नई दिल्ली. बेगम अख़्तर जितनी बड़ी गायिका थीं, उतनी बड़ी ही इंसान थीं. यह बात लेखक और फ़िल्मकार शरद दत्त ने बेगम अख़्तर को समर्पित सन्निधि की संगोष्ठी में अध्यक्षीय भाषण के दौरान कही. गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की ओर से रविवार को सन्निधि सभागार में आयोजित संगोष्ठी में दत्त ने बेगम अख़्तर के साथ व्यतीत क्षणों का विस्तार से ज़िक्र करते हुए कहा कि वे अपने मिज़ाज से जीती थीं और कार्यक्रमों में शिरकत करने से इंकार तब भी नहीं करती थीं, जब वे बीमार रहती थीं. वे बड़ी कलाकार अपने प्रयासों के कारण बनीं, लेकिन उनमें अहंकार कभी नहीं रहा.
काका कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में हर माह आयोजित होने वाली इस बार की  संगोष्ठी ग़ज़ल और डायरी लेखन पर केंद्रित थी. मुख्य अतिथि दीक्षित दनकौरी के सानिध्य में संगोष्ठी में नए रचनाकारों ने अपनी ताज़ातरीन ग़ज़लें पेश कीं. इनमें विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ पत्रकार फ़िरदौस ख़ान सहित प्रदीप तरकश, विकास राज, राजेंद्र कलकल, अरुण शर्मा अनंत, कालीशंकर सौम्य, मनीष मधुकर, उर्मिला माधव, सीमा अग्रवाल, शालिनी रस्तोगी, जीतेंद्र प्रीतम, कामदेव शर्मा, अनिल मीत और अस्तित्व अंकुर शामिल थे. इनकी ग़ज़लों में मौजूदा समय की विसंगतियों और विडंबनाओं का उल्लेख था.
इस मौक़े पर शायरी के क्षेत्र में चर्चित दीक्षित दनकौरी ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लों को पेश करने से पहले नये रचनाकारों को हिदायत दी कि वे मंचीय कवियों की नक़ल न करें और न ही सस्ती लोकप्रियता की ओर भागें. उन्होंने नये रचनाकारों से आग्रह किया कि वे अपने स्तर से रचना-कर्म की ख़ूब गहराई डूबें. उन्होंने कहा कि लेखन का कार्य दिखने में भले आसान-सा लगे पर यह वास्तव में कठिन काम है.
समारोह में विशिष्ट अतिथि व स्टार न्यूज़ एजेंसी की समूह संपादक फ़िरदौस ख़ान ने डायरी लेखन का ज़िक्र करते हुए कहा कि इन दिनों डायरी लेखन ख़ूब हो रहा है. डायरी, आत्मकथा का ही एक रूप है. फ़र्क़ बस ये है कि आत्मकथा में पूरी ज़िन्दगी का ज़िक्र होता है और ज़िन्दगी के ख़ास वाक़ियात ही इसमें शामिल  किए जाते हैं, जबकि डायरी में रोज़मर्रा की उन सभी बातों को शामिल किया जाता है, जिससे लेखक मुतासिर होता है. डायरी में अपनी ज़ाती बातें होती हैं, समाज और देश-दुनिया से जुड़े क़िस्से हुआ करते है. डायरी लेखन जज़्बात से सराबोर होता है, क्योंकि इसे अमूमन रोज़ ही लिखा जाता है. इसलिए उससे जुड़ी तमाम बातें ज़ेहन में ताज़ा रहती हैं. डायरी लिखना अपने आप में ही बहुत ख़ूबसूरत अहसास है. डायरी एक बेहद क़रीबी दोस्त की तरह है, क्योंकि इंसान जो बातें किसी और से नहीं कह पाता, उसे डायरी में लिख लेता है. हमारे मुल्क में भी डायरी लेखन एक जानी-पहचानी विधा बन चुकी है. इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए साहित्य जगत ने भी इसे क़ुबूल कर लिया है. बलॊग ने आज इसे घर-घर पहुंचा दिया है. उन्होंने कहा कि डायरी का ज़िक्र तेरह साल की एनी फ्रेंक के बिना अधूरा है. नीदरलैंड पर नाज़ी क़ब्ज़े के दौरान दो साल उसके परिवार ने छिपकर ज़िन्दगी गुज़ारी. बाद में नाज़ियों ने उन्हें पकड़ लिया और शिविर में भेज दिया, जहां उसकी मां की मौत हो गई. बाद में टायफ़ाइड की वजह से ऐनी और उसकी बहन ने भी दम तोड़ दिया. इस दौरान एनी ने अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को डायरी में लिखा था. जब रूसियों ने उस इलाक़े को आज़ाद करवाया, तब एनी की डायरी मिली. परिवार के ऑटो फ्रैंक ने ’द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’ नाम से इसे शाया कराया.  दुनियाभर की अनेक भाषाओं इसका में अनुवाद हो चुका है. और ये दुनिया की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय डायरी में शुमार की जाती है.

विशिष्ट अतिथि डॊ. सुनीता ने डायरी लेखन पर कहा कि साहित्य में बाक़ी विधाओं की तरह डायरी लेखन को भले कोई ख़ास महत्व नहीं मिला, लेकिन इसके महत्व को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए, क्योंकि मलाला और मुख़्तारन बाई जैसी महिलाओं की संघर्षशील जिंदगी की कठिनाइयों की सच्चाई उनकी डायरियों के ज़रिये ही दुनिया जान सकी. उन्होंने कहा कि डायरी लेखन ही एक ऐसा लेखन है, जिसमें लिखने वालों को ख़ुद से साक्षात्कार करना पड़ता है और यह कोई ज़रूरी नहीं कि डायरी लेखन केवल कोई बड़े लेखक तक ही सीमित हैं. डायरी से हर उस ख़ास और आम आदमी का सरोकार रहता रहा है, जिसमें अभिव्यक्ति की आकांक्षा है. डायरी लेखन पर सुरेश शर्मा ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि डायरी लेखन में ईमानदारी बरतनी चाहिए, जो बहुत ही कम देखने को मिलती है.

गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सानिध्य में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत और किरण आर्या ने किया, जबकि स्वागत भाषण करते हुए विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल प्रभाकर ने आयोजन के मक़सद को उजागर किया और भावी कार्यक्रमों की जानकारी दी. संगोष्ठी में गणमान्य लोगों ने शिरकत की.


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