मनोहर पुरी
       नारी को सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना माना गया है। इसीलिए बेटी ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। बेटी है तो कल है। यदि इन सामाजिक- धार्मिक और अध्यात्मिक मान्यताओं की बात न भी करें तो भी यह स्वीकार किया गया है कि स्वार्थ-विषमता और लालच से भरे इस संसार में नारी सुख पुरूष के जीवन का सर्वोत्तम सुख है। चाणक्य के अनुसार संसार का हर प्राणी नारी को पाने के लिए लालायित रहता है। नारी को यदि भौतिक सौन्दर्य की आत्मा कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इतना होने पर भी आज नारी के अस्तित्व के सम्मुख प्रश्नचिन्ह क्यों। यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि जिस नारी के सानिध्य में पुरुष अपने सारे दुःख-निराशा और क्लेश विस्मृत कर देता है उसी नारी को वह वर्षों से प्रताडित करता आ रहा है और अब उसे पूरी तरह से समाप्त करने पर उतारू है। इस संसार में आने से पहले ही नारी को समाप्त कर देने के नित नए नए तरीके खोजे जा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इसमें वैज्ञानिक खोजों का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। डाक्टर जिन का उद्देश्‍य ही मानव मात्र की सेवा और उन्हें निरोग रहते हुए जीवनदान देना है वह इस में पूरी तरह से भागीदारी कर रहे हैं।
      मानव जीवन का एक मात्र ध्येय सुख है। किसी न किसी प्रकार अधिक से अधिक सुख की प्राप्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य है। आश्‍चर्य की बात यह है कि सुख की ओर निरन्तर भागने वाला पुरुष अपने ही इस सुख को समाप्त करने पर तुला है। पुरुष को जन्म देने वाली स्त्री को कोख में ही समाप्त करने के कुत्सित एंव जघन्य अपराध किए जा रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या और नवजात शिशु कन्याओं की हत्या करने का पाश्‍वि‍क कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है। देश में लगभग पचास लाख से अधिक कन्या भ्रूणों की हत्या प्रति वर्ष की जा रही है। प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कन्या भ्रूण हत्या को राष्ट्रीय शर्म का विषय बताते हुए कहा है कि यह हमारे सामाजिक मूल्यों पर कलंक है। इन हत्याओं को रोकने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय अभियान चलाने की आवश्‍यकता पर बल दिया है। कन्या भ्रूणों पर यह संकट केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि इस्लामिक देशों में भी दिखाई देने लगा है।
        भारत में आज यह स्थिति इतनी भयानक हो चुकी है कि इसने महामारी का रूप धारण करना शुरू कर दिया है। पुरूषों के अनुपात में स्त्रियों की संख्या में निरन्तर कमी आती जा रही है। पिछली शताब्दि के प्रारम्भ में भारत में प्रति एक हजार पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या 972 थी जो सदी के अन्त में घट कर मात्र 927 ही रह गई है। 