फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के चिंतन शिविर के आख़िरी दिन पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बेहद जज़्बाती तक़रीर दी... उन्होंने अपने भाषण में अतीत की यादें, वर्तमान की चुनौतियां और भविष्य के सपने थे. उन्होंने कहा-
कभी-कभी सोचता हूं कि यह संगठन चलता कैसे है? पता नहीं क्या होता है कि चुनाव से पहले सब खड़े हो जाते हैं और जीत जाते हैं. दरअसल, यह गांधीजी का संगठन है. इसमें हिंदुस्तान का डीएनए है. कल रात देशभर से बधाइयां आ रही थीं. पिछली रात मेरी मां मेरे कमरे में आईं, उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि मैं जानती हूं कि सत्ता ज़हर होती है. इसके बाद वो रोने लगीं.
आज सुबह मैं चार बजे ही उठ गया और बालकनी में गया. सोचा कि मेरे कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई है. मैंने सोचा कि मैं वो नहीं कहूंगा जो लोग सुनना चाहेंगे. मैं वो कहूंगा जो मैं महसूस करता हूं. मैं बचपन में दादी के पास रहता था, पढ़ता था. मैं बैडमिंटन खेलना पसंद करता था, क्योंकि यह मुझे बैलेंस करता था.
दो सिपाही मुझे यह सिखाते थे. एक दिन उन्होंने ही मेरी दादी को गोली मार दी. मेरे पिता उस वक़्त बंगाल में थे. अस्पताल में दादी का शव था, वहां अंधेरा था, बाहर भारी भीड़ थी. मैंने देखा मेरे पिता रो रहे थे, जिन्हें मैं मज़बूत आदमी मानता था. बाद में मैंने देखा कि मेरे पिता नेशनल टेलीविज़न पर देश को संबोधित कर रहे हैं.
उस अंधेरे के बाद बदलाव आया. हम टिकट की बात करते हैं. चुनाव में टिकट के वक़्त ज़िला कमेटी, संगठन से नहीं पूछा जाता है. होता क्या है? दूसरे दलों से लोग आते हैं. चुनाव में खड़े होते हैं, हार जाते हैं, फिर चले जाते हैं.
जब राहुल गांधी भाषण दे रहे थे, तब वहां मौजूद उनकी मां सोनिया गांधी, शीला दीक्षित, राजीव गांधी के मित्र सैम पित्रौदा समेत कई बड़े नेता अपनी आंखें पोंछते नज़र आए. सैम पित्रौदा ने कहा-राहुल के भाषण में मां का दर्द, परिवार की यादें और कुछ डर भी था.
भाषण ख़त्म करने के बाद राहुल गांधी मां के पास पहुंचे और उन्हें गले लगा लिया और उनकी भीगी आंखें पोंछी.यह मां के लिए एक बेटे की मुहब्बत थी.
कांग्रेस के चिंतन शिविर के आख़िरी दिन पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बेहद जज़्बाती तक़रीर दी... उन्होंने अपने भाषण में अतीत की यादें, वर्तमान की चुनौतियां और भविष्य के सपने थे. उन्होंने कहा-
कभी-कभी सोचता हूं कि यह संगठन चलता कैसे है? पता नहीं क्या होता है कि चुनाव से पहले सब खड़े हो जाते हैं और जीत जाते हैं. दरअसल, यह गांधीजी का संगठन है. इसमें हिंदुस्तान का डीएनए है. कल रात देशभर से बधाइयां आ रही थीं. पिछली रात मेरी मां मेरे कमरे में आईं, उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि मैं जानती हूं कि सत्ता ज़हर होती है. इसके बाद वो रोने लगीं.
आज सुबह मैं चार बजे ही उठ गया और बालकनी में गया. सोचा कि मेरे कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई है. मैंने सोचा कि मैं वो नहीं कहूंगा जो लोग सुनना चाहेंगे. मैं वो कहूंगा जो मैं महसूस करता हूं. मैं बचपन में दादी के पास रहता था, पढ़ता था. मैं बैडमिंटन खेलना पसंद करता था, क्योंकि यह मुझे बैलेंस करता था.
दो सिपाही मुझे यह सिखाते थे. एक दिन उन्होंने ही मेरी दादी को गोली मार दी. मेरे पिता उस वक़्त बंगाल में थे. अस्पताल में दादी का शव था, वहां अंधेरा था, बाहर भारी भीड़ थी. मैंने देखा मेरे पिता रो रहे थे, जिन्हें मैं मज़बूत आदमी मानता था. बाद में मैंने देखा कि मेरे पिता नेशनल टेलीविज़न पर देश को संबोधित कर रहे हैं.
उस अंधेरे के बाद बदलाव आया. हम टिकट की बात करते हैं. चुनाव में टिकट के वक़्त ज़िला कमेटी, संगठन से नहीं पूछा जाता है. होता क्या है? दूसरे दलों से लोग आते हैं. चुनाव में खड़े होते हैं, हार जाते हैं, फिर चले जाते हैं.
जब राहुल गांधी भाषण दे रहे थे, तब वहां मौजूद उनकी मां सोनिया गांधी, शीला दीक्षित, राजीव गांधी के मित्र सैम पित्रौदा समेत कई बड़े नेता अपनी आंखें पोंछते नज़र आए. सैम पित्रौदा ने कहा-राहुल के भाषण में मां का दर्द, परिवार की यादें और कुछ डर भी था.
भाषण ख़त्म करने के बाद राहुल गांधी मां के पास पहुंचे और उन्हें गले लगा लिया और उनकी भीगी आंखें पोंछी.यह मां के लिए एक बेटे की मुहब्बत थी.