सौरभ द्विवेदी 
हालिया बीबीसी हिन्दी की एक खबर से जानकारी मिली कि मुसलमान अंगदान करने के मामले में बहुत पीछे है और एक बडा सवाल है कि आधुनिकता वा वैज्ञानिक युग के इस दौर में भी धर्मांधता लोगों में सर चढकर बोल रही है कमोबेश हिंदू धर्म में भी ऐसी मान्यता है जैसा कि गांवों में किवदंतियां है कि आप जिस अंग को दान कर दोगे, अगले जन्म में वह अंग आपको भगवान नहीं देगे अगर आपने अपनी आंख दान कर दी तो अगले जन्म में आप अंधे ही रहोगे। लोगों का यही कहना है कि शरीर ईश्वर की देन है और वही इस शरीर का मालिक है हम कौन होते हैं दान करने वाले?

इस धारणा के चलते आज भी लोग अंगदान करने से हिचकिचाते है जबकि अगला जन्म किसने देखा परंतु अगले जन्म या सात जन्मों की मान्यता तो हिन्दू धर्म में है जबकि इस्लाम में पुनर्जन्म और सात जन्मों जैसी कोई मान्यता नहीं है वह एक ही जन्म पर विश्वास करने वाला धर्म है परंतु जिस प्रकार की खबर मिल रही है वह चौकाने वाली है कि हमारी वजह से अगर किसी का जीवन बच सकता है तब क्यूं ना हम अंगदान करने की सोचें और लोगों को प्रोत्साहित करें जिससे कम से कम हमारे इस दुनियां में ना रहने पर भी हमारी आंखों से कोई देख सकता है और लीवर ट्रांसप्लांट होने से कोई कुछ और समय तक अपनी जिंदगी की सांसे ले सकता है हम ईश्वर नही परंतु मानव हैं और हमारी वजह से अगर किसी को जीवन मिल जाता है तब इससे बडी मानवता और क्या हो सकती है। ईश्वर हो या अल्लाह उन्हें मानवता से कोई परहेज नहीं बल्कि ईश्वर ने इंसान इसलिये बनाया कि इंसान इंसानियत को कायम रखें और प्रकृति की सुंदरता यूं ही बनी रहे।

इन दिनों ब्रिटेन का एक अस्पताल मुसलमानों से एक खास गुज़ारिश कर रहा है कि वह अंगदान करें जिससे लोगों के जीवन को बचाने में हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। वेस्ट मिडलैंड के अस्पतालों ने प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे मरीज़ों के लिए मुसलमानों से अपना अंग दान करने का आग्रह किया है।वास्तविक समस्या यह है कि यहां नई किडनी या लीवर के रूप में अंगदान पाने के लिए मुसलमानों को गैरमुसलमानों के मुकाबले साल-साल भर लंबा इंतज़ार करना पड़ता है। डाक्टरों ने रमजान के पवित्र मास को एक अच्छे अवसर के रूप में देखा है कि इस महीने धार्मिक कृत्यों में मुस्लिम समाज बढचढकर हिस्सा लेता है तो डॉक्टर मुसलमानों को अंगदान के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

ब्रिटेन में मुसलमानों की आबादी करीब 30 लाख है. और इनमें से अधिकांश मुसलमान दक्षिण एशियाई मूल के हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आकर लोग बर्मिंघम सहित कई प्रमुख शहरों और कस्बों में बस गए हैं. बर्मिंघम में मुसलमानों की आबादी 21 फीसदी से अधिक है।

बर्मिंघम के क्वीन एलिज़ाबेथ अस्पताल में सलाहकार नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अदनान शरीफ बताते हैं, "किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने के कारण अस्पताल में इंतज़ार कर रहे हमारे कुछ मुसलमान मरीज़ों की जान पर ख़तरा पैदा हो जाता है।"
असल में सवाल आस्था का है। मुसलमान अंगदाताओं की कमी की बड़ी वजह है अंगदान करने के लिए सजातीय दाताओं का न मिलना और ये कमी इसलिए है क्योंकि इस बात पर अभी भी भ्रम बना हुआ है कि इस्लाम के अनुसार अंगदान करना सही है या गलत?
एक बात और चिंतन करने योग्य है कि क्या अंगों का प्रत्यारोपण धर्म आधारित वा जाति आधारित होता है क्या? कि हिंदू का हिंदू को और मुसलमान का मुसलमान को ही प्रत्यारोपित किया जा सकता है, इसके अपने धार्मिक वैज्ञानिक कारण जो भी हो उसे सरकार, समाजसेवियों वा धर्मावलंबियों को स्पष्ट करना चाहिए जिससे इस प्रमुख मुद्दे पर भ्रम दूर होगा और जन जागरूकता फैलायी जा सकती है।

इस भ्रम के दो कारण हैं, पहला, कुरान में कहीं भी इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है कि अंगदान करना चाहिए या नहीं और दूसरा, इस बारे में मुसलमान विद्वानों की अलग अलग राय है। कूछ का मत है कि अंगदान करना अधार्मिक नहीं है बल्कि कुछ विद्वान अंगदान करना उचित वा न्यायसंगत नहीं ठहराते हैं और यही कहते हैं कि यह शरीर वा अंग अल्लाह ताला ने दिये हैं इस शरीर और अंगों पर हमारा निजी अधिकार नहीं है बल्कि उन्हें एहसास है कि अंगदान से किसी को जीवन मिल जाता है।

अंगदान दो तरह के बताए गए हैं, पहला ज़िंदा व्यक्ति का अंगदान करना और दूसरा व्यक्ति के मर जाने के बाद अंगदान होना। पिछले कुछ दिनों पूर्व डॉक्टर यासिर मुस्तफ़ा ने मस्जिदों का दौरा किया और वहां लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करने की कोशिश की।

डॉक्टर मुस्तफ़ा कहते हैं, "ये अंगदाता इस्लाम मानने वाले अफ्रीका, एशिया या ब्रिटेन के निवासी हो सकते हैं। लेकिन सबसे गंभीर सवाल ये आड़े आता है कि क्या इस्लाम में अंगदान की इजाज़त है? इस बारे में मुस्लिम धार्मिक नेताओं की क्या राय है? " इसे संबंध में मुस्लिम धार्मिक नेताओं को अपनी राय सार्वजनिक करनी चाहिये वो अंगदान करने के पक्ष में हैं या इसमें धार्मिक आस्था आडे आ रही है?
अगर एक मामले पर गौर करें तो ब्रिटेन के पूर्व पुलिसकर्मी परवेज़ हुसैन ने नई किडनी के लिए तीन साल तक इंतज़ार किया, वे बताते हैं, "जहां मेरा इलाज चला वहां 31 वार्ड थे, इसमें कोई शक नहीं कि उनमें से कम से कम 25 ऐसे वार्ड थे जहां अल्पसंख्यक समूह के मरीज़ भर्ती थे।" परवेज़ का मानना है कि अंगप्रत्यारोपण को मुसलमानों के बीच ज़्यादा से ज़्यादा मान्य बनाने के लिए धार्मिक नेताओं को अपने पद और दर्जे का इस्तेमाल करना चाहिए।

उन्होंने बताया, "बर्मिंघम में एक और बड़ी समस्या ये है कि लोग अंग दान लेने को तो राज़ी हैं लेकिन देने को राज़ी नहीं हैं।" अंगदाताओं की कमी से अकेला ब्रिटेन नहीं जूझ रहा बल्कि ये समस्या विश्वव्यापी है।

अप्रैल में इस्लामिक विद्वानों ने पाकिस्तान में कराची विश्वविद्यालय में इस मसले पर चर्चा की थी। रेहाना सादिक क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में मुस्लिम धर्मगुरु हैं और संकट के समय उन्होंने कई मुसलमान परिवारों को इस मामले में राह दिखाई है।
वे कहती हैं, "अंगदान के बारे में समुदाय के भीतर काफी गहरा विभाजन है।"
सादिक कहती हैं, "एक ओर तो लोग मानते हैं कि अंगदान एक तरह का अंगभंग हैं और इससे मरने वाले की आत्मा परेशान होती है" वही "दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जिनकी इस बात में गहरी आस्था है कि अंगदान इस्लाम की ओर से दिए गए सबसे ख़ूबसूरत तोहफ़ों में से एक है वे मानते हैं कि किसी का जीवन बचाना उसे बेशकीमती उपहार देना है।"
वे कहती हैं कि उन्होंने कभी किसी को अंगदान करने न करने के बाबत कोई सलाह नहीं दी. बल्कि वे उन्हें सलाह देती हैं कि इस मामले में अपनी आत्मा का कहा मानें, यही एक ऊहापोह की स्थिति है बेशक अंगदान करने के मामले में अपनी आत्मा की आवाज सुननी चाहिये लेकिन सभी धर्मों और खासकर इस्लाम की तरफ से यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि अंगदान करना नैतिक है या अनैतिक है? डाक्टर इस मामले पर आत्मा की आवाज सुनने को अवश्य कहेगें परंतु मौलाना अगर चाहें तो इस संबंध में स्पष्ट बात कह सकते हैं और लोग उसका अनुकरण करेगें। इस्लाम के कर्ताधर्ताओं को इस संबंध में खुलकर बोलना चाहिये जिससे यह भ्रम की स्थिति ना बनी रहे।

अगर सरल बात समझी जाये तो अंगदान करने से किसी को जीवन मिल जाता है तब यह मानवता हुई और मानवता के विरूद्ध वह अदृश्य शक्ति भी नहीं है और ना ही इस पृथ्वी का इंसान है कुछ मानवता के विरोधियों को छोडकर आज भी संसार में मानवता के पक्षकार हैं।

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