फ़िरदौस ख़ान
दुनिया भर के देशों की अपनी संस्कृति और सभ्यता है. लोक कथाएं भी इसी संस्कृति और सभ्यता की प्रतीक हैं. लोक कथाओं से किसी देश, किसी समाज की संस्कृति और उनकी सभ्यता का पता चलता है. बचपन में सभी ने अपनी नानी या दादी से लोक कथाएं सुनी होंगी. लोक कथाओं में ज़िंदगी के अनुभवों का निचो़ड़ होता है. ये लोक कथाएं सीख देती हैं. लोक कथाएं कैसे और कब वजूद में आईं, यह बताना तो बेहद मुश्किल है, लेकिन इतना ज़रूर है कि इनका इतिहास बहुत पुराना है. लोक कथाएं विभिन्न देशों में सांस्कृतिक घनिष्ठता को बढ़ाती हैं. भारत और ईरान में साहित्यिक आदान-प्रदान का दौर जारी है. लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नासिरा शर्मा की किताब क़िस्सा जाम का, ईरान के ख़ुरासान की लोक कथाओं पर आधारित है. इसमें लेखिका ने ईरान के कवि मोहसिन मोहन दोस्त की लोक कथाओं का हिंदी अनुवाद पेश किया है. अनुवाद का काम कोई आसान नहीं होता. इसमें इस बात का ख़ास ख्याल रखना होता है कि मूल तहरीर का भाव क़ायम रहे. नासिरा शर्मा ख़ुद कहती हैं कि ये सारे क़िस्से ख़ुरासानी बोली में थे. फ़ारसी जानने के बावजूद उनके इशारों और मुहावरों को समझना आसान नहीं था, क्योंकि ये चीज़ें शब्दकोष में नहीं मिलतीं. उन्हें केवल कोई ईरानी ही बता सकता है. लेकिन कोशिश यही की गई कि ये क़िस्से ज्यों के त्यों पाठकों तक पहुंचाएं जाएं, ताकि उनका अर्थ वही रहेख जो क़िस्सागो कहना चाहता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के फ़ारसी भाषा तथा साहित्य विभाग के अध्यक्ष सैय्यद अमीर आबिदी कहते हैं कि ख़ुरासान एक चौराहे की तरह है, जहां ईरान की सभ्यता तथा संस्कृति संगठित हुई और जहां से अन्य क्षेत्रों में फैली. तूस, निशापुर और मशहद के केंद्र सांस्कृतिक वैभव के प्रतीक रहे और जहां पर उमर, ख़य्याम और फ़िरदौसी जैसे चिराग़ अब भी जीवित हैं. ख़ुरासान की ये लोक कथाएं निशापुर और दमगान से निकले हुए फीरोजों की तरह भव्य और सारगर्भित हैं. इस किताब में तीन तरह के क़िस्से शामिल हैं. पहले में दर्शन का चिंतन है, दूसरे में बादशाहों के ज़रिये दुनियावी बर्ताव का ज्ञान है और तीसरे में परियों और हब्शियों के क़िस्से हैं, जो बताते हैं कि ख़ुदा ने इंसान को जो ताक़त बख्शी है, वह किसी और प्राणी के पास नहीं है. इसी ताक़त की बदौलत इंसान मुश्किल से मुश्किल हालात का सामना करते हुए अपनी जीत का परचम लहराता रहा है. इस किताब में अनेक रोचक लोक कथाएं हैं, जो पाठकों को आख़िर तक बांधे रखने में सक्षम हैं. बानगी देखिए-

एक रोज़ एक व्यापारी मछलियों से भरा टब लेकर घर पहुंचा. उसकी बला सी सुंदर पत्नी ने मछलियों को देखकर अपने चेहरे को नक़ाब से छुपा लिया, ताकि टब की मछलियां उसे न देख सकें. इस तरह मुंह छुपाये रही, ताकि उसका पति उसे सती सावित्री जैसी समझे.
जब भी व्यापारी घर में रहता कभी भी वह अपना मुंह हौज़ में न धोती और कहती-नर मछलियां कहीं मेरे पाप का कारण न बन जाएं. इस लाज से भरे अपने स्वभाव के कारण वह व्यापारी के सामने कभी हौज़ के समीप न जाती. एक दिन व्यापारी अपनी स्त्री के साथ बैठा हुआ था. एक नौकर भी वहीं खड़ा था. व्यापारी की स्त्री ने पहले की ही तरह नर मछलियों की बातें कीं और ब़डी अदा से शर्माई. यह सब देखकर वह नौकर हंस प़डा.
व्यापारी ने पूछा-क्यों हंसे तुम?
कुछ नहीं, यूं ही हंस दिया.

बिना कारण कैसी हंसी? सुनकर नौकर कुछा नहीं बोला, ख़ामोश ख़डा रहा. यह देखकर व्यापारी चिढ़ गया. उसका क्रोध देखकर नौकर डर गया और बोला-आपकी सुंदर स्त्री आपके ही घर के तहख़ाने में चालीस जवानों को बंद किए है. जब आप शिकार को चले जाते हैं तो वह उनके साथ रंगरेलियां मनाती है. यह सुनते ही व्यापारी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और वह बोला-मैं सच्चाई जानकर ही दम लूंगा. कल शिकार पर जा रहा हूं, परंतु लौटकर तुम्हारे ही घर आऊंगा. फिर सोचूंगा कि मुझे क्या करना है. दूसरे दिन व्यापारी दोबारा शिकार को चला गया और लौटकर उसी नौकर के घर पहुंचा और बोला-मुझे गधे पर रखे ख़ुरजीन (थैला) में छुपाकर वह जगह दिखाओ, जहां मेरी स्त्री चालीस जवानों के साथ गुलछर्रे उड़ाती है. इस काम के बदले में मैं तुमको सौ मन ज़ा़फ़रान दूंगा. नौकर सुनते ही राज़ी हो गया.  नौकर ने दरवेश का सा भेस बदला और ख़ुरजीन में व्यापारी को बिठाकर चल पड़ा. गली में घुसते ही दूर से ही गाने बजाने की आवाज़ें सुनाई पड़ने लगीं. नौकर आगे बढ़ता गया और व्यापारी के पीछे जाकर दरवाज़ा खटखटाया और गाने लगा-
आओ देखो, स्त्रियों के जाल व फ़रेब
बिया बेनीगर इन मकरे ज़नान
हाला हाज़िर कुन सदमन ज़ा़फ़रान
अब तो दो मुझे सौ मन ज़ा़फ़रान

बार-बार वह गाता जा रहा जब तक दरवाज़ा खुल न गया. व्यापारी ने देखा सामने मह़िफल जमी थी.  गवैये बैठे गाना गा रहे थे, साज़ बजा रहे थे. चालीस जवान प्यालों में शराब पी रहे थे और व्यापारी की स्त्री मस्त-मस्त मदहोश-सी कभी इस युवक की गोद में, कभी उस युवक की गोद में जाती और दरवेश से कहती-वहीं पंक्तियां बार-बार गाओ-
आओ देखो, स्त्रियों के जाल व फ़रेब
अब तो दो मुझे सौ मन ज़ा़फरान
सुबह होने से पहले यह महफ़िल ख़त्म हुई. दरवेश व व्यापारी दोनों एक साथ लौटे. व्यापारी की स्त्री ने उन चालीस जवानों को एक-एक करके तह़खाने में भेजा और दरवाज़ा बंद करके मस्त, नशे में चूर, झूमती-सी बेख़बर सो गई. व्यापारी थैले से बाहर निकला और नौकर को हुक्म दिया कि जब तक मैं सोकर न उठूं, इसको संदूक़ में बंद करके एक किनारे रख दो. सुबह जब स्त्री की आंख खुली तो वह सबकुछ समझ गई. उसको संदूक़ से निकालकर व्यापारी के हुक्म से घो़डे की दुम से बांधकर जंगल की ओर भेज दिया गया. व्यापारी ने उन चालीस जवानों को आज़ाद किया और तह़खाने से ऊपर बुलाकर पूछा-असली माजरा क्या था?

वे बोले- संध्या के समय जब हम इधर से गुज़रे तो छत पर खड़ी आपकी स्त्री को देखते ही हम उसके रूप-लावण्य की चमक से बेहोश हो जाते. जब होश आता तो अपने को तह़खाने में पाते. जब आप शिकार पर चले जाते तो हमारे बंध खोले जाते और हम रंगरेलियां मनाते.

किताब में प्रस्तुत लोक कथाएं पाठक को ईरान की संस्कृति और सभ्यता से परिचित कराती हैं. नासिरा शर्मा की यह कोशिश सराहनीय है. इससे हिंदुस्तान के लोगों को ईरानी सभ्यता को जानने का मौक़ा मिलेगा. दरअसल, इस तरह की कोशिशें विभिन्न देशों के बीच रिश्तों को और बेहतर बनाने का काम करती हैं. आज के दौर में ऐसे कार्यों की बेहद ज़रूरत है. साहित्य देश की सरहदों को नहीं मानता. वह तो उन हवाओं की तरह है, जो जहां से गुज़रती हैं, माहौल को ख़ुशनुमा बना देती हैं.

किताब रोचक है, लेकिन कई जगह भाषा की अशुद्धियां हैं. उर्दू शब्दों को ग़लत तरीक़े से लिखा गया है. हिंदी में उर्दू के शब्द लिखते वक़्त अकसर नुक्ता ग़लत लगा दिया जाता है, जिससे उर्दू जानने वालों को वे शब्द काफ़ी अखरते हैं. बेहतर हो नु़क्ता लगाया ही न जाए. बहरहाल, किताब रोचकता से सराबोर है, जिसे पाठक पढ़ना पसंद करेंगे.

समीक्ष्य कृति : क़िस्सा जाम का    
लेखिका : नासिरा शर्मा
प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन        
क़ीमत : 225 रुपये

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सूफ़ियाना बसंत पंचमी... - *फ़िरदौस ख़ान* सूफ़ियों के लिए बंसत पंचमी का दिन बहुत ख़ास होता है... हमारे पीर की ख़ानकाह में बसंत पंचमी मनाई गई... बसंत का साफ़ा बांधे मुरीदों ने बसंत के गीत ...
  • ग़ुज़ारिश : ज़रूरतमंदों को गोश्त पहुंचाएं - ईद-उल-अज़हा का त्यौहार आ रहा है. जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं. तीन दिन तक एक ही घर में कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं. इन घरों म...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • देश सेवा... - नागरिक सुरक्षा विभाग में बतौर पोस्ट वार्डन काम करने का सौभाग्य मिला... वो भी क्या दिन थे... जय हिन्द बक़ौल कंवल डिबाइवी रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन त...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं