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पुरुष और महिलाएं दोनों ही मोटापे के शिकार हों, तो जब तक वे अपने वज़न में कमी नहीं लाते तब तक उनमें नपुंसकता और बांझपन की समस्या हो सकती है। और पहली बार में वज़न में कमी करने से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ मोटापे के शिकार लोगों में तीन गुना कम शुक्राणुओं का खतरा रहता है बनिस्बत सामान्य वज़न के लोगों के. जर्नल फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी में प्रकाशित एक अध्ययन में दिखाया गया है कि अत्यधिक वज़न के पुरुषों में तीन गुना ज्यादा शुक्राणुओं की कमी होती है. शरीर में फैट के बढ़ जाने से टेस्टोस्टीरोन स्तर में भी कमी आती है. साथ ही एस्ट्रोजेन स्तर बढ़ जाता है. मोटापे के शिकार पुरुषों में अत्यधिक वज़न के शिकार लोगों की तुलना में 1.6 गुना अधिक शुक्राणुओं के आकार में गड़बड़ी की संभावना रहती है. बीएमआई के बढ़ने के साथ ही लोगों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन का खतरा बढ़ता जाता है. मोटापे का संबंध नपुंसकता के बढ़ते खतरे से है. मोटापे का संबंध मेटाबॉलिक सिंड्रोम और महिलाओं में पीसीओडी से है जिससे बच्चा जनने की समस्या होती है.


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