संत बहादुर
भारत के डेयरी क्षेत्र ने नौंवी योजना के बाद से पर्याप्त विकास गति हासिल की है। वर्ष 2010-11 के दौरान दुग्ध उत्पादन 121.8 मिलियन टन रहा। 2010-11 में ही प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता 269 ग्राम प्रतिदिन के स्तर पर पहुंच गयी। इससे देश न सिर्फ दुनिया के प्रमुख दुग्ध उत्पादक राष्ट्रों की श्रेणी में पहुंच गया, बल्कि बढती हुई जनसंख्या के लिए दूध और दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता में अनवरत वृद्धि भी दर्ज की गयी।
देश में दूध की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण मुख्य रूप से बढ़ती हुई जनसंख्या और विभिन्न क्षेत्रों में आजीविका और रोजगार सृजन के लिए प्रारंभ की गयी योजनाओं से होने वाली आय है। यदि हम उभरते हुए रूझानों को देखते हैं तो 12वीं पंचवर्षीय योजना (216-17) के अंत तक दूध की मांग करीब 155 मिलियन टन होने की संभावना है और 2021-22 में इसकी मात्रा 200 से 210 मिलियन टन के करीब होगी। पिछले दस वर्षों में दूध के उत्पादन में प्रतिवर्ष करीब 3.5 मिलियन टन की वार्षिक औसत वृद्धि रही है जबकि बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए इसे अगले 12 वर्षों में प्रतिवर्ष 6 मिलियन टन के औसत तक पहुंचाने की जरूरत है।
लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए डेयरी आय का एक महत्वपूर्ण द्वितीयक स्रोत बन चुका है और रोजगार प्रदान करने तथा आय सृजन के अवसरों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत में दूध उत्पादन और इसकी विपणन प्रणाली अनूठी है। अधिकांश दूध का उत्पादन छोटे और सीमांत किसानों तथा भूमि रहित श्रमिकों के द्वारा किया जाता है। दूध उत्पादन में शामिल करीब सात करोड़ ग्रामीण परिवारों में से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान तथा भूमि रहित श्रमिक हैं। करीब 1.45 करोड़ किसानों को 1.45 लाख ग्रामीण स्तर की डेयरी सहकारी संस्थाओं की परिधि के अंतर्गत लाया जा चुका है। डेयरी संस्थाएं छोटे धारकों और खासतौर पर महिलाओं के लिए समग्रता को सुनिश्चित करती हैं। यह आवश्यक है कि वर्तमान में विपणन का 50 प्रतिशत संगठित क्षेत्र द्वारा संचालित किया जाए।
राष्ट्रीय डेयरी योजना - 1
सरकार दुधारू पशुओं की उत्पादकता और देश में दूध की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का शुभारंभ कर चुकी हैं। राष्ट्रीय डेयरी योजना केन्द्रीय क्षेत्र की एक योजना है। वर्ष 2012-17 हेतु इस परियोजना के पहले चरण का परिव्यय 2,242 करोड़ रुपये के करीब होने का अनुमान है। परियोजना के कुल परिव्यय में से 1584 करोड़ रुपये ऋण के रूप में अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी से प्राप्त किये जाएंगे जबकि इसमें केन्द्र सरकार की भागीदारी 176 करोड़ रुपये हैं। कार्यान्वयन एजेंसियों की भागीदारी 282 करोड़ रुपये और परियोजना में तकनीकी और कार्यान्वयन सहायता के लिए एनडीडीबी से 200 करोड़ रुपये प्राप्त किये जाएंगे।
राष्ट्रीय डेयरी योजना निधि के 715 करोड़ रुपये को नस्ल सुधार पर और 425 करोड़ रूपये को पशु-पोषण पर व्यय किया जाएगा। 488 करोड़ रुपये का व्यय ग्राम आधारित दुग्ध खरीद प्रणाली को मजबूत बनाने में किया जाएगा और 132 करोड़ रुपये परियोजना के प्रबंधन और शिक्षण पर व्यय किये जाएंगे।
उद्देश्य
