयोग आदि के अंतर्गत हवाला कांड से संबंधित विस्तृत जानकारी दी गई है.

बक़ौल विनीत नारायण, सितंबर 1993 से जब मैं चौसठ करोड़ रुपये के इस जैन हवाला घोटाले में 115 ब़डे नेताओं और अफ़सरों को भ्रष्टाचार, टाडा, फेरा व आयकर के मामले में गिरफ्तार कराने की बात करता था, तो बड़े-बड़े लोग तक सहम जाते थे. सब कहते थे, कुछ नहीं होगा, तुम्हारी कालचक्र वीडियो मैग्जीन पर बैन लगा दिया जाएगा, तुम्हारी जनहित याचिका ख़ारिज कर दी जाएगी. न्यायाधीशों की हिम्मत नहीं होगी तुम्हारी याचिका पर कार्रवाई करने की. तुम जैन बंधुओं का भी कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे. तुम मंत्रियों को अदालत में नहीं घसीट पाओगे. तुम मंत्रियों को अदालत में नहीं घसीट पाओगे. एकाध नेता या दल के पीछे पड़ते, तो बाक़ी दल तुम्हारी मदद भी करते. तुम तो सारी राजनीतिक व्यवस्था के पीछे पड़े हो. हर आदमी कहीं न कहीं समझौता किए बैठा है. कौन देगा तुम्हारा साथ? हारकर तुम कुछ करोड़ रुपये में बिक जाओगे या फिर मरवा दिए जाओगे. पर बाद में मेरी लड़ाई के तेवर देखकर यही लोग कहने लगे कि तुम यह सब चुनाव लड़ने के लिए कर रहे हो और तुम्हें सत्ता में हिस्सा देकर चुप करा दिया जाएगा. ये भविष्यवाणियां झूठी सिद्ध हुईं. मुझे ख़ुशी है कि तपस्या व्यर्थ नहीं गई. जिस जैन डायरी को देखकर ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति वर्मा वाली बेंच ने उसकी सुरक्षा के कड़े और अभूतपूर्व इंतज़ाम किए थे, जिस जैन डायरी को देखते ही न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा था कि अगर इस मामले में बड़े अभियुक्तों को सज़ा नहीं मिल सकी तो अदालतें चलाने का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा, वही जैन डायरी फिर सबूत क्यों नहीं रह गई? न्यायमूर्ति वर्मा वाली जिस बेंच ने इस केस को हाथ में लेते ही जांच एजेंसियों को जांच के लिए हर तरह के निर्देश देने शुरू कर दिए थे, वहीं बेंच अक्टूबर 1996 के बाद ठंडी क्यों पड़ गई? यह बात ज़्यादातर देशवासियों को मालूम नहीं है, क्योंकि अदालत की अवमानना के डर से इस मामले को मीडिया ने भी या तो छुआ ही नहीं या बहुत संकोच के साथ उठाया. 18 दिसंबर, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय ने जब चार वर्षों तक अपनी देखरेख के बावजूद, बिना जांच हुए ही, इस केस को बंद करते हुए सीबीआई को स्वायत्तता देने की घोषणा की, तो कुछ अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं ने इसका बढ़-चढ़कर स्वागत किया. कुछ ने तो सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया. लोग हैरान हैं कि जब जनवरी 1993 में जैन-भ्रष्टाचार-आतंकवाद-हवाला कांड में बड़े-बड़े राजनेता पकड़े गए, तो यह मामला इतनी आसानी से खत्म कैसे हो गया? न्यायिक सक्रियता का क्या हुआ? क्या वाक़ई इस कांड में कोई सबूत नहीं है या कुछ और बात है? 18 दिसंबर, 1997 को दिए गए तथाकथित ऐतिहासिक निर्णय द्वारा इस मामले पर खाक डाल दी गई. इस तरह न तो हवाला कांड के आरोपियों को सज़ा मिली और न सीबीआई के उन भ्रष्ट अधिकारियों को कोई सबक़ मिला, जिन्होंने इस कांड की जांच को वर्षों साज़िशन दबाए रखा और देश में आतंकवाद को बढ़ने का मौक़ा दिया. इस तरह तो भविष्य के लिए भी यह तय हो गया कि सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में भी भ्रष्ट अधिकारियों का कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता. बहरहाल, बेहद ईमानदारी से निर्भीक योद्धा की तरह लड़ने वाले विनीत नारायण की यह किताब जैन हवाला कांड को जानने और देश की मौजूदा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को समझने के लिए बेहतर दस्तावेज़ साबित हो सकती है.


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