फ़िरदौस ख़ान
देश में हर साल प्राकृतिक आपदाओं की वजह से किसानों की लहलाती फ़सलें तबाह हो जाती हैं. फ़सल बर्बाद होने के सदमे से आहत सैकड़ों किसान ख़ुदकुशी कर लेते हैं. लेकिन अब केंद्र सरकार ने एक ऐसी नई फ़सल बीमा योजना शुरू की है, जिससे किसानों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद बंधी है.
मकर संक्रांति पर सरकार ने किसानों को प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना की सौग़ात दी है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ’प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ को मंज़ूरी दी. सरकार का दावा है कि ये किसानों के कल्याण के लिए एक अहम योजना है. यह योजना ख़रीफ़ 2016 से लागू होगी. ग़ौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने विगत 2 दिसंबर को इस नई फ़सल बीमा योजना पर विचार किया था, लेकिन प्रीमियम पर मतभेद होने की वजह से फ़ैसला नहीं हो सका था.

सरकार की तरफ़ से कहा जा रहा है कि सभी योजनाओं की समीक्षा करने के बाद अच्छी चीज़ें शामिल करके किसान हित में नई फ़सल बीमा योजना बनाई गई है. इस तरह यह योजना पुरानी किसी भी योजना से बेहतर है. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत फ़सल के मुताबिक़ किसान द्वारा देय प्रीमियम राशि बहुत कम कर दी गई है. नई बीमा योजना में किसानों को ख़रीफ़ की फ़सल पर 2 फ़ीसद प्रीमियम देना होगा. इसी तरह रबी की फ़सल के लिए प्रीमियम 1.5 फ़ीसद और वार्षिक वाणिज्यिक एवं बाग़वानी फ़सलों के लिए प्रीमियम 5 फ़ीसद तय किया गया है. साल 2010 से प्रभावी संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में प्रीमियम ज़्यादा हो जाने की हालत में एक कैप निर्धारित रहती थी, जिससे सरकार द्वारा वहन की जाने वाली प्रीमियम राशि कम हो जाती थी. नतीजतन किसान को मिलने वाली दावा राशि भी अनुपातिक रूप से कम हो जाती थी. मसलन, उत्तर प्रदेश के ललितपुर ज़िले में धान की फ़सल के लिए 22 फ़ीसद बीमाकृत प्रभार था. किसान को 30 हज़ार रुपये की बीमा राशि पर कैप की वजह से महज़ 900 रुपये और सरकार को 2400 रुपये प्रीमियम देना पड़ता था. लेकिन शत-प्रतिशत नुक़सान की हालत में भी किसान को सिर्फ़ 15 हज़ार रुपये की दावा राशि मिलती. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में 30 हज़ार बीमा राशि पर 22 फ़ीसद बीमाकृत प्रभार आने पर किसान महज़ 600 रुपये प्रीमियम देगा और सरकार 6000 हज़ार रुपये का प्रीमियम देगी. शत-प्रतिशत नुक़सान की हालत में किसान को 30 हज़ार रुपये की पूरी दावा राशि मिलेगी. मिसाल के तौर पर किसान के लिए प्रीमियम 900 रुपये से कम होकर 600 रुपये हो गया और दावा राशि 15000 रुपये से बढ़कर 30 हज़ार रुपये हो गई.

बीमित किसान अगर प्राकृतिक आपदा की वजह से बोहनी नहीं कर पाता, तो यह जोखिम भी इसमें शामिल है. उसे दावा राशि मिल सकेगी. पहले सिर्फ़ खड़ी फ़सल के नुक़सान पर ही बीमे का फ़ायदा मिलता था, लेकिन अब अगर बिजाई के बाद छोटे-छोटे पौधों को प्राकृतिक आपदा से नुक़सान पहुंचता है, तो भी किसान को बीमा सुरक्षा का फ़ायदा मिलेगा. ओला, जलभराव और भू स्खलन जैसी आपदाओं को स्थानीय आपदा माना जाएगा. पुरानी योजनाओं के तहत अगर किसान के खेत में पानी भर जाता है, तो किसान को मिलने वाली दावा राशि इस पर निर्भर करती कि यूनिट ऒफ़ इंश्योरेंस (गांव या गांवों के समूह) में कुल नुक़सान कितना है. इस वजह से कई बार नदी नाले के किनारे या निचले स्थल में स्थित खेतों में नुक़सान के बावजूद किसानों को दावा राशि नहीं मिलती थी. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना में इसे स्थानीय हानि मानकर केवल प्रभावित किसानों का सर्वे कर उन्हें दावा राशि प्रदान की जाएगी. फ़सल कटाई के बाद के नुक़सान को भी इसमें शामिल किया गया है.  फ़सल कटने के 14 दिन तक अगर फ़सल खेत में है और उस दौरान कोई आपदा आ जाती है, तो किसानों को दावा राशि मिल सकेगी. इस योजना में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे फ़सल कटाई या नुक़सान का आकलन जल्द और सही हो सके और किसानों को दावा राशि जल्द से जल्द मिल सके. रिमोट सेंसिंग के माध्यम से फ़सल कटाई प्रयोगों की संख्या कम की जाएगी. फ़सल कटाई प्रयोग के आंकड़े फ़ौरन स्मार्टफ़ोन के माध्यम से अप-लोड कराए जाएंगे. इसके लिए राजस्व विभाग के कर्मचारियों को स्मार्ट फ़ोन मुहैया कराए जाएंगे. बहरहाल, आगज़नी या जानवरों के खेत में घुस जाने से फ़सलों को होने वाले नुक़सान को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है.

सरकार का दावा है कि नई योजना में दावा भुगतान प्रक्रिया को आसान रखा गया है. एक राज्य में एक ही कंपनी बीमा करेगी.  इससे जोखिम और फ़सल के नुक़सान का आकलन आसान होगा. साथ ही प्रावधान होगा कि बीमा दावे की 25 फ़ीसद रक़म सीधे किसान के खाते में जमा कराई जाए, जबकि बाक़ी का भुगतान नुक़सान के आकलन के बाद किया जाएगा. इसमें फ़सलों की कटाई से प्राप्त आंकड़ा भी शामिल होगा.

किसानों के लिए बीमा योजनाएं समय-समय पर बनती रहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद अब तक कुल कवरेज 23 फ़ीसद हो सका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ खेती की तक़रीबन चार करोड़ हेक्टेयर ज़मीन में से सिर्फ़ 20 फ़ीसद मौजूदा योजनाओं के तहत बीमित है. राजस्थान में सबसे ज़्यादा 122.6 लाख हेक्टेयर ज़मीन बीमित है. इसके बाद बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं. बीमा की जाने वाली मुख्य फ़सलों में गेहूं, चावल, दालें, मोटे अनाज और तिलहन शामिल हैं.

कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का कहना है कि सुरक्षित फ़सल से ही किसान समृद्ध होगा. कम प्रीमियम में ज़्यादा जोखिम कवर होगा और किसानों को ज़्यादा मदद मिलेगी. कैपिंग का प्रावधान पूरी तरह से हटा दिया गया है, जिससे किसानों को पूरा फ़ायदा मिलेगा. उन्होंने कहा कि अगले तीन साल में फ़सल बीमा को मौजूदा 23 फ़ीसद से बढ़ाकर 50 फ़ीसद तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है, यानी साढ़े तेरह करोड़ किसानों को फ़सल बीमा के दायरे में लाया जाएगा. खेत से लेकर खलिहान तक को इसमें शामिल किया गया है. केंद्र सरकार का ख़र्च 3,100 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,800 करोड़ रुपये हो जाएगा.  इतनी ही रक़म राज्य सरकारों को ख़र्च करनी होगी. बटाई पर खेती करने वाले किसानों के लिए राज्यों को नियमों में बदलाव करने को कहा गया है, ताकि उन्हें भी बटाईदार का प्रमाण-पत्र मिल सके.

ग़ौरतलब है कि नई फ़सल बीमा योजना का सबसे ज़्यादा फ़ायदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा और तटीय उड़ीसा के क्षेत्रों को मिलेगा. इस तरह के जोखिम वाले किसानों की खेती पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी. कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि ऋण लेने वाले किसानों के साथ इसमें ग़ैर क़र्ज़दार किसानों को शामिल करने पर ज़ोर दिया जाएगा. बीमा योजना को किसानों में लोकप्रिय बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाएगी.

सरकार नई फ़सल बीमा को लेकर बहुत से दावे कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि नई फ़सल बीमा योजना किसानों की ज़िन्दगी बदल देगी. इसका प्रीमियम न्यूनतम है, इसके उपयोग में तकनीक का इस्तेमाल होगा और निश्चित समयावधि में इसका समाधान भी होगा. केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे ऐतिहासिक क़रार देते हुए कहा है कि मौसम की मार से आत्महत्या तक के लिए विवश होने वाले किसानों के लिए प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना सुरक्षा का काम करेगी.

ग़ौरतलब है कि यह बीमा निजी कंपनियां, सार्वजनिक क्षेत्र की एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (एआईसी) के साथ मिलकर करेंगी. नई योजना राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित कृषि बीमा योजना की जगह लेगी. ये योजनाएं एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड के ज़रिये लागू की गई हैं. इनमें प्रीमियम दर कुछ ऊंची थी और दावे के भुगतान की ज़िम्मेदारी सरकार की थी. नई योजना में यह देनदारी निजी कंपनियों की होगी.

क़ाबिले-ग़ौर है कि निजी बीमा कंपनियां स्वहित को सर्वोपरि मानती हैं. ये कंपनियां मुहिम चलाकर ज़्यादा से ज़्यादा किसानों की फ़सलों का बीमा करेंगी, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा रक़म रक़म इकट्ठी की जा सके. लेकिन जब किसानों को दावा राशि देने का वक़्त आएगा, तब ये बीमा कंपनियां क्या रुख़ अपनाती हैं, ये तो वक़्त ही बताएगा. बहरहाल, इस बात के लिए किसान ख़ुश हो सकते हैं कि प्रीमियम राशि कम है.  


या हुसैन

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