इस योजना का उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि, दुग्ध खरीद के लिए ग्राम स्तरीय बुनियादी ढांचे में मजबूती एवं विस्तार तथा उत्पादकों को बाजारों की व्यापक उपलब्धता प्रदान करने के साथ-साथ अगले पांच वर्षो में 150 मिलियन टन की लक्षित मांग को पूरा करना है। एनडीपी का उद्देश्य दुधारी पशुओं की उत्पादकता और दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करने के अलावा देश में तेजी से बढ़ रही दूध की मांग को पूरा करना है। योजना के अंतर्गत ग्रामीण दूध उत्पादकों को एक योजान्वित वैज्ञानिक बहु-आयामी पहल के माध्यम से संगठित दुग्ध-प्रसंस्करण क्षेत्र तक व्यापक पहुँच बनाना भी शामिल है।
यह विश्व बैंक की अंतर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन (आईडीए) के माध्यम से व्यापक स्तर पर वित्त पोषित की जाने वाली एक छ: वर्षीय योजना है। इसका कार्यान्वयन राज्यों में स्थित एंड कार्यान्वयन एजेन्सियों के माध्यम से राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) द्वारा किया गया है। सरकार की सहभागिता के साथ आईडीए के ऋण के माध्यम से पशुपालन, डेयरी और मतस्य विभाग के द्वारा एनडीडीबी को अनुदान प्रदान किया जाएगा और इसके उपरान्त उपयुक्त ईआईए को वितरित किया जाएगा।
ईआईए में राज्य सरकार, राज्य पशुधन बोर्ड, राज्य सरकारी डेयरी संघ, जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ, सांविधिक निकायों के सहायक , आईसीएआर संस्थान, पशुचिकित्सा, डेयरी संस्थान, विश्वविद्यालय और अन्य शामिल सहभागियों का निर्णय राष्ट्रीय संचालन समिति द्वारा किया गया है और इसे राष्ट्रीय डेयरी योजना के अंतर्गत गठित किया जाएगा। ईआईए पात्रता मानदंडो के आधार पर विभिन्न घटकों के अंतर्गत अनुदान के लिए पात्र होंगे, जिसमें भौगोलिक, तकनीकी, वित्तीय और प्रशासनिक मानदंड शामिल होंगे। योजना के अंतर्गत वित्त पोषण की प्रणाली पोषण और प्रजनन गतिविधियों के लिए सौ प्रतिशत अनुदान सहायता के तौर पर होगी।
केन्द्रित राज्य
एनडीपी- 1 को उन राज्यों में लागू किया जाना है जहां कि संबंधित सरकारें योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए एक वातावरण तैयार करने हेतु आवश्यक नियामक, नीति सहायता में समर्थन के प्रति वचनबद्ध हैं। इस योजना का केन्द्र बिंदु 14 प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्यों के उच्च उत्पादन क्षमता वाले क्षेत्रों पर रहेगा। इन राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। यह राज्य देश के दुग्ध उत्पादन में 90 प्रतिशत का योगदान करते हैं। हालांकि योजना का लाभ देश भर में होगा।
ग्राम आधारित खरीद प्रणालियों को मजबूत बनाना
मौजूदा सहकारी संस्थाओं को मजबूत बनाते हुए ग्राम आधारित खरीद प्रणाली का विस्तार किया जाएगा। इसके अलावा उत्पादक कंपनियों और नवीन उत्पादन सहकारी कंपनियों के गठन में सुविधा प्रदान की जाएगी। इस योजना 23,800 अतिरिक्त ग्रामों में करीब 13 लाख दूध उत्पादकों को शामिल किये जाने की उम्मीद है। इसके साथ-साथ ग्राम स्तर पर तकनीकियों और बेहतर कार्य प्रणालियों को प्रोत्साहन देने के लिए क्षमता संवर्धन, प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा।
लाभ
समग्र लाभ के संदर्भ में, एनडीपी एक ऐसी वैज्ञानिक और व्यवस्थित प्रक्रिया को सामने लाने में सहायक सिद्ध होगी जिससे दुधारी पशुओं की नस्ल सुधार के मामले में देश को एक सुसंगत और निरन्तर उन्नति के मार्ग में जाया जा सकेगा। यह देश के संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ-साथ मीथेन उत्सर्जन में कमी लाएगी। यह योजना विपणन किये जाने वाले दूध की गुणवत्ता में सुधार, नियामक और नीतिगत उपायों को मजबूत बनाने में सहायता के साथ-साथ देश की दूध उत्पादन प्रणाली के मूलाधार छोटे दूध उत्पादकों की आजीविका में योगदान के अलावा डेयरी क्षेत्र की भविष्यगत उन्नति हेतु अनुकूल वातावरण भी प्रदान करेगी।