2011 की जन गणना के अनुसार गांवों में एक हजार पुरुषों पर 920 महिलाएं हैं जबकि शहरों में उनकी संख्या 855 ही है। छः वर्ष तक की आयु के बच्चों में यह अनुपात 921 से घट कर 914 ही रह गया है। आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कन्या भ्रूणों की हत्या दूर दराज के पिछड़े क्षेत्रों में होते रहने के कारण यह कमी आई है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। बेटों की चाह में दिल्ली में बेटियां कम होती जा रही हैं। सन् 2011 की जनसंख्या के अनुसार गत तीन वर्ष में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 138 कम हो कर केवल 866 रह गया है। हरियाणा और पंजाब जैसे समृद्ध और शि‍क्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में ये हत्याएं बड़े पैमाने पर हुई हैं और आज भी हो रही हैं। आज हरियाणा में प्रति एक हजार पुरुषों पर 877 महिलाएं हैं तो पंजाब में भी स्थिति लगभग इतनी ही भयानक है। हरियाणा और पंजाब में ऐसे जिले भी हैं जहां यह अनुपात 800 के आस पास ही है। इसका मुख्य कारण यह भी माना जाता है कि यहां पर समाज लड़की को व्यय और लड़के को आमदनी की नजरों से देखने लगा है। इससे समाज में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होने का खतरा पैदा होता जा रहा है। इन राज्यों के लिए केरल, बिहार और उडीसा जैसे राज्यों से कन्याओं को विवाह करके लाया जा रहा है।
        यह जघन्य अपराध उस समाज में हो रहे हैं जहां नारी को न केवल सर्वश्रेष्ठ माना गया है बल्कि जहां पर मां को देवताओं से भी अधिक पूज्‍यनीय कहा गया है। तैतिरीय उपनिषद् में मां को ईश्‍वर की भांति पूजनीय बताया गया है। यदि ऐसा ही है तो इस देष में मां की हालत बहुत अच्छी होनी चाहिए। मां के साथ उन नारियों की भी जो भविष्य में मां बनेंगी। इतना ही नहीं हमारे धर्म ग्रंथों में कन्यादान से वंचित रहने वाले व्यक्ति को महापापी की संज्ञा दी गई है। आश्चर्य यह है कि आज इसी देश में कन्या भ्रूण हत्या की समस्या महामारी का रूप ले चुकी है। अधिकांश भारतीय यह जघन्य अपराध अथवा महापाप करने को तैयार दिखाई देते हैं। अल्ट्रासाउंड तकनीक के कारण विज्ञान ने उसके क्रूर पंजों को और भी अधिक धारदार बना दिया है। वही विज्ञान जो मानव के लिए वरदान माना जाता है कन्याओं के लिए अभिशाप बन कर सामने आया है। अब ऐसे उपकरण उपलब्ध हैं जिनसे यह आसानी से ज्ञात हो जाता है कि कोख में पलने वाले भ्रूण का लिंग क्या है। इस घृणित कार्य पर होने वाले व्यय को भी कम से कमतर किया जा रहा है। विडम्बना यह है कि जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर मचाये जाने वाले शोर में  गर्भ में होने वाली हत्याओं को सामाजिक मान्यता मिलने लगी है। महात्मा बुद्ध भगवान महावीर और गांधी के इस देश में हिंसा जीवन का पर्याय बनने लगी है।
         वैज्ञानिक जानकारी में होने वाली बढ़ोतरी से यह आशा की जा रही थी कि अब समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कुरीतियों और रीति-रिवाजों से नारी को निजात मिलेगी परन्तु हुआ इससे उल्टा ही। हमने इन जानकारियों का प्रयोग प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने के लिए करना प्रारम्भ कर दिया। पहले बेटे को पैदा करने का बोझ औरत पर लादा जाता था और जाने अनजाने प्रकृति अपना कार्य करती रहती थी। जबसे लिंग निर्धारण से सम्बन्धित उपकरण आये हैं तब से तो हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया और नारी की कोख को एक कारखाने की तरह से प्रयोग में लाने लगे हैं। विज्ञान का इससे बड़ा दुरुपयोग तो हो ही नहीं सकता।
      हम एक ओर तो वातावरण में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए दिन रात भरसक प्रयास कर रहे दूसरी और मानव समाज के संतुलन को बिगाड़ने पर तुले हैं। एक वैज्ञानिक खोज के अनुसार प्रकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए एह हजार कन्याओं के पीछे 1020 लड़कों को जन्म होना चाहिए क्योंकि लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक मात्रा में कालकलवित होते है। प्रसिद्ध विचारक रजनीश अक्सर यह कहा करते थे कि प्रकृति अपना संतुलन बनाये रखने के लिए एक सौ लडकियों के जन्म होने पर एक सौ दस लड़कों को जन्म देती है क्योंकि लड़कों की अपेक्षा लड़कियां दीर्घ आयु वाली होती हैं। प्रकृति के इस संतुलन को अस्त व्यस्त करने के साथ ही हम अपने भविष्य को भी असंतुलित करने में लगे हैं। वे दिन दूर नहीं हैं जब समाज में लड़कियों की इतनी अधिक कमी हो जायेगी कि हमारे पारिवारिक जीवन के सामने संकट की स्थिति पैदा हो जायेगी। बेटी ही नहीं होगी तो बहू कहां से आयेगी और मां बन कर आने वाली सन्तानों को कौन जन्म देगा। इस प्रकार हमने इस तथ्य को ही विस्मृत कर दिया है कि यदि पुरुष को जन्म देने वाली मां ही नहीं रहेगी तो उसका अस्तित्व भी कहां रहेगा। हम अपने पैरों पर नहीं अपनी अपनी गर्दन पर स्वयं कुल्हाड़ी मार कर सीधे सादे शब्दों में आत्म हत्या कर रहे हैं। यह माना जाना कि भारतीय समाज में दहेज जैसी कुरीतियों, उत्तराधिकार से जुड़े कानूनों  और श्राद्ध तथा मोक्ष जैसी परम्पराओं के कारण ऐसी हत्याओं को स्वीकार किया जा रहा है, ठीक नहीं है। आज लड़कियां जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को पीछे छोड़ती जा रही है। भौतिकता की दौड़ में धार्मिक मान्यताएं वैसे ही तिरोहित हो रहीं हैं अन्यथा मोक्ष इत्यादि की बात करने वाले लोग हत्या जैसे जघन्य अपराधों में भागीदार नहीं बनते।
      आर्थिक दृष्टि से भी नारी का भारतीय समाज में बहुत बड़ा योगदान रहा है और आज तो वे घर और बाहर दोनों का ही स्थानों का दायित्व निभा रही है। भारतीय परिवार का ढांचा तो पूरी  तरह से नारी के अस्तित्व पर ही टिका है। घर गृहस्थी चलाने में नारी का  जो आर्थिक योगदान है उसका तो आज तक मूल्यांकन हो ही नहीं पाया। यदि बिना किसी दुराग्रह के यह मूल्यांकन किया जाये कि परिवार की देखभाल करने में औरत का कितना श्रम लगता है तो ज्ञात होगा कि परिवार को चलाने में उसका आर्थिक योगदान उस पुरुष से कहीं अधिक है जो घर के लिए बाहर से कमाई करके लाता है। अवश्यकता इस बात की है कि स्त्री द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम काज और परिवार की देखभाल में उसके द्वारा लगाये गये मानव श्रम के घंटों को उसके अर्थ मूल्य के अनुरूप नकद राशि में परिवर्तित करके देखा जाये। यदि ऐसा किया जाए तो वह कमाऊ पुरुष से इक्कीस ही बैठेगी। पुरुष ने स्त्री के इस योगदान को भी कभी नहीं स्वीकारा । नारीं की दुर्दशा और आज की इस भयानक स्थिति के लिए यह भी एक बड़ा कारण है।
        महिलाओं की संख्या में निरन्तर आने वाली गिरावट ने अब सरकार और समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा है। नारी की घटती संख्या से पुरुष को अपना अस्तित्व खतरे में दिखाई देने लगा है फिर भी अभी तक वह स्वयं समाधान के लिए सामने नहीं आया क्योंकि प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए दूसरों पर आश्रित रहना भारतीयों की पुरानी आदत है। सरकार ने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये हैं। इस समय भी हमारे देश में पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 है जिसे सन् 2003 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के अन्‍तर्गत गर्भाकाल के अनन्तर बच्चे के लिंग के विषय के संबंध में पता करना गैर कानूनी है। ऐसा करने वाले डाक्टर, अल्ट्रासांउड करने वाले और गर्भवती के रिश्‍तेदारों को पांच वर्ष तक के कारावास की सजा और 50 हजार रुपये तक का आर्थिक दंड दिया जा सकता है। परन्तु अभी तक बहुत कम मात्रा में ही व्यक्ति इसके अधीन दंडित हुए हैं। वैसे बेटियों को बचाने की पहल करते हुए दिल्ली और हरियाणा की सरकारों ने पहले से ही लाड़ली योजना बनाई हुई है। केन्द्र सरकार ने इसी आशय से धन लक्ष्मी योजना, राजस्थान ने राज लक्ष्मी योजना और पंजाब ने रक्षक योजना लागू की हुई हैं। इतना ही नहीं हरियाणा में गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासांउड करवाने से पहले परिचय पत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी व्यापक पैमाने पर बेटी बचाओ अभियान चलाया हुआ है। राजस्थान में भी इस विषय से जुड़े मामलों के लिए फास्ट टैªक कोर्ट बनाने के लिए पहल की जा रही है। स्वयं हरियाणा के मुख्य मंत्री ने भी इस प्रस्ताव की सराहना करते हुए बीबीपुर गांव के विकास के लिए करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया है।  
      हमारे न्यायालय भी इस ओर सक्रिय हुए हैं परन्तु इस बात से किसे इंकार हो सकता है कि ऐसी सामाजिक समस्याएं सरकारों के प्रयासों से समाप्त नहीं की जा सकतीं। इसके लिए पूरे समाज को एकजुट हो कर सामने आना होगा। दहेज जैसी कुरीतियों के विरोध में बने कानून जैसे निष्प्रभावी हैं वैसे ही भ्रूण हत्याओं और लिंग निर्धारण सम्बंधी नियमों की दुर्दशा न हो इसके लिए समाज को जन जागरण करना पड़ेगा। समाज को अपनी कुरीतियों, रीतियों, नीतियों और परम्पराओं को स्वयं ही परिमार्जित करना होगा। सरकार उसमें सहायक हो सकती है। धर्म गुरू पथ प्रदर्शक बन सकते हैं। इसके लिए व्यापक शिक्षा के लिए जोरदार प्रयास किए जा सकते हैं।
         आज नारी के जन्म लेने के अधिकार पर होने वाले अतिक्रमण को इसी परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। लिंग भेद के कारण कन्या शिशु भ्रूण हत्या के विरूद्ध एक व्यापक सामाजिक युद्ध का शंखनाद करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। एक ऐसी प्रबल सामाजिक चेतना जागृत करके जन जन तक यह सन्देश पहुंचाया जाना चाहिए कि कन्या भ्रूण हत्या अनैतिक और अधार्मिक ही नहीं समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति महापातकी अपराध है जो किसी भी दशा में क्षम्य नहीं है। इस जन्म में ही नहीं भावी जन्मों में भी। इसके दुष्परिणाम न केवल हमें भुगतने होगें बल्कि भावी पीढि़यां भी इससे बुरी तरह से प्रभावित होगीं।

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सूफ़ियाना बसंत पंचमी... - *फ़िरदौस ख़ान* सूफ़ियों के लिए बंसत पंचमी का दिन बहुत ख़ास होता है... हमारे पीर की ख़ानकाह में बसंत पंचमी मनाई गई... बसंत का साफ़ा बांधे मुरीदों ने बसंत के गीत ...
  • ग़ुज़ारिश : ज़रूरतमंदों को गोश्त पहुंचाएं - ईद-उल-अज़हा का त्यौहार आ रहा है. जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं. तीन दिन तक एक ही घर में कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं. इन घरों म...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • देश सेवा... - नागरिक सुरक्षा विभाग में बतौर पोस्ट वार्डन काम करने का सौभाग्य मिला... वो भी क्या दिन थे... जय हिन्द बक़ौल कंवल डिबाइवी रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन त...